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पहली बार मैरी कॉम का नाम शायद 2006 में सुना था. उन्होंने उस वक्त वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था. उस वक्त मैं 10वीं में था और क्रिकेट के अलावा तब बाकी किसी भी खेल के बारे में कुछ नहीं पता था. हां ये जरूर पता था कि 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में और 2004 में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने निशानेबाजी में ओलंपिक मेडल जीते थे.
बॉक्सिंग में डिंको सिंह और अखिल कुमार का नाम दिमाग में बैठा था, लेकिन मैरी कॉम का नाम पहली बार सुना था.
2008 में जब बीजिंग में अभिनव बिंद्रा ने भारत के लिए पहला इंडिविजुअल गोल्ड मेडल जीता था और विजेंदर सिंह और सुशील कुमार ने भी अपने-अपने इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीत लिए थे, तो देश भर में खुशी थी. भारत ने पहली बार एक ओलंपिक में 3 मेडल जीते थे.
हर किसी की तरह मैं भी खुश था. इसके बावजूद ओलंपिक खत्म होने तक एमसी मैरी कॉम का नाम कहीं न सुनाई पड़ने पर थोड़ी हैरानी थी. उम्मीद थी कि मैरी ‘ओलंपिक मेडल’ जरूर जीतेंगी, क्योंकि उससे पहले उन्होंने जबरदस्त प्रदर्शन वर्ल्ड चैंपियनशिप में किया था.
2008 में मैरी कॉम को मेडल न मिलने से जो हैरानी हुई थी, वो कुछ वक्त बाद इस ज्ञान में बदली, कि 2008 तक ओलंपिक में महिला बॉक्सिंग की कोई जगह ही नहीं थी. फिर पता चला कि 2012 के लंदन ओलंपिक में ये इवेंट शामिल किया गया है.
इस वक्त तक मैरी कॉम का बॉक्सिंग में जबरदस्त दबदबा बन चुका था. 2008 के बीजिंग ओलंपिक और 2012 में लंदन ओलंपिक शुरू होने के बीच मैरी ने 2 और वर्ल्ड चैंपियनशिप जीत ली थी. यानी 2012 तक मैरी 5 बार वर्ल्ड चैंपियन बन चुकी थीं. महिला बॉक्सिंग में अब तक ऐसा दबदबा किसी का नहीं था.
मैरी ने वेट कैटेगरी तो बदली, लेकिन बॉक्सिंग का अपना आक्रामक अंदाज नहीं. यहां ये समझना जरूरी है कि 48 किलो और 51 किलो कैटेगरी के बॉक्सरों में सिर्फ वजन का फर्क नहीं होता, बल्कि साइज का भी होता है. मैरी के सामने उनसे लंबे कद के बॉक्सर थे. साथ ही मैरी 28 साल की थी. यानी उम्र भी कुछ ज्यादा.
इसके बावजूद मैरी ने अपना जलवा दिखाया और ब्रॉन्ज मेडल हासिल कर लिया. इसके बाद से मैरी का नाम और उनकी उपलब्धियां दिमाग में फिट हो चुकी थीं. इसमें मैं अकेला नहीं था, बल्कि पूरा देश शामिल था.
ये ऐतिहासिक मेडल था. इसके बावजूद मैरी कुछ मायूस थीं. उन्हें हासिल करना था वो गोल्ड और उसके लिए ही मैरी अब 37 साल की उम्र में भी उतनी ही जबरदस्त मेहनत कर रही हैं.
मैरी कॉम न सिर्फ भारतीय बॉक्सिंग की, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बॉक्सिंग के भी सबसे बड़े नामों में से है. 2001 में पहली बार हुई महिला वर्ल्ड चैंपियनशिप में 18 साल की मैरी ने सिल्वर मेडल जीत लिया था. इसके बाद तो मैरी को रोकना मुश्किल हो गया.
यहां 2002 से लेकर 2010 के बीच मैरी ने लगातार 5 वर्ल्ड चैंपियनशिप खिताब अपने नाम किए. इसके बाद कुछ साल मैरी वर्ल्ड चैंपियनशिप में नहीं उतरी.
2019 में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में हालांकि मैरी पहली बार फाइनल में पहुंचने से चूक गईं, लेकिन उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया, जो उनका चैंपियनशिप में 8वां मेडल था. ऐसा करने वाली वो दुनिया की इकलौती बॉक्सर (महिला-पुरुष) हैं.
लेकिन सिर्फ ओलंपिक या वर्ल्ड चैंपियनशिप ही नहीं, मैरी ने और भी कई बड़े खिताब जीते. करीब 2 दशक के करियर में मैरी की सबसे बड़ी खासियत ये रही है, कि वो जिस भी चैंपियनशिप में गईं, वहां से कभी खाली हाथ नहीं लौटीं.
उन्होंने एशियन गेम्स में एक गोल्ड और एक ब्रॉन्ज भी जीता, जबकि कॉमनवेल्थ में भी वो गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं. इनके अलावा एशियन चैंपियनशिप, नेशनल गेम्स समेत कई इवेंट में भी मैरी ने रिंग में अपना जलवा कायम रखा.
मैरी को बॉक्सिंग रिंग में तो तमाम मेडल्स जीते ही, लेकिन उनके प्रदर्शन को हमेशा से देश की सरकारों ने भी सराहा. 2002 में पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद मैरी को अर्जुन अवॉर्ड (2003) से सम्मानित किया गया.
इसके बाद मैरी ने 2005 और 2006 में लगातार 2 बार वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती. उनके इस प्रदर्शन के कारण 2006 में केंद्र सरकार ने उन्हें चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म श्री से नवाजा.
रिंग में लगातार शानदार प्रदर्शन का ईनाम भी उन्हें मिलता रहा और 2009 में उन्हें भारत के सबसे बड़े खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया.
खेल की दुनिया में देश का मान बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने 2016 में उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया. राज्यसभा में रहते हुए मैरी खेलों से जुड़े मुद्दों पर लगातार बात करती रही हैं.
इसके बाद आया सबसे बड़ा सम्मान. करीब 20 साल की उपलब्धियों के लिए मैरी को भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण से नवाजा गया. ये सम्मान पाने वाली वो पहली महिला खिलाड़ी बनीं.
अपने इतने लंबे करियर में मैरी ने लगभग सबकुछ हासिल कर लिया है. नेशनल से लेकर इंटरनेशनल लेवल पर लगभग हर बड़े इवेंट में उन्होंने मेडल हासिल किए हैं. वर्ल्ड चैंपियनशिप का रिकॉर्ड भी उनके नाम है और ओलंपिक मेडल भी.
बीते साल मैरी सेलेक्शन ट्रायल से जुड़े विवाद में फंस गई थीं, लेकिन इन सबको पीछे छोड़ते हुए वो क्वालिफिकेशन के लिए तैयार हैं. जॉर्डन में इसी हफ्ते से एशिया-ओशेनिया ग्रुप के ओलंपिक क्वालिफायर होंगे, जहां मैरी कोटा हासिल कर टोक्यो में गोल्ड जीतने की ओर कदम बढ़ाना चाहेंगी.
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