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Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Podcast Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019 उर्दू के ये आशार हम से कह रहे है: ‘आस’ है तो सुकून पास है 

उर्दू के ये आशार हम से कह रहे है: ‘आस’ है तो सुकून पास है 

आज उर्दुनामा में जानिए कि मुश्किल की घडी में ‘आस’, ना-उमीदी का वरका पलट के रख सकती है. 

फ़बेहा सय्यद
पॉडकास्ट
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आज उर्दुनामा में जानिए कि मुश्किल की घडी में ‘आस’, ना-उमीदी का वरक़ा पलट के रख सकती है. 
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आज उर्दुनामा में जानिए कि मुश्किल की घडी में ‘आस’, ना-उमीदी का वरक़ा पलट के रख सकती है. 
(फोटो : क्विंट हिंदी/ इरम गौर)

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साउंड डिज़ाइन, स्क्रिप्ट, और होस्ट : फबेहा सय्यद

एडिटर : शैली वालिया

हम जिंदगी से रोजाना जो आस लगाते हैं, वो तब टूटने लगती है जब हमारे हालात हमारे काबू में नहीं रहते. या जब हम खुद को ऐसे हालात की जद में महसूस करते हैं, जैसे आजकल के माहौल में कर रहे हैं. इस वक्त हम एक मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं, जिसमें हो सकता है कि अपने वर्तमान और भविष्य को लेकर आप घबराहट महसूस कर रहे हों.

ऐसे में जरूरी है कि उम्मीद और हौसले का दामन कस के थाम लें. वैसे भी, इंसान के पास सिर्फ एक ही दिल, एक दिमाग और एक ही जिंदगी होती है. और इसी जिंदगी के बारे में उर्दू के शायरों ने अलग अलग तरह से लिखा है और हमसे अपनी शायरी के ज़रिये ये बार बार कहा है कि जिंदगी आसान बिलकुल नहीं, लेकिन इतनी मुश्किल भी नहीं है जितनी हम बना लेते हैं.

मिसाल के तौर पर नरेश कुमार शाद का शेर :

इतना भी ना-उम्मीद दिल-ए -कम-नज़र ना हो

मुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो.

आज उर्दुनामा के इस एपिसोड में अहमद फ़राज़, फैज़ अहमद फैज़, और साहिर लुधयानवी के कुछ ऐसे आशार समझेंगे, जिन्हें पढ़कर टूटी हुई हिम्मत फिर से बंध जाए.

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