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MP में गोंड आदिवासियों की डिगना कला अपनी चमक खो रही है- चलिए उन गलियों में | Photos

Dhigna art History: क्विंट मध्य प्रदेश के उन आदिवासी गांवों की सैर करने निकला है और आपके लिए लेकर आया है डिगना कला की झलक

दीपान्विता गीता नियोगी
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<div class="paragraphs"><p>मध्य प्रदेश: गोंड आदिवासियों की ढिगना कला कैसे अपना अस्तित्व खो रही है देखें Photos</p></div>
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मध्य प्रदेश: गोंड आदिवासियों की ढिगना कला कैसे अपना अस्तित्व खो रही है देखें Photos

(फोटो: दीपान्विता गीता नियोगी/द क्विंट)

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मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में गोंड आदिवासियों की डिगना कला वर्तमान समय में अपनी चमक खोती जा रही है. डिगना कला में एक विशेष प्रकार का त्रिकोणीय और ज्यामितीय डिजाइन की चित्रकारी की जाती है. जिसे बनाने के लिए पहले दीवारों में गोबर लगाया जाता है. फिर महिलाएं अपने हाथों से अलग- अलग प्रकार के सुंदर डिजाइन बनाती हैं. डिगना कला की चित्रकारी विशेष रूप से दिवाली में की जाती हैं. इसके अलावा, ये कभी-कभी हरियाली के मौसम, होली और मेलों के दौरान भी बनाई जाती है.

क्विंट मध्य प्रदेश के उन आदिवासी गांवों की सैर करने निकला है और आपके लिए लेकर आया है डिगना कला की झलक: यहां तस्वीरों में देखिये

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले की झरकुवा ग्राम पंचायत में छोटेलाल आदिवासी के घर पर नीले और गुलाबी रंगों से बने छोटे- छोटे त्रिकोणों ने हमारा ध्यान खींचा.

(फोटो: दीपान्विता गीता नियोगी/द क्विंट)

राजगोंड समुदाय से आने वाले छोटेलाल ने बताया,  उनकी बहू जगिता ने घर की दीवारों पर ये त्रिकोणीय पैटर्न (डिजाइन) बनाए हैं.

(फोटो: दीपान्विता गीता नियोगी/द क्विंट)

छोटेलाल को यह नहीं पता था कि इस कला को क्या कहा जाता है. द क्विंट ने जब इस चित्रकारी के बारे में पता किया तो पाया कि यह मध्य और दक्षिण भारत की गोंड जनजातियों द्वारा की जाने वाली प्रसिद्ध डिगना कला है.

(फोटो: दीपान्विता गीता नियोगी/द क्विंट)

स्थानीय सरपंच राधेलाल गुप्ता बताते हैं कि झारकुवा की ग्राम पंचायत में, दिवाली जैसे त्योहारों के दौरान आदिवासियों द्वारा कठिन और सुंदर भित्ति चित्र (दीवारों पर बना हुआ चित्र) बनाए जाते हैं.

(फोटो: दीपान्विता गीता नियोगी/द क्विंट)

एक अन्य गोंड आदिवासी और कान्हा टाइगर रिजर्व में बीट गार्ड लक्ष्मी मरावी बताती हैं, “महिलाएं पहले दीवारों को झाड़ू से साफ करती हैं, चिकनाई के लिए गोबर या गाय के गोबर की एक परत लगाती हैं और फिर गाय के गोबर को रंगीन मिट्टी के साथ मिलाकर डिजाइन बनाती हैं. कई गांवों में महिलाएं साधारण डिजाइन बनाती हैं लेकिन कभी-कभी इनको बनाना जटिल होता है.''

(फोटो: दीपान्विता गीता नियोगी/द क्विंट)

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लक्ष्मी आगे कहती हैं, "दीवारों पर महिलाएं पारंपरिक रूप से सफेद और लाल रंगों का इस्तेमाल करती हैं और पैटर्न (डिजाइन) बनाने के लिए अपने हाथों का इस्तेमाल करती हैं."

(फोटो: दीपान्विता गीता नियोगी/द क्विंट)

एक चित्रकार और दुकानदार, रामेश्वर धुर्वे कहते हैं कि डिगना कला की विशेषता दीवारों और फर्श पर ज्यामितीय पैटर्न हैं.

(फोटो: दीपान्विता गीता नियोगी/द क्विंट)

डिगना कला, दिवाली के अलावा, कभी-कभी हरियाली के मौसम, होली और मेलों के दौरान भी बनाई जाती है.

(फोटो: दीपान्विता गीता नियोगी/द क्विंट)

लेकिन डिगना कला सिर्फ मध्य प्रदेश में नहीं दिखती. पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में रहने वाले छेरकु नेताम ने बताया, “बुजुर्ग लोग कहते हैं कि इस तरह के पैटर्न (डिजाइन) बुरी ताकतों को दूर रखते हैं. लेकिन जैसे-जैसे धीरे-धीरे शिक्षा का क्षेत्र बढ़ रहा है, डिगना कला अपनी चमक खोती जा रही है.”

(फोटो: दीपान्विता गीता नियोगी/द क्विंट)

वहीं कोंडागांव के तेज कुमार मंडावी भी कहते हैं कि भले ही लोग आदिवासी परंपराओं के बारे में जागरूकता फैलाने की कोशिश करते हैं, लेकिन डिगना कला और इसे बनाने लोगों में काफी कमी आई है.

(फोटो: दीपान्विता गीता नियोगी/द क्विंट)

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