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कोरोना वायरस के कारण भारत ने इस साल अप्रैल-मई के महीने में जितनी भयंकर त्रासदी देखी है, उतनी शायद महामारी के शुरू होने से लेकर अब तक नहीं देखी. कभी ऑक्सीजन न मिलने से लोगों को जान गंवानी पड़ी, तो कभी सही दवा के वक्त पर न देने से, कभी डॉक्टरों के न होने से, या कभी हॉस्पिटल में बेड के ना मिलने से लोगों की जानें गईं.
लेकिन महामारी से आने वाली इस नौबत का अंदाजा एक्सपर्ट को था. वो बार-बार चेतावनियां देते रहे, कभी आंकड़ों की शक्ल में, कभी ये कह कर कि अस्पताल को अपनी तैयारी पूरी रखनी जरूरी है, क्योंकि महामारी की दूसरी लहर ज्यादा खतरनाक हो सकती है. एक तरफ एक्सपर्ट का चेताया संदेश, तो दूसरी तरफ सरकारी बयानों में वायरस पर काबू पा लेने जैसे दावे.
12 मार्च 2020 को, भारत में COVID-19 से होने वाली पहली मौत हुई, जब कालबुरगी के एक 76 साल के एक व्यक्ति ने वायरस के कारण दम तोड़ दिया. एक साल से ज्यादा समय के बाद, देश में 3 लाख से ज्यादा मौतें दर्ज की गई हैं. लेकिन इसका दोषी कौन है? हम संख्या में इस नुक्सान को कैसे समझ सकते हैं? क्या भारत जैसे देश में वास्तविक आंकड़े प्राप्त करना संभव है?
और, सबसे महत्वपूर्ण बात, हमें यहां से क्या सीख लेनी चाहिए?
‘वेयर वर यू वेन’ के इस एपिसोड में आज इन्ही सवालों पर बात करेंगे देश के जाने-मानें वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील से, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट और सेंट स्टीफन हॉस्पिटल के पूर्व डायरेक्टर डॉ. मैथ्यू वर्गीस से, और लंदन की मिडलसेक्स यूनिवर्सिटी में मैथमेटिक्स के सीनियर लेक्चरर, डॉ. मुराद बनाजी से.
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Published: 05 Jun 2021,03:33 PM IST