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2014 की कश्मीर बाढ़ ने डल झील के 'फ्लोटिंग मार्केट' को हमेशा के लिए कैसे बदल दिया। Photos
इस बाजार में सबसे अधिक मांग वाली फसल "कश्मीरी कमल की जड़ और तना" है, जो पानी की सतह के नीचे उगती है.
ऐमन फयाज़
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कैसे 2014 की कश्मीर बाढ़ ने डल झील के 'फ्लोटिंग मार्केट' को हमेशा के लिए बदल दिया। Photos
(फोटो: ऐमन फयाज)
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कश्मीर (Kashmir) के डल झील के बीच लगनेवाला "तैरता बाजार" (Floating Market) खूबसूरती और शोभा का केंद्र है. यहां हर दिन कश्मीरी किसान अपनी नावों के जरिए सब्जी बेचने के लिए आते हैं. इस बाजार में सबसे अधिक मांग वाली फसल "कश्मीरी कमल की जड़ और तना" है, जो पानी की सतह के नीचे उगती है. हालांकि, इस बाजार की कहानी इतनी ही नहीं है. इस बाजार के भीतर भी कहानियां हैं. साल 2014 में आए बाढ़ के बाद यहां की कहानी काफी बदल चुकी है.
आइए तस्वीरों के माध्यम से जानते हैं कि अभी 'फ्लोटिंग मार्केट' के हालात कैसे हैं और बाढ़ के बाद यहां क्या-क्या परिवर्तन हुए.
खूबसूरत डल झील के बीच एक तैरता बाजार है, जो झील की शोभा में चार चांद लगाता है. आपको हैरत होगी ये बाजार तैरता है! पूरी दुनिया में ऐसे केवल 5 बाजार ही हैं, जो पानी के अंदर हैं. झील के अंदर ये तैरता बाजार हर सुबह खुल जाता है और अपने खरीददारों का स्वागत करता है. लेकिन इस बाजार की कहानी इतनी ही नहीं है, इस बाजार के भीतर भी कहानियां हैं.
(फोटो: ऐमन फयाज)
जब सुबह के समय पूरा शहर सो रहा होता है, तब तक डल के मेहनती किसान अपना लेन-देन पूरा कर चुके होते हैं. उनकी जेबें उनके मेहनत के फल से भरी होती हैं, जिससे उन्हें आने वाले दिन के लिए रोटी खरीदने का साधन मिलता है. वह इस बात से संतुष्ट होकर घर लौटते हैं कि उनके प्रयासों ने एक और दिन के लिए उनकी आजीविका सुनिश्चित कर दी है.
(फोटो: ऐमन फयाज)
सब्जी विक्रेता अब्दुल रहमान एक खरीदार को कमल के डंठल का एक गुच्छा देते हुए कहते हैं, " साल 2014 में कश्मीर में आए बाढ़ की तबाही से पहले यह स्वर्ग था, जहां 60,000 लोगों के समुदाय को क्षतिग्रस्त हाउसबोटों के साथ रहने के लिए छोड़ दिया गया था." डल झील में उगाई जाने वाली सब्जियां और फल बेमिशाल हैं. कोई भी सब्जी बाजार उनकी गुणवत्ता का मुकाबला नहीं कर सकता है. लेकिन बाढ़ ने हमारे लिए हमेशा के लिए सब कुछ बदल दिया. अब एक दशक हो गया है, और अभी भी, हम ठीक से कश्मीरी कमल के तने, नादरू को उगाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
(फोटो: ऐमन फयाज)
फ्लोटिंग मार्केट की सब्जियां हमेशा ग्राहकों के लिए आकर्षण का केंद्र रही हैं, जो कि अपनी ताजगी और खास स्वाद के लिए बेशकीमती होती हैं. उत्पादकों को दावा था कि इस बाजार में हर सुबह औसतन 10-20 लाख रुपये का लेनदेन होता है. हालांकि, बाढ़ के बाद से, इनमें से कई उत्पादक बेरोजगार हो गए हैं और अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
(फोटो: ऐमन फयाज)
सिर्फ सब्जियां ही नहीं, बल्कि ढेर सारे जीवंत (जिंदा) फूल भी डल झील में नावों की शोभा बढ़ाते थे. अमजद अली ने उदासी से याद करते हुए कहा, "दुनिया के कोने- कोने से विदेशी लोग मुझसे फूलों के बीज खरीदते थे और कुछ लोगों ने तो अपने प्यार का प्रपोज करने के लिए इस मनमोहक जगह को चुना. इसके साथ ही उन्हें गुलदस्ते भेंट किए या उनकी खुबसूरती को टियारा से सजाया. लेकिन अब मैं अपनी फूलों से भरी नाव का आधा हिस्सा भी पर्यटकों को बेचने के लिए संघर्ष कर रहा हूं. इसके साथ ही उन्होंने कहा, डल एक समय कभी लुभावनी थी, लेकिन अब, पानी से निकलने वाली अप्रिय गंध मेरे फूलों की सुगंध को धूमिल कर देती है.
(फोटो: ऐमन फयाज)
यहां हर 2-3 मील पर लकड़ी के पुल पानी के ऊपर में बने हुए हैं. जो कि डल के रास्ते को जोड़ते हैं. ये पुल प्रतिष्ठित बन गए हैं और दूर-दूर से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. इसके साथ ही फिल्म "फितूर" के एक वायरल सीन ने इसे और प्रसिद्ध बना दिया हैं. खासकर यहां कपल हनीमून मनाने और रोमांटिक पलों को कैद करने के लिए आते हैं, और अक्सर इन आकर्षक, छोटे पुलों पर फोटोशूट करवाते हैं.
(फोटो: ऐमन फयाज)
झील के पानी के बीच जमीन के छोटे-छोटे द्वीप हैं, जहां किसान सदियों से सब्जियों की खेती करते रहे हैं. इन तैरते हुए बगीचों को कश्मीरी में "राड़" के नाम से जाना जाता है और यह एग्रीकल्चर इनोवेशन की एक उल्लेखनीय उपलब्धि है, जहां पानी के पौधों को एक साथ जोड़कर और झील के तल से निकली मिट्टी की परत बनाकर, किसान फसल उगाने के लिए एक उपजाऊ मंच बनाते हैं.
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हलीमा, जो कि काफी लगन से काम करती है वह अपने बारे में बताती हैं, "हमारी सब्जियां बहुत से लोगों को पसंद हैं और यह घाटी में अनगिनत लोगों का भरण-पोषण करती हैं. मैंने अपना पूरा जीवन खेती और खेती में अपने पति की मदद करने में बिताया है. जबकि हमारे बच्चों ने अलग-अलग रास्ते अपनाए हैं, अन्य नौकरियों और शादियों में खुशी ढूंढ रहे हैं. वो आगे कहती हैं, "खेती हमारी आजीविका का एकमात्र साधन बनी हुई है, इसलिए मैं अपने पति की हमेशा से मदद करती हूं. और यह सुनिश्चित करती हूं कि सभी सब्जियां तैरते बाजार में बिक्री के लिए तैयार हों. यह हमारी जीवन शैली है और हमें इसमें संतुष्टि मिलती है."
(फोटो: ऐमन फयाज)
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महिलाएं हमेशा बाजार में सब्जियों की बिक्री में प्रमुख व्यक्ति नहीं होती हैं, हालांकि, वे खेती की प्रक्रिया में शामिल होती हैं. उन्हें डल मे अपने माता- पिता की मदद करते और मोहल्लों में घर-घर जाकर सीधे अपनी नावों से सब्जियां बेचते हुए देखा जा सकता है.
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सर्द सुबह में, कश्मीरी किसान अपने फेरन, एक गर्म ऊनी कोट के साथ यहां पहुंच जाते हैं. इसके साथ ही वह ठंड से बचने और हाथों को गर्म रखने के लिए एक कांगरीपोट (एक छोटा आग का बर्तन) अपने कोट के अंदर रख लेते हैं. इसके साथ ही वह अपने दिन की शुरूआत करते हैं.
(फोटो: ऐमन फयाज)
ठंड से बचने के लिए, कुछ नावें "कहवा" बेचती हैं. यह इलायची, दालचीनी और केसर से बनी पारंपरिक कश्मीरी चाय होती है. कहवा बेचने वाले फैयाज अहमद मुस्कुराते हुए कहते हैं, "तैरते बाजार में कहवा पीना जरूरी है. यह आपको गर्म रखता है और आपके मूड को अच्छा बनाता है. चाहे हम पैसा कमाएं या न कमाएं, कहवा हमेशा दिन को बेहतर बनाता है."
(फोटो: ऐमन फयाज)
वे कोलार्ड पत्तियां, शलजम, गाजर और बहुत कुछ का व्यापार करते हैं, लेकिन बाजार में सबसे अधिक मांग वाली फसल, "कमल की जड़" पानी की सतह के नीचे उगती है. डल झील को लंबे समय से इस एरिया के इस व्यंजन के शीर्ष उत्पादकों में से एक के रूप में जाना जाता है. हालाँकि, 2014 की बाढ़ और हाउसबोटों से निकलने वाले प्रदूषण के बाद से, कमल की जड़ें पैदा करने की झील की क्षमता काफी कम हो गई है.
(फोटो: ऐमन फयाज)
श्रीनगर की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि के साथ, पर्यावरणीय मुद्दे अधिक स्पष्ट हो गए हैं. कई स्थानीय लोग असंख्य हाउसबोटों को प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत बताते हैं, विशेष रूप से झील में बड़ी मात्रा में सीवेज छोड़ने के कारण.
(फोटो: ऐमन फयाज)
प्रदूषण के अलावा, फ्लोटिंग मार्केट को एक और गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. और वह है युवा पीढ़ी के बीच खेती में रुचि की कमी. जन्ना बेगम रोते हुए आंसूओं के साथ कहती हैं, "मुझे सब्जियां उगाने में फ्लोटिंग मार्केट में बेचने की तुलना में अधिक लागत आती है. बाजार में पहले हलचल रहती थी, लेकिन अब केवल कुछ ही नावों पर व्यापार होता है." मैं बिक्री में अपने पति की मदद करती थी, लेकिन वह बीमार पड़ गए हैं. वह आगे कहती हैं, अब, मैं सब्जियां उगाने पर ध्यान देती हूं, जबकि मेरा बेटा अनिच्छा से उन्हें हर सुबह बाजार में बेचता है. वह इससे खुश नहीं होता है, लेकिन उसे परिवार का समर्थन करना होगा और अपने पिता के इलाज का खर्चा उठाना होगा.
(फोटो: ऐमन फयाज)
जैसे ही सूरज उगना शुरू करता है, जन्ना बेगम का बेटा साहिल, मूली से आधी नाव भरकर घर से निकल जाता है. हालांकि, आज बिक्री निराशाजनक रही, जिससे वह निराश हो गया और खाली हाथ लौट आया.