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सामाजिक और राजनीतिक नजरिए से बच्चों के लिए अहम माने जाने वाले नेशनलिस्म, सेक्युलरिस्म, सिटिजनशिप, डेमोक्रेटिक राइट्स जैसे विषय अब स्कूलों में नहीं पढ़ाए जाएंगे.
देश के सबसे नामी-गिरामी सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन यानी CBSE ने क्लास 9 से 12 के अकैडमिक ईयर का सिलेबस करीब 30 फीसदी घटाने का फैसला करते हुए राष्ट्रवाद, नागरिता, लोकतांत्रिक अधिकार, धर्मनिरपेक्षता जैसे चैप्टर्स को हटा दिया है. दलील दी गई है कि कोविड महामारी के इस वक्त में जब स्कूल वक्त पर खुल नहीं रहे और पढ़ाई को लेकर बच्चे दिक्कतें झेल रहे हैं तो ये कदम बच्चों पर स्कूली कोर्स का बोझ कम करेगा.
इस फैसले पर विपक्ष ने भी विरोध जताया है, और एक्सपर्ट्स कहते हैं की बच्चों के बोझ कम करने के बहाने एक किस्म की पॉलिटिकल आइडियोलॉजी को सूट करता हुआ ये कदम उठाया गया है.
आज पॉडकास्ट में राइट टू एजुकेशन के नेशनल कन्वीनर, अंबरीष राय और UGC के पूर्व चेयरपर्सन, सुखदेव थोराट से जानेंगे कि इन टॉपिक्स के सिलेबस से हटने का मतलब क्या है? और क्विंट के पोलिटिकल एडिटर आदित्य मेनन से समझेंगे कि क्या ये पहली बार हुआ है जब किसी एजुकेशन बोर्ड के फैसले को पोलिटिकल एजेंडे के तौर पर देखा जा रहा है?
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