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दिल्ली हिंसा: कपिल मिश्रा के पक्ष में दिल्ली पुलिस, जांच पर सवाल

क्या दिल्ली पुलिस की दिल्ली हिंसा पर 6 महीने लम्बी जांच को निष्पक्ष कहना सही रहेगा?

फ़बेहा सय्यद
पॉडकास्ट
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 ऐसा पिछली कई चार्जशीट में भी हुआ है कि एविडेंस होते हुए भी पुलिस ने उन्हें झूठा करार दे दिया. 
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ऐसा पिछली कई चार्जशीट में भी हुआ है कि एविडेंस होते हुए भी पुलिस ने उन्हें झूठा करार दे दिया. 
फोटो: क्विंट हिंदी/अर्निका कला 

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रिपोर्ट: फ़बेहा सय्यद
असिस्टेंट एडिटर: मुकेश बौड़ाई
म्यूजिक: बिग बैंग फज

फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई दिल्ली हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस जो जांच पिछले 6 महीने से कर रही थी वो अब आखिर कार खत्म हुई. और इस पूरी हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस ने 17000 पन्नो की चार्जशीट दायर की है. इस चार्जशीट में पुलिस ने ऐसी कई बातें कही हैं जिन पर सवाल उठ रहे हैं. वो इसलिए क्यूंकि पुलिस के दावे फैक्ट्स के साथ मेल नहीं खा रहे हैं. ऐसा पिछली कई चार्जशीट में भी हुआ है कि एविडेंस होते हुए भी पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया उल्टा, उन चीजों को पुलिस ने झूठा करार दे दिया. इसीलिए फिर चाहे बुद्धिजीवी हों या फिर पूर्व आईपीएस अफसर सभी दिल्ली पुलिस पर बार-बार 'बायस्ड' होकर जांच करने के आरोप लगाते आ रहे हैं, यहाँ तक अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली आर्गेनाईजेशन, एमनेस्टी की दिल्ली दंगों की रिपोर्ट में पुलिस को ही भीड़ का साथ देने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है.

दिल्ली हिंसा की इस लम्बी जांच के बाद, कई कड़ियां हैं जो आपस में मेल नहीं खाती हैं, खास कर पुलिस के आरोप किसी अंदाजे या फिर बिलीफ पर बेस्ड दिख रहे हैं. इन्ही मुद्दों को लेकर आज दिल्ली पुलिस की इस FIR 59 वाली चार्जशीट पर पॉडकास्ट में बात करेंगे.

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