Delhi floods: बारिश के कारण दिल्ली में कई स्कूल बंद हैं. मयूर विहार के पास विस्थापित बच्चे पूरे दिन बेकार बैठे हैं.
वर्षा श्रीराम
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Delhi: तस्वीरों में देखें- बाढ़ की वजह से किस तरह खराब हो रही बच्चों की पढ़ाई
फोटो: (वर्षा श्रीराम)
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12 वर्षीय सोनू अपने परिवार के साथ पिछले 10 दिनों से दिल्ली मेरठ फुटपाथ पर एक तंबू में रह रहा है. बाढ़ की वजह से वह न तो स्कूल जा पा रहा है और न ही कोचिंग सेंटर.
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44 वर्षीय सोनू की मां, नाथूदेवी ने क्विंट हिंदी को बताया, "बाढ़ हर साल इतना ही नुकसान करती है, तो इसी वजह से हम सोच रहे हैं कि हम कहीं और रहने या वापस उत्तर प्रदेश अपने गांव चले जाएं लेकिन इससे सोनू की पढ़ाई पर असर पड़ेगा."
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सोनू न तो दिल्ली छोड़ना चाहता है और न ही अपने दोस्तों को. सोनू ने कहा कि, "मैंने पढ़ाई करने की कोशिश की थी लेकिन काफी मच्छर और शाम को अंधेरे में लाइट न होने की वजह से मैं पढ़ नहीं पता हूं."
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12 वर्षीय आनंद ने कहा, "मुझे स्कूल स्कूल में जाकर पढ़ाई करना और अपने दोस्तों के साथ खेलना पसंद है. बाढ़ की वजह से न तो मैं पढ़ पा रहा हूं और ना ही मैं अपने दोस्तों के साथ खेलने जा पा रहा हूं. अब मैं पूरे दिन इस तंबू में बैठा रहता हूं और बोर हो रहा हूं..."
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मयूर विहार के दिल्ली सरकारी स्कूल में बच्चे पढ़ने जाते थे लेकिन बारिश के कारण स्कूल बंद हो गए. तंबू में रह रहे लोगों की स्थिति कुछ इस तरह है कि अब बच्चे रोजाना अपने माता-पिता की सिर्फ मदद ही कर रहे हैं इसके अलावा उनके पास कोई और काम नहीं है.
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"पिछले कुछ महीनों में हमारे सामने कई समस्याएं आई हैं और अब बाढ़ जैसी समस्या उत्पन्न हो गई है. ऐसे में मैं बच्चों से कैसे उम्मीद करूं कि अब वह स्कूल में पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करेंगे. मुझे डर है कि बच्चे कहीं सब कुछ भूल न जाएं जो उन्हें सिखाया है."
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17 साल की रूबी ने अभी हाल ही में 12वीं कक्षा पास की है. रूबी को आगे चलकर डॉक्टर बनना है लेकिन उनके पिता के देहांत के बाद और परिवार के हालातों को देखते हुए उन्होंने डॉक्टर बनने का सपना छोड़कर काम करने का सोचा है ताकि वह अपनी छोटी बहन की शिक्षा पूरी कर सकें.
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12 वर्ष के विशाल ने बताया कि, "जैसे ही हमारे घर में पानी आया सबसे पहले मैंने अपनी पानी में भीगती हुई किताबें उठाईं, उन्हें बचाया. ताकि मैं उन्हें पढ़ सकूं और बाकी की किताबें धूप में सूखने के लिए रख दी है."
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विशाल की विज्ञान की पुस्तक पुरी तरह से बर्बाद हो गई थी. विशाल ने मजाक में कहा कि मुझे खुशी है मुझे विज्ञान वैसे भी पसंद नहीं है. विशाल का सपना आईपीएस बनकर अपने मां बाप का नाम रोशन करना है.
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लालू ने बताया कि वह केवल कुछ बर्तन और कुछ कपड़े ही अपने साथ ला सके हैं. पानी इतना अधिक था कि वह अपने आधार कार्ड जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज ही नहीं बचा पाए तो बच्चों की किताबें कैसे बचाते. अब उनके बच्चे उनके साथ काम में हाथ बटा रहे हैं.
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45 वर्षीय विशाल के पिता, कमलेश कुमार ने कहा, “मैं अपने बड़े बेटे पवन के लिए नई किताबें खरीदने की कोशिश करूंगा क्योंकि मैं चाहता हूं कि मेरे दोनों बेटे अच्छी पढ़ाई करें और अपना नाम रोशन करें. इसके साथ ही विशाल के पिता ने कहा की हमें बहुत धक्के खाने पड़े क्योंकि हम अनपढ़ हैं, वो हम इन दोनों के साथ नहीं होने देंगे.
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पाल ने बताया कि एक साल में ये बाढ़ तीसरी बार आई है. पाल ने कहा कि, "जब आपका घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाए और आप और आपका पूरा परिवार सड़क पर आ जाए तो ऐसे हालात में आप बच्चों को पढ़ाई पर ध्यान देने का कैसे कह सकते हैं?
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स्कूल जाने के अलावा, यमुना खादर में रहने वाले के बच्चे एक ऐसी कोचिंग में पढ़ाई करने जाते थे जो बारापुल्ला फेज 3 के कॉरिडोर के नीचे बनाकर चलाई जा रही थी लेकिन अब बाढ़ के कारण ये भी तबाह हो गई है.
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उत्तर प्रदेश के बदायूं के रहने वाले सत्येंद्र पाल 2015 से इसी स्कूल को चला रहे थे ताकी बच्चे पढ़ सकें. उन्होंने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि, "भले ही ये बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते हैं लेकिन फिर भी कई चीजें इनसे स्कूल में छूट जाती हैं. तो इसलिए मैंने ये कोचिंग शुरू की ताकी इनके सारे डाउट को समझाया जा सके, खासकर गणित और विज्ञान के विषय में."
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सत्येंद्र पाल उत्तर प्रदेश के बांधों से हैं और बाढ़ के मैदाने में रहते हैं उन्होंने बताया कि 2015 में उन्होंने स्कूल की शुरुआत की थी बच्चे हालांकि सरकारी स्कूल में जाते हैं लेकिन कभी-कभी उनके लिए यह समझना मुश्किल होता है कि कक्षाओं में क्या हो रहा है इसलिए हम उन्हें यहां उनके डाउट्स को क्लियर करते हैं.
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पाल ने कहा कि बच्चे स्कूल आना इसलिए छोड़ देते हैं क्योंकि उनकी जिंदगी में ऐसी कठिनाइयां बार बार आती रहती हैं. पाल ने कहा हम फिर एक काम चलाऊ टेंट लगाकर बच्चों को पढ़ाना शुरू करेंगे.
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हफ्ताभर हो गया है और दिल्ली में बाढ़ का प्रभाव अभी खत्म नहीं हुआ. कई परिवारों की जिंदगी अभी तक पटरी पर नहीं लौटी, वे टेंट में रह रहे हैं. वे लंबी-लंबी लाइनों में केवल खाना मिलने का इंतजार करते हैं.