अखाड़ों की शाही पेशवाई के साथ ही कुंभ का आगाज हो चुका है. बैंडबाजों के साथ हाथी-घोड़े और ऊंट पर सवार नागा साधु प्रयागराज पहुंच रहे हैं.
26 दिसंबर को जूना अखाड़े से शाही पेशवाई की शुरुआत हुई है, जो मकर संक्रांति तक चलेगी. शाही पेशवाई में सभी अखाड़े अपनी सामर्थ्य और वैभव का भरपूर प्रदर्शन करते हैं.
प्रयागराज में हर साल संगम किनारे माघ मेला लगता है. लाखों की संख्या में श्रद्धालु और साधु-संत मेले में पहुंचते हैं. लेकिन इस दौरान नागा साधु मेले में नजर नहीं आते हैं.
दरअसल, नागा साधुओं की संगम में इंट्री सिर्फ कुंभ और अर्धकुंभ के दौरान ही होती है. मेले के दौरान नागा साधुओं की स्टाइल, पहनावा और उनका रहन-सहन, लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र रहता है. हर कैमरे की नजर नागा साधुओं पर लगी रहती है.
नागा साधुओं के लाठी-डंडों के करतब, तलवारबाजी और भस्मी अंदाज पेशवाई की शोभा हैं. नागा साधु अपनी विचित्रता के कारण भी जाने जाते हैं. अधिकांश लोग नागा साधुओं के जीवन से जुड़े गुप्त रहस्य जानना चाहते हैं, लेकिन इनका जीवन इतना गोपनीय होता है कि बहुत कम ही लोग नागाओं के बारे में कुछ जान पाते हैं.
लिहाजा कुंभ में ज्यादातर लोग नागा साधुओं की जिंदगी को समझने के लिए उनके आसपास ही मंडराते दिखते हैं.
चंद दिनों के लिए आम जीवन में दिखने वाले नागा साधु जितना आकर्षण का केंद्र बनते हैं, उससे कहीं ज्यादा ये पुलिस के लिए भी चुनौती हैं. भौतिकता से दूर नागा साधु कब, किस बात पर नाराज हो जाएं, यह समझना मुश्किल होता है. अगर ये एक बार नाराज हो जाएं, तो इनका उग्र रूप को संभाल पाना किसी के वश की बात नहीं. इसलिए इनकी इनके अखाड़ों के आसपास अतिरिक्त पुलिस बल बड़े ही सतर्कता के साथ मुस्तैद रहती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)