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उर्दू की असली कहानी जान लेंगे तो उसे सौतेली नहीं मानेंगे हिंदुस्तान के लोग

Haldiram के पैकेट पर ''उर्दू'' लिखने पर बवाल मचाने वाले नहीं जानते कि इसमें 75% शब्द संस्कृत और प्राकृत से आए हैं

मोहम्मद साक़िब मज़ीद
ब्लॉग
Updated:
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उर्दू की असली कहानी जान लेंगे तो उसे सौतेली नहीं मानेंगे हिंदुस्तान के लोग

(फोटो- क्विंट हिन्दी)

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जो ये हिंदोस्तां नहीं होता,

तो ये उर्दू जुबां नहीं होती.

किसी शायर की कलम से निकली ये लाइनें बताती हैं कि उर्दू (Urdu) की असली पहचान क्या है, उर्दू भाषा कहां से आई है. हम हिंदुस्तानियों के लबों पर तो उर्दू कई सदियों से रही है लेकिन पिछले कुछ सालों से उर्दू अपनी पहचान को लेकर सुर्खियों में बनी हुई है. पिछले दिनों हल्दीराम के पैकेट पर अरबी में लिखे कुछ शब्दों को उर्दू में बताकार नाराजगी जताई गई, जिसके बाद उर्दू के नाम पर एक बड़ा विरोध देखने को मिला. बात यहां पर नहीं रुकी बल्कि हल्दीराम के खिलाफ सोशल मीडिया पर हैशटैग भी चलाए गए.

जिस देश के सिनेमा के लिए कहा जाता है कि अगर उर्दू न होती तो बॉलीवुड का अंदाज-ए-बयां इतना खूबसूरत न होता, उसी भारत में वक्त-वक्त पर उर्दू जुबांन का विरोध भी देखने को मिलता है, उर्दू से नफरत की जाती है, किसी प्रोडक्ट के पैक पर उर्दू लिखा है तो वह विवादों का जरिया बन जाता है, कई जिलों के नाम इसलिए बदले जाते हैं कि उनकी भाषा उर्दू होती है.

कोई कहता है उर्दू मुसलमानों की भाषा है, कोई कहता है उर्दू पाकिस्तान की भाषा है और भारत की भाषा हिंदी है.

तमाम तरह के विवादों और बहसों के बीच आइए जानते हैं कि उर्दू भाषा का जन्म कहां से हुआ.

कहां हुई उर्दू की पैदाइश?

उर्दू का जन्म 12वीं शताब्दी में उत्तर पश्चिमी भारत के क्षेत्रीय आम बोलचाल की भाषा से हुआ था. यह नई भाषा 12 वीं से 16 वीं शताब्दी के दौरान हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों के गठजोड़ की एक नई नस्ल थी, जिसे गंगा-जमुनी तहजीब का एक मिला हुआ रूप माना गया.

हिंदुस्तान की तमाम रवायतों की रहनुमाई करने की वजह से इस भाषा को ‘हिंदुस्तानी’ कहा गया.

हिंदी के बड़े लेखक मुंशी प्रेमचंद ने कहा है...

जिस तरह अंग्रेजों की जबान अंग्रेजी, जापान की जापानी, ईरान की ईरानी, चीन की चीनी है, इसी तरह हिन्दुस्तान की कौमी जबान को इसी वजन पर हिन्दुस्तानी कहना मुनासिब ही नहीं बल्कि लाजमी है.

उर्दू वक्त के साथ फली-फूली, जो आम अवाम की जुबानों में फिट बैठती गई क्योंकि यह आसानी से बोली और समझी जाने वाली भाषाओं में से एक है. इस भाषा में उर्दू के अलावा हिंदी भाषा के बड़े कवियों ने भी अपनी रचनाएं लिखीं, मुंशी प्रेमचंद इसका एक बड़ा उदाहरण हो सकते हैं.

भारत में उर्दू को कई अलग-अलग नामों से पुकारा गया, इस लिस्ट में हिंदवी , हिंदुस्तानी, जबान-ए-हिंद, हिंदी, जबान-ए-दिल्ली, रेख्ता, गुजरी, दक्खनी, जबान-ए-उर्दू और जबान-ए-उर्दू-ए-मुआला जैसे अल्फाज शामिल हैं.

सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि मौजूदा वक्त में भारत में ऐसे लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है, जो उर्दू को देवनागरी लिपि में पढ़ते हैं और इसी लिपि से उर्दू सीखते हैं.

बता दें कि 75 प्रतिशत उर्दू के शब्दों की उत्पत्ति संस्कृत और प्राकृत भाषा से और सिर्फ 25 से 30 प्रतिशत फारसी और अरबी से है.

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क्या भारत में उर्दू का विरोध होना सही है?

भारत में उर्दू को लेकर कई बार विवाद हो चुका है. पिछले कुछ सालों में देश के कई राज्यों में ऐसे इलाकों का नाम बदलने की मांग हुई, जो उर्दू भाषा में थे. कई इलाकों के तो नाम भी बदले जा चुके हैं. इस तरह के फैसले लेने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश का नाम सबसे आगे है. योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश में अब तक इलाहाबाद, फैजाबाद जैसे जिलों के नाम बदले गए हैं, इसके अलावा कई और जिलों के नामों को बदलने की मांग हो रही है.

जिस सूबे उत्तर प्रदेश में इस तरह के नाम बदलने वाले फैसले सबसे ज्यादा लिए जा रहे हैं, वहां की ऑफिशियल लैंग्वेज हिंदी के साथ उर्दू भी है.

इसके अलावा मौजूदा वक्त में उर्दू भाषा से संबंधित विवाद जिस चैनल के रिपोर्टर के जरिए शुरू हुआ है, उस चैनल पर 'बिंदास बोल' जैसे कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं जिसमें उर्दू शब्दों का प्रयोग किया गया है.

उर्दू के बड़े शायर मुनव्वर राना ने लिखा है...

क्या भारत में चल सकता है ‘एक राष्ट्र-एक भाषा’ पैटर्न?

सितंबर 2019 में हिंदी दिवस के मौके पर गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी स्पीच में ‘एक राष्ट्र एक भाषा’ का पैटर्न देश में लागू करके हिंदी को अपनाने की बात कही थी. गृहमंत्री द्वारा कही गई इस बात पर देश के कई हिस्सों में विरोध किया गया, जिसमें कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य बहुत अधिक नाराज दिखे थे.

तमाम तरह के विरोध के बाद गृहमंत्री ने सफाई देते हुए कहा था कि मैंने हिंदी को थोपने बात नहीं कही थी बल्कि ये कहा कि अपनी मातृभाषा सीखने के बाद लोगों को हिंदी भी सीखनी चाहिए.

इस तरह से अगर हम देखें तो भारत में कोई भी एक भाषा नहीं कायम हो सकती क्योंकि इस देश में हर तरह की भाषाओं को बोलने वाले लोग रहते हैं.

उर्दू सिर्फ एक भाषा ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान में फैली हुई संस्कृति के मिठास का एक रंग है. अगर हिंदुस्तान का कोई भी नागरिक उर्दू का विरोध करता है, तो सीधे तौर पर वो भारतीयता का विरोध करता है.

उर्दू एक ऐसी जुबान है, जिसकी खुश्बू नहीं होगी तो हर हवा फीकी हो जाएगी. किसी शायर ने कहा कहा है...

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Published: 10 Apr 2022,05:44 PM IST

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