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मोदी सरकार के 7 साल- छोड़ भी दें कोरोना काल तो भी बहुत बुरा हाल

उपलब्धियां गिनाते समय क्यों नहीं लेते मेक इन इंडिया, GST, नोटबंदी का नाम?

संतोष कुमार
नजरिया
Updated:
‘मन की बात’ में PM मोदी ने गिनाया पिछले 7 साल की उपलब्धियां
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‘मन की बात’ में PM मोदी ने गिनाया पिछले 7 साल की उपलब्धियां
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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क्या होगा जब पापा जी इंतजार कर रहे हों कि बेटा आज 12वीं का रिजल्ट लेकर आएगा और बेटा 10वीं वाला लाकर थमा दे? कल्पना ही कर सकते हैं.

जब प्रधानमंत्री से उम्मीद थी कि वो कोरोना से कराह रहे देश के जख्मों पर मरहम लगाएंगे तो वो अपनी कामयाबियों का नमक गिराकर चले गए. उन्होंने दावा किया कि जो 70 साल में नहीं हुआ वो सात साल में हो गया है. और ये बात कई मायनों में सच है. इकनॉमी, रोजगार से लेकर फॉरेन पॉलिसी तक रिकॉर्डतोड़ दुर्गति हुई है.

‘मन की बात’ के ट्विटर हैंडल पर बताया गया था 30 मई के एपिसोड के लिए ‘पावर ऑफ पॉजिटिविटी’ टॉपिक होगा. आलोचना हुई कि जब लाखों लोग कोरोना पॉजिटव आ रहे हैं और हजारों मर रहे हैं तो पॉजिटिविटी की बात क्यों. फिर ये ट्वीट डिलीट हो गया. लगा कि टॉपिक बदलेगा, लेकिन मन की बात में प्रधानमंत्री ने ढेर सारी पॉजिटिव बातें कीं. कोरोना पर रिपोर्ट कार्ड के बजाय बताने लगे 7 साल की उपलब्धियां. लेकिन वहां भी उन्होंने बहुत संभलकर सेलेक्टिव बातें कीं. उन्होंने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट्स में से ज्यादातर का नाम तक नहीं लिया. मेक इन इंडिया, नोटबंदी, जीएसटी... इनकी कोई चर्चा नहीं.

रसातल में इकनॉमी

2020-21 के GDP के आंकड़े आए हैं, तो शुरुआत वहीं से करते हैं. -7.3% के रसातल में जाकर हम बैठ गए हैं. सरकार सात साल की उपलब्धियां गिना रही हैं, लेकिन क्या विडंबना है कि सात साल पहले 2014 में GDP ग्रोथ थी 7.14%. अगर लग रहा है कि ये तो कोरोना का कहर है तो महामारी से पहले 2019-20 हम महज 4.18% ग्रोथ पर खड़े थे.

(ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी)

भीगी बिल्ली बना मेक इन इंडिया का शेर

जिस मेक इन इंडिया का शेर हर मेले और मॉल में दहाड़ा करता था, आज वो भिगी बिल्ली बन कहीं दुबक गया है. वादा था कि 2022 तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 10 करोड़ नौकरियां पैदा करेंगे. CEDA-CMIE के मुताबिक, 2016-17 में करीब पांच करोड़ लोग इस सेक्टर में काम करते थे. 2020-21 में इसमें सिर्फ 2.7 करोड़ लोगों को रोजगार मिल रहा है. यानी कहां तो हम मेक इन इंडिया के जरिए मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में दोगुना रोजगार पैदा करना चाहते थे, हो गए आधे.

2014 में भारत की GDP में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान 15% था, जबकि 2019 में यह 14% पर आ गया. जब भारत ने ‘मेक इन इंडिया’ लॉन्च किया था तब वियतनाम में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का GDP में योगदान 13% था, जो अब बढ़कर 16% हो गया. श्रीलंका में अभी यह 16%, थाईलैंड में 27%, इंडोनेशिया में 19%, फिलिपींस में 19%, मलेशिया में 21%, सिंगापुर में 20% और जर्मनी में 20% है. बांग्लादेश तक में इस बीच में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का GDP में योगदान 16% से बढ़कर 18% हो गया है.

इकनॉमी और जीडीपी जैसे कठिन शब्दों से दुर्गति की तस्वीर साफ नहीं दिख रही, तो आम आदमी की भाषा में समझिए...

  • NSSO डेटा के अनुसार, 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1% थी जो पिछले 45 वर्ष में सबसे ज्यादा थी. अभी की बात करें तो 30 मई 2021 को CMIE के आंकड़े के अनुसार, बेरोजगारी दर 11.8% है. इस साल नौकरी पेशा लोगों की हालत ये है कि करीब 1 करोड़ लोगों की नौकरी गई है.
  • जो नौकरी में हैं उनकी सैलरी कम बढ़ रही. Aon Hewitis एनुअल सैलेरी सर्वे के अनुसार, 2014 में सैलेरी में बढ़ोतरी 10% थी जोकि 2020 में 6 .1% हो गई.
  • आमदनी बढ़ी नहीं, महंगाई जरूर बढ़ गई. अच्छे दिन आएंगे का वादा कर आई सरकार ने पेट्रोल-डीजल में आग लगा रखी है. जून 2014 में पेट्रोल का दाम दिल्ली में 71.51 ₹/लीटर था, जोकि 31 मई 2021 को 94.23 ₹/लीटर हो गया है. इसी तरह जून 2014 में डीजल का दाम दिल्ली में 57.28 ₹/लीटर था जबकि 31 मई को 85.15 ₹/लीटर है. कहने को तो तेल के दाम को बाजार आधारित कर दिया गया, लेकिन इंटरनेशनल बाजार में कच्चे तेल के दाम घटते गए और सरकार ने ड्यूटी बढ़ा-बढ़ाकर आम आदमी की जेब काटी.
(ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी)
  • किसी भी गृहिणी से पूछिए, उनका राशन का बिल दोगुन हो गया है. दिल्ली में जून-जुलाई 2013 के बीच अरहर दाल का दाम लगभग ₹70 प्रति किलो था, जबकि मई 2021 में यह ₹108 प्रति किलो तक पहुंच गया है. दिल्ली में जो सरसों तेल 2014 में ₹90 प्रति लीटर के आसपास मिलता था, 28 मई 2021 को ₹171 प्रति लीटर हो गया है. आप किसी से पूछिए इतनी सैलरी बढ़ी? भभक उठेगा.
  • विश्व बैंक के आंकड़े के मुताबिक, 2014 में भारत का GDP/कैपिटा ग्रोथ 6.187 % था, 2019 में यह लगभग आधा होकर 3.129% हो गया. हम NRC बनाकर बांग्लादेशियों को देश में घुसपैठ से रोकना चाहते हैं, लेकिन अब वो खुद ही नहीं आएंगे. बांग्लादेश में GDP/कैपिटा ग्रोथ 2014 के 4.856% से बढ़कर 2019 में 7.032% हो गया है.
  • 2014-15 में इलेक्ट्रिसिटी प्रोडक्शन ग्रोथ 8.84% थी जबकि 2020-21 (फरवरी 2021 तक) में यह -2.49% हो गई.
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अमीर और अमीर, मिडिल क्लास बना गरीब

हम ट्रंप के आने पर गरीबों के गिर्द दीवार खड़ी करते हैं, लेकिन हमारी गरीबी उचक-उचक कर दुनिया को अपना मनहूस चेहरा दिखा रही है. 2014 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का रैंक 76 देशों में 55वां था, जबकि 2020 में भारत 107 देशों में 94 वें नंबर पर रहा. Pew Research Report के अनुसार, 2020 में भारत की मिडिल क्लास जनसंख्या 3.2 करोड़ कम हो गई है, जबकि 7.2 करोड लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए हैं. यानी जिस मिडिल क्लास को रईस बनाने का ख्वाब दिखाया गया था वो सिकुड़ रहा है, गरीब हो रहा है.

हां, ये जरूर है कि इस साल अडानी ने कमाई में जेफ बेजोस और एलन मस्क को पीछे छोड़ दिया. फोर्ब्स की अप्रैल 2021 रिपोर्ट के मुताबिक अंबानी ने जैक मा को पछाड़ दिया. ये जरूर है कि अरबपतियों के मामले में भारत नंबर तीन हो गया. GDP की तुलना में कॉरपोरेट का मुनाफा इस साल दस साल में सबसे ऊपर पहुंच गया. सारी लिस्टेड कंपनियों का संयुक्त मुनाफा इस साल 57.6% बढ़ गया. अमीर और गरीब में खाई बढ़ाना उपलब्धि है तो वाकई तारीफ होनी चाहिए सरकार की.

कहां तो किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा लेकर आए थे. आज 6 महीने से किसानों से जंग चल रही है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े के अनुसार, 2014 में 5650 किसानों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 5957 हो गया.

नोटबंदी और जीएसटी की डबल मार

नोटबंदी पर गोलपोस्ट चेंज करते रहे. पहले कहा कि कालाधन निकालेंगे, भ्रष्टाचार भगाएंगे. फिर बोले आतंकवाद रोकेंगे. फिर आ गए डिजिटिल पेमेंट करेंगे. नोटबंदी से ये सब कितना हुआ मालूम नहीं, लेकिन छोटे मोटे कारोबारियों का बेड़ा गर्क जरूर हो गया.

रही सही कसर जीएसटी ने पूरी कर दी. टैक्स व्यवस्था सरल करने चले थे, जटिल बना गए. कारोबारी सरकारी खानापूर्ति में सिर खपाए या कारोबार में दिमाग लगाए? जीएसटी नाम के लाइसेंसी राज ने कैसा कहर ढाया है ये जाकर छोटे कारोबारियों से पूछिए.

GST पर राज्य अलग शिकायत कर रहे हैं कि हमारा हक मारा जा रहा है. जो वादा किया गया वो पूरा नहीं हुआ. कोरोना काल में राज्य कराहते रहे कि खर्च बढ़ा है, हमारे हिस्से का पैसा दीजिए. केंद्र ने कहा कर्ज ले लो, फिर खुद लिया. लेकिन देर हुई. अभी ताजा ऐलान है कि राज्यों का मुआवजा चुकाने के लिए केंद्र 1.5 लाख करोड़ का कर्ज लेगा. किसका भला हुआ, सरकार खुद बताए. ऊपर से नौबत संघीय ढांचे को खतरे तक आ गई. कई राज्य का ऐसा कह रहे हैं. तमिलनाडु के वित्त मंत्री ने गंभीर बातें कही हैं.

कोई ताज्जुब नहीं कि आज प्रधानमंत्री मोदी अपनी उपलब्धियां गिनाते समय अपने इन ‘मास्टर स्ट्रोक’ का जिक्र तक नहीं करना चाहते.

जेबें खाली, जुबां पे ताला

अच्छा ये भी नहीं है कि माली हालत बिगड़ी तो सरकार से शिकायत कर लें. भूखे सोना है और रोना मना है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर के 'प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट' के अनुसार 2014 में भारत की रैंकिंग 140वीं थी, जबकि 2020 में भारत 142वें स्थान पर पहुंच गया. धर्म के आधार पर हम नागरिकता दे रहे हैं. UAPA, CAA, NRC को लेकर अंदर-बाहर आलोचनाएं हो रही हैं. कश्मीर में हम शांति का दावा करते हैं, कश्मीरियों के दिल में कैसा तूफान मचा है, बताते नहीं. पिंजरे में बंद कर दीजिए और कहिए शांत हैं.

(ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी)

फिर चौंक जाइए कि अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस ये कहने की जुर्रत और जरूरत महसूस कर रही है कि भारत आजाद से थोड़ा कम आजाद हो गया है. हम नकार दें, हमारी मर्जी. दूसरा नेरेटिव न चले इसलिए ट्विटर से टंटा है, वॉट्सऐप से पंगा है. घर में आवाज उठे तो जेल में डाल दो, बाहर कोई आलोचना करे तो साजिश बता दो.

आयुष्मान भारत, पीएम आवास योजना, बिजली, पानी, सड़क, फ्री का राशन, रसोई गैस पर सब्सिडी, किसानों को 6 हजार रुपए, वाकई ये सब उपलब्धियां हैं. लेकिन 70 साल से सरकारें यही तो कर रही थीं. बुनियादी चीजें देने को मेहरबानी बताती आई हैं. फिर कैसे ये सरकार कहती है कि 70 साल में जो नहीं हुआ वो किया? ये तो बेयर मिनिमम है, हमें तो मैक्सिमम का ख्याब बेचा गया था.

उन विदेश यात्रा से क्या मिला?

शासन के शुरुआती सालों में मोदी डिप्लोमेसी का डंका था, या कम से कम माहौल बनाया गया था. मजाक बनता था कि मोदी आज किस देश के लिए उड़ने वाले हैं. इतनी उड़ानों से आज हम कहां पहुंचे. नेपाल तक आंख दिखाता है. चीन चढ़ आया. देश से झूठ बोला गया कि चीन ने एक इंच जमीन नहीं ली. तो हमारे सैनिक क्यों शहीद हुए? और बाद में जो खुद सरकार ने कहा कि चीन पीछे हट रहा है, उसका क्या? कहां आ गया था चीन कि पीछे हट रहा था?

ट्रंप की मोहब्बत में विदेश नीति की रवायत भूले. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में चीयर लीडर बने. अमेरिका ने ट्रंप से ब्रेकअप कर लिया. बाइडेन आ गए. अब क्या करेंगे? जयशंकर तब कमला हैरिस से मिलना नहीं चाह रहे थे, अब कमला उपराष्ट्रपति हैं. झेंपना होगा?

2014-2016 में इंटरनेशनल मीडिया हमारे पीएम के बारे में क्या छापता था, अब क्या छाप रहा है? ये उपलब्धि है? कोरोना, ऑक्सीजन पर अदालतों ने ऐसी-ऐसी बातें कही हैं कि कोई भी पानी-पानी हो जाए, लेकिन नहीं.

किसी पर भरोसा नहीं, आरएसएस पर तो है? भागवत कह रहे हैं कोरोना पर सरकार गफलत में रही. क्यों नहीं कहते देश के खिलाफ साजिश कर रहा है संघ?

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Published: 01 Jun 2021,07:21 PM IST

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