Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Readers blog  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Internationl Womens Day: रूस-यूक्रेन युद्ध हो या हिटलर,महिलाएं सबसे सबसे शोषित

Internationl Womens Day: रूस-यूक्रेन युद्ध हो या हिटलर,महिलाएं सबसे सबसे शोषित

'वीमन, पीस और सिक्योरिटी इंडेक्स' के हिसाब से Syria और Afganistan महिलाओं के लिए दुनिया में सबसे बदतर जगह

क्‍व‍िंट हिंदी
ब्लॉग
Published:
<div class="paragraphs"><p>वॉर में महिलाओं से अत्याचार</p></div>
i

वॉर में महिलाओं से अत्याचार

(फोटो: क्विंट)

advertisement

युद्ध में शक्ति प्रदर्शन का एक तरीका महिलाओं से रेप की सोच से भी जुड़ा है. यही वजह है कि पिछली सदियों में जंग के दौरान और युद्ध के बाद भी औरतों के साथ हुई अमानवीयता की चर्चा आज भी दिल दहला देती हैं. 8 मार्च 1917 में रूसी महिलाओं ने पेट्रोगार्द की सड़कों पर प्रथम विश्व युद्ध और जार के खिलाफ हल्ला बोलकर महिला दिवस (Womens Day)मनाया था, लेकिन आज विडंबना ये है कि उन्हीं का देश ने कभी उनके अपने यूक्रेन पर युद्ध थोप दिया है. लेकिन यूक्रेन में महिलाएं जमकर लोहा ले रही हैं. यूक्रेन की महिलाएं नए तरह के समाज का आईना हैं . ऐसा समाज जहां महिला सिर्फ वॉर विक्टिम नहीं बनी.. युद्ध भी लड़ें और झांसी की रानी की तरह दुनिया को प्रेरित करें.

एक कहावत है कि मर्द युद्ध शुरू करते हैं और महिलाएं नतीजा भुगतती हैं. सदियों के युद्ध इतिहास के पन्नों को पलटें तो ये बात लगभग सही लगती है कि महिलाओं को ही युद्ध की विभीषिका सबसे ज्यादा भुगतनी पड़ती है

हिटलर

सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान और उससे पहले आर्य नस्ल की श्रेष्ठता के नशे में पागल हिटलर ने महिलाओं को सिर्फ बच्चा जनने वाली मशीन बना दिया. हिटलर राज में औरतों को अपनी देह और आत्मा नाजी विचारधारा को सौंपने के लिए कहा जाता था. स्वस्तिका वाले क्रॉस से उन महिलाओं को सम्मानित किया जाता था .

चार से पांच बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं को कांसे का क्रॉस मिलता था, 6 या सात बच्चों वाली मां को रजत और 8 से ज्यादा बच्चों वाली मां को हिटलर सोने का क्रॉस देता था. इतना ही नहीं नॉर्वे में पचास हजार से ज्यादा जर्मन सैनिकों ने महिलाओं के साथ संबंध बनाए ताकि जर्मन राष्ट्रवाद का उनके बच्चे विस्तार कर सकें. हालांकि अभी कुछ साल पहले नॉर्वे के शासक ने इसके लिए महिलाओं से माफी मांगी हैं.

बांग्लादेश का युद्ध

अगर बांग्लादेश लिबरेशन युद्ध की बात करें तो बंगाली महिलाओं के साथ रेप और दूसरे वॉर क्राइम हुए. इसकी भयावह कहानियां आज भी बांग्लादेश के लोगों को पाकिस्तान के खिलाफ आग बबूला कर देती हैं.


साल 1994 में रुवांडा नरसंहार के दौरान 100 दिनों में ही करीब 250,000 से 500,000 महिलाओं के साथ रेप हुआ. संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 1325 में भी ये कहा गया है कि युद्ध जहां सबको प्रभावित करता है, महिलाएं इसकी सबसे ज्यादा पीड़ित हैं. और ये पहले युद्ध के दौरान फिर युद्ध के बाद भी होता है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

विभाजन

भारत का विभाजन और महिलाओं की त्रासदी अमृता प्रीतम के उपन्यास पिंजर में दर्ज होता है जिस पर इसी नाम से एक शानदार फिल्म भी बनी. लेकिन महिलाओं के कत्लोगारद की बहुत सी कहानियां अनकहीं रह गईं. कथित ऑनर क्राइम यानि अपनी औरतों को रेप से बचाने के लिए विभाजन के दौरान पंजाब में मर्दों ने उनको तलवार से चीर दिया. मध्यकाल में जौहर प्रथा का होना युद्ध की इसी त्रासदी का एक बड़ा पहलू है.

सीरिया-अफगानिस्तान-इराक-म्यांमार

आज सीरिया, अफगानिस्तान और अफ्रीकी देशों में महिलाओं के हालात मध्यकाल से भी बदतर है. वीमन, पीस और सिक्योरिटी इंडेक्स के हिसाब से सीरिया और अफगानिस्तान महिलाओं के लिए दुनिया में सबसे बदतर जगह है. इराक में जब युद्ध खत्म हुआ था तो एक अनुमान के मुताबिक 10 लाख से ज्यादा महिलाएं विधवा हो गईं. इनमें से 4 लाख तो सिर्फ बगदाद में ही थीं.

ये युद्ध का सीधा असर महिलाओं पर है. म्यांमार से मिले एक डाटा के मुताबिक साल 2016 से 2017 में रखिन और शान इलाके में महिलाएं दोहरी हिंसा की मार झेली हैं. इनके साथ ना सिर्फ बलात्कार हुआ बल्कि इसके बाद उन्हीं बलात्कारियों के साथ शादी करने के लिए विवश किया गया.

एक और युद्ध है जहां महिलाएं सदियों से सताई जा रही हैं. और ये बात तो अपने ही देश की है. यहां तथाकथित नीची जातियों की महिलाओं को कथित सर्वण अपना निशाना बनाते हैं. हाथरस से लेकर उन्नाव तक आपको इसके सुराग मिल जाएंगे. सर्वण अक्सर दलितों को 'औकात' में लाने के लिए उनकी महिलाओं पर जुल्म ढाते हैं, वो महिलाएं जिनके मर्द खुद उनको सताते हैं. इस तरह से इस तबके की महिलाएं दोहरी मार झेलती हैं.

युद्ध में लड़तीं महिलाएं

तो युद्ध निश्चित तौर पर महिलाओं को विक्टिम बनाता है, लेकिन युद्ध का एक दूसरा पहलू भी है. द्वितीय विश्वयुद्ध में सोवियत संघ की रेड आर्मी ने चार लाख महिलाओं को शामिल किया ताकि वो सिर्फ डॉक्टर और नर्स बनने की बजाए लड़ाकू बन सकें.

जासूस बनकर देश को बचाने के लिए जान की कुर्बानी की मिसाल देने वाली प्रिंसेस नूर इनायत खान (टीपू सुल्तान की वंशज) की कहानी से तो आप वाकिफ ही होंगे. नूर वो जासूस थीं, जो यूरोप को नाजी तानाशाही से आजाद कराने के मिशन का हिस्सा बनीं. उन्हें अंडरकवर महिला रेडियो ऑपरेटर बनाकर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन की तरफ से जर्मन कब्जे वाले फ्रांस में भेजा गया था ताकि नाजियों का भेद जान सकें. हालांकि वो पकड़ी गईं, लेकिन उन्होंने नाजियों के बहुत से प्लान ब्रिटेन को भेजे, जिससे आगे युद्ध जीतने में ब्रिटिश फौज को मदद मिली. आखिर जब उन्हें गोली मारी गई तो वो एक शब्द बोलती रहीं...लिबरेटे यानि आजादी आजादी

आज यूक्रेन की लड़ाई को ही देखिए. ये दुनिया के सामने महिलाओं की एक एक अलग तस्वीर पेश करता है. एक फाइट. यूक्रेन की सेना में 10 फीसदी महिलाएं हैं. दुनिया में कई देश आज भी महिलाओं को सेना में शामिल करने को लेकर हिचकिचाते हैं, तब यूक्रेन की महिलाएं हथियार हाथ में लेकर जिस तरह से जंग लड़ रही हैं वो एक मिसाल है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT