advertisement
एशियन गेम्स (Asian Games) का जश्न अगले कुछ दिनों तक भी जारी रहने वाला है, कई कहानियां सुनने को मिलेंगी और कई दोबारा सुनाई जाएंगी, कई विजेता सम्मानित होंगे, जो हार गए उनकी कहानियां भी सुनने को मिलेंगी, क्योंकि भारत ने इस बार 100 मेडल का जो लक्ष्य रखा था वो पूरा हो गया है.
बेशक, कुछ लोगों का पहले ही मानना था कि ये लक्ष्य भारत पूरा कर लेगा, जो आशावादी थे और जो कट्टर राष्ट्रवादी थे वे भी ये जानते हैं खेल में हार-जीत होती ही है लेकिन इस बार भारत ने कमाल कर दिया.
भारत की खेल अथॉरिटी भले ही एशियन गेम्स में बड़ी जीत की बात कर रही थी लेकिन भारत जो मेडल लेकर आया है वो ये बताता है कि खिलाड़ियों की जीत उनके अभ्यास में ही दिख गई थी. और ये भी देखने को मिली कि भले ही गोल्ड नहीं तो कम से कम सिल्वर मेडल जीतने की कोशिश खिलाड़ियों की रही और वे इसमें सफल हुए.
भारतीय खिलाड़ियों का जो काफिला गया था उनमें से हर खिलाड़ी में खुद को बेहतर करने की इच्छा थी, खुद को साबित करने की इच्छा थी और अंतराष्ट्रीय एक्सपोजर पाने की इच्छा थी. भले ही वह शूटिंग टीम हो या फिर पुरुष हॉकी टीम जो 2018 में हॉकी के सेमी फाइनल में हार गई थी.
और इन सबके बाद सबसे लोकप्रिय मेडल आखिरी दिन जीता गया मेडल है - बैडमिंटन युगल - ये खेल 1962 में शुरू हुआ और उसके 61 साल बाद भारत ने पहली बार इसमें गोल्ड मेडल जीता, ये जीत शानदार भी रही क्योंकि इसमें खिलाड़ियों ने दुनिया की नंबर 1 जोड़ी को हराया और इसमें भारत का शुरू से लेकर आखिरी तक दबदबा रहा केवल बीच में एक बार लीड सामने वाले खिलाड़ियों ने ली थी उसके अलावा सात्विकसाईराज रेड्डी और चिराग शेट्टी का प्रदर्शन शानदार था.
तीरंदाजी में तीन गोल्ड मेडल (पुरुष कंपाउंड व्यक्तिगत, पुरुष कंपाउंड टीम और मिश्रित टीम) से लेकर 41 ब्रॉन्ज मेडल की बात हो सबकी यात्रा एक जैसी रही है - हर खिलाड़ी में धैर्य, दृढ़ संकल्प और परिस्थितियों के साथ निरंतर लड़ाई की कहानी रही है.
घुड़सवारी, सेलिंग और रोइंग ने आश्चर्यचकित कर दिया. साथ ही रेसलिंग ने भी आश्चर्य किया और 6 मेडल जीते बावजूद इसके कि पहलवानों के साथ हाल ही में क्या हुआ. बजरंग पुनिया भले ही हार गए लेकिन उन्होंने महिला पहलवानों के लिए जो स्टैंड लिया उसे आने वाली पीढ़ी, युवा और ये देश याद रखेगा.
लोगों की भावना तब चरम पर थी जब यूएस ओपन में ग्रैंड स्लैम फाइनल में पहुंचने वाले सबसे उम्रदराज खिलाड़ी रोहन बोपन्ना ने साढ़े 43 साल की उम्र में अपना पहला मिश्रित युगल गोल्ड जीता. बोपन्ना ने रुतुजा भोसले के साथ मिलकर फाइनल में चीनी ताइपे की त्सुंग-हाओ हुआंग और एन-शुओ लियांग की जोड़ी को 2-6, 6-3, 10-4 से हराया.
मुक्केबाजी में जीते गए पांच ब्रॉन्ज से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी; हमने चार साल पहले जकार्ता में इसमें गोल्ड मेडल जीता था.
सीमा पुनिया 40 साल की उम्र में डिस्कस में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली सबसे उम्रदराज भारतीय ट्रैक और फील्ड एथलीट बन गईं हैं, 2014 में गोल्ड और 2018 में ब्रॉन्ज जीतने के बाद इस खेल में उनका तीसरा मेडल है. हरमिलन बैंस ने 800 मीटर और 1500 मीटर में दो सिल्वर जीते, उनकी मां ने भी 2002 बुसान एशियाई खेलों में 800 मीटर में सिल्वर जीता था.
ओलंपिक और विश्व चैंपियन नीरज चोपड़ा ने 2018 में जीता अपना भाला फेंक गोल्ड बरकरार रखा और सिल्वर मेडल भी भारत के किशोर जेना को मिला.
भारत के लिए यह खेल काफी अच्छे रहे, 62 वर्षीय राजू तोलानी ने ब्रिज में सिल्वर मेडल जीता, जबकि 15 वर्षीय अनाहत सिंह ने स्क्वैश में दो ब्रॉन्ज मेडल जीते.
कंपाउंड तीरंदाजी में पांच गोल्ड मेडल का मिलना सवाल उठाता है कि आखिर इस खेल को ओलंपिक में कब शामिल किया जाएगा.
वहीं अब अगर चीन की मैडल टैली को देखें तो उन्होंने 200 गोल्ड, 111 सिल्वर और 71 ब्रॉन्ज यानी कुल 382 मेडल जीते इससे भारती की तुलना करने पर आप थोड़े दुखी हो सकते हैं लेकिन इसे नोटिस करना जरूरी है.
और इसके बावजूद भारत का 107 मेडल जीतना एक बड़ी उपलब्धि है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)