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क्या होगा जब पापा जी इंतजार कर रहे हों कि बेटा आज 12वीं का रिजल्ट लेकर आएगा और बेटा 10वीं वाला लाकर थमा दे? कल्पना ही कर सकते हैं.
जब प्रधानमंत्री से उम्मीद थी कि वो कोरोना से कराह रहे देश के जख्मों पर मरहम लगाएंगे तो वो अपनी कामयाबियों का नमक गिराकर चले गए. उन्होंने दावा किया कि जो 70 साल में नहीं हुआ वो सात साल में हो गया है. और ये बात कई मायनों में सच है. इकनॉमी, रोजगार से लेकर फॉरेन पॉलिसी तक रिकॉर्डतोड़ दुर्गति हुई है.
2020-21 के GDP के आंकड़े आए हैं, तो शुरुआत वहीं से करते हैं. -7.3% के रसातल में जाकर हम बैठ गए हैं. सरकार सात साल की उपलब्धियां गिना रही हैं, लेकिन क्या विडंबना है कि सात साल पहले 2014 में GDP ग्रोथ थी 7.14%. अगर लग रहा है कि ये तो कोरोना का कहर है तो महामारी से पहले 2019-20 हम महज 4.18% ग्रोथ पर खड़े थे.
जिस मेक इन इंडिया का शेर हर मेले और मॉल में दहाड़ा करता था, आज वो भिगी बिल्ली बन कहीं दुबक गया है. वादा था कि 2022 तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 10 करोड़ नौकरियां पैदा करेंगे. CEDA-CMIE के मुताबिक, 2016-17 में करीब पांच करोड़ लोग इस सेक्टर में काम करते थे. 2020-21 में इसमें सिर्फ 2.7 करोड़ लोगों को रोजगार मिल रहा है. यानी कहां तो हम मेक इन इंडिया के जरिए मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में दोगुना रोजगार पैदा करना चाहते थे, हो गए आधे.
इकनॉमी और जीडीपी जैसे कठिन शब्दों से दुर्गति की तस्वीर साफ नहीं दिख रही, तो आम आदमी की भाषा में समझिए...
हम ट्रंप के आने पर गरीबों के गिर्द दीवार खड़ी करते हैं, लेकिन हमारी गरीबी उचक-उचक कर दुनिया को अपना मनहूस चेहरा दिखा रही है. 2014 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का रैंक 76 देशों में 55वां था, जबकि 2020 में भारत 107 देशों में 94 वें नंबर पर रहा. Pew Research Report के अनुसार, 2020 में भारत की मिडिल क्लास जनसंख्या 3.2 करोड़ कम हो गई है, जबकि 7.2 करोड लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए हैं. यानी जिस मिडिल क्लास को रईस बनाने का ख्वाब दिखाया गया था वो सिकुड़ रहा है, गरीब हो रहा है.
हां, ये जरूर है कि इस साल अडानी ने कमाई में जेफ बेजोस और एलन मस्क को पीछे छोड़ दिया. फोर्ब्स की अप्रैल 2021 रिपोर्ट के मुताबिक अंबानी ने जैक मा को पछाड़ दिया. ये जरूर है कि अरबपतियों के मामले में भारत नंबर तीन हो गया. GDP की तुलना में कॉरपोरेट का मुनाफा इस साल दस साल में सबसे ऊपर पहुंच गया. सारी लिस्टेड कंपनियों का संयुक्त मुनाफा इस साल 57.6% बढ़ गया. अमीर और गरीब में खाई बढ़ाना उपलब्धि है तो वाकई तारीफ होनी चाहिए सरकार की.
नोटबंदी पर गोलपोस्ट चेंज करते रहे. पहले कहा कि कालाधन निकालेंगे, भ्रष्टाचार भगाएंगे. फिर बोले आतंकवाद रोकेंगे. फिर आ गए डिजिटिल पेमेंट करेंगे. नोटबंदी से ये सब कितना हुआ मालूम नहीं, लेकिन छोटे मोटे कारोबारियों का बेड़ा गर्क जरूर हो गया.
GST पर राज्य अलग शिकायत कर रहे हैं कि हमारा हक मारा जा रहा है. जो वादा किया गया वो पूरा नहीं हुआ. कोरोना काल में राज्य कराहते रहे कि खर्च बढ़ा है, हमारे हिस्से का पैसा दीजिए. केंद्र ने कहा कर्ज ले लो, फिर खुद लिया. लेकिन देर हुई. अभी ताजा ऐलान है कि राज्यों का मुआवजा चुकाने के लिए केंद्र 1.5 लाख करोड़ का कर्ज लेगा. किसका भला हुआ, सरकार खुद बताए. ऊपर से नौबत संघीय ढांचे को खतरे तक आ गई. कई राज्य का ऐसा कह रहे हैं. तमिलनाडु के वित्त मंत्री ने गंभीर बातें कही हैं.
अच्छा ये भी नहीं है कि माली हालत बिगड़ी तो सरकार से शिकायत कर लें. भूखे सोना है और रोना मना है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर के 'प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट' के अनुसार 2014 में भारत की रैंकिंग 140वीं थी, जबकि 2020 में भारत 142वें स्थान पर पहुंच गया. धर्म के आधार पर हम नागरिकता दे रहे हैं. UAPA, CAA, NRC को लेकर अंदर-बाहर आलोचनाएं हो रही हैं. कश्मीर में हम शांति का दावा करते हैं, कश्मीरियों के दिल में कैसा तूफान मचा है, बताते नहीं. पिंजरे में बंद कर दीजिए और कहिए शांत हैं.
फिर चौंक जाइए कि अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस ये कहने की जुर्रत और जरूरत महसूस कर रही है कि भारत आजाद से थोड़ा कम आजाद हो गया है. हम नकार दें, हमारी मर्जी. दूसरा नेरेटिव न चले इसलिए ट्विटर से टंटा है, वॉट्सऐप से पंगा है. घर में आवाज उठे तो जेल में डाल दो, बाहर कोई आलोचना करे तो साजिश बता दो.
शासन के शुरुआती सालों में मोदी डिप्लोमेसी का डंका था, या कम से कम माहौल बनाया गया था. मजाक बनता था कि मोदी आज किस देश के लिए उड़ने वाले हैं. इतनी उड़ानों से आज हम कहां पहुंचे. नेपाल तक आंख दिखाता है. चीन चढ़ आया. देश से झूठ बोला गया कि चीन ने एक इंच जमीन नहीं ली. तो हमारे सैनिक क्यों शहीद हुए? और बाद में जो खुद सरकार ने कहा कि चीन पीछे हट रहा है, उसका क्या? कहां आ गया था चीन कि पीछे हट रहा था?
ट्रंप की मोहब्बत में विदेश नीति की रवायत भूले. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में चीयर लीडर बने. अमेरिका ने ट्रंप से ब्रेकअप कर लिया. बाइडेन आ गए. अब क्या करेंगे? जयशंकर तब कमला हैरिस से मिलना नहीं चाह रहे थे, अब कमला उपराष्ट्रपति हैं. झेंपना होगा?
किसी पर भरोसा नहीं, आरएसएस पर तो है? भागवत कह रहे हैं कोरोना पर सरकार गफलत में रही. क्यों नहीं कहते देश के खिलाफ साजिश कर रहा है संघ?
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Published: 01 Jun 2021,07:21 PM IST