Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Sports Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019All sports  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019दीपा की आंखों में आंसू देख कोच ने कहा था-चलो आज मैकडॉनल्ड चलते हैं

दीपा की आंखों में आंसू देख कोच ने कहा था-चलो आज मैकडॉनल्ड चलते हैं

दीपा ने साढ़े पांच साल की उम्र से ही जिमनास्टिक शुरू कर दिया था

शिवेंद्र कुमार सिंह
अन्य खेल
Updated:
आज दीपा का जन्मदिन है
i
आज दीपा का जन्मदिन है
(फोटो कोलाज: Quint Hindi)

advertisement

जिमनास्टिक में भारतीय लड़की. चमकती-दमकती पोशाक. रोशनी से जगमगाता एरिना. प्रोदुनोवा जैसा रिस्क. ये सारे दृश्य और बातें 24 साल की एक लड़की की छवि आंखों के सामने लाते हैं. उस लड़की का नाम है दीपा करमाकर. 9 अगस्‍त को दीपा का जन्मदिन है. दीपा ने रियो ओलंपिक्स में बेहद मामूली चूक से मेडल तो गंवाया, लेकिन अपने लिए, अपने कोच के लिए और घरवालों के लिए खूब नाम कमाया. सच ये है कि दीपा हारकर भी जीती. करोड़ों लोगों ने उसका जज्बा देखा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमिताभ बच्चन और सचिन तेंदुलकर तक ने उसकी पीठ थपथपाई. तमाम सम्मान मिले. भारत के ओलंपिक इतिहास में ये पहला मौका था, जब किसी महिला जिमनास्ट ने ओलंपिक में नुमाइंदगी की हो.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दीपा करमाकर(फाइल फोटो: Twitter)

तब दीपा 22 की थी. आज दीपा 25 साल की हो गई है. बीते तीन सालों में फिटनेस के उतार-चढ़ाव से उन्हें गुजरना पड़ा है. 2018 में उसने जिमनास्टिक वर्ल्ड कप के वॉल्ट इवेंट में गोल्ड मेडल जीतकर एक बार फिर सुर्खियां बटोरीं. जाहिर है अब अगर निगाहें हैं तो 2020 के टोक्यो ओलंपिक पर और सपना है पोडियम फिनिश यानी गले में मेडल. वो सपना जो उसने कई साल से पाल रखा है.

स्कूल जाने से पहले शुरू किया जिमनास्टिक

दीपा का पूरा बचपन जिमनास्टिक में ही बीता है. उन्होंने साढ़े पांच साल की उम्र से ही जिमनास्टिक शुरू कर दिया था. तब दीपा ने स्कूल तक जाना शुरू नहीं किया था. दीपा के पापा के अलावा घर में बुआ, फूफा और कुछ और बच्चे खेलकूद में बहुत ‘एक्टिव’ थे. पिता वेटलिफ्टिंग के कोच थे. उन्होंने भी दीपा के बचपन में ही सोच लिया था कि उसको खेलकूद की दुनिया में ले जाएंगे. ऐसा क्या देखा था दीपा के पापा ने बचपन में, इस सवाल के जवाब में दीपा की आंखों में अब भी चमक आ जाती है. वो कहती है-

“मेरे घरवालों ने शायद ‘नोटिस’ किया होगा कि मैं हर वक्त इधर-उधर कूदती रहती हूं. वैसे जिमनास्टिक सीखने की सही उम्र भी यही होती है चार पांच साल. पापा कोच थे ही, तो उन्होंने शायद सोचा होगा कि अगर मुझे जिमनास्टिक कराना ही है तो कम उम्र से ही शुरू करना होगा. जिमनास्टिक करने में मुझे कभी कोई परेशानी नहीं होती थी. मुझे याद है कि घर की तरह ही जिम में भी मैं इधर से उधर कूदती रहती थी. कहीं से भी कूद जाती थी. चोट लगने से बिल्कुल नहीं डरती थी”.
दीपा करमाकर (फाइल फोटो: Reuters)

मुश्किल तब हुई जब पता चला कि दीपा ‘फ्लैट फुट’ है. दीपा तब करीब 8-9 साल की हो चुकी थी. ‘फ्लैट फुट’ के बारे में अमूमन कहा जाता है कि फ्लैट फुट वाले जिमनास्टिक नहीं कर सकते हैं. लेकिन दीपा के कोच नंदी सर ने उसको कुछ ‘एक्सरसाइज’ कराई और उस परेशानी को दूर किया.

एक बार ‘फुल फ्लेजेड’ प्रैक्टिस शुरू हो गई तो हर तरफ से सहयोग भी मिलने लगा. दीपा जब इवनिंग शिफ्ट के स्कूल में थीं, तो उन्हें प्रैक्टिस में जाने के लिए जल्दी छुट्टी मिलती थी. अगर किसी बड़े टूर्नामेंट में जाना है तो उससे पहले भी छुट्टियां मिल जाती थीं. अपने स्कूली दोस्तों को याद करके दीपा कहती हैं-

“मेरे दोस्त अक्सर मुझसे पूछते थे- तू स्कूल से पहले क्यों चली जाती है? मैं उन्हें बताती थी कि मेरा जाना जरूरी है. बाद में जब वो मेरे खेल को जान गए तो सभी बहुत मदद करते थे. प्रैक्टिस पर जाने के लिए जो क्लास मैं छोड़ देती थी उसके सारे नोट्स मेरे दोस्त ही मुझे दिया करते थे. कभी कभी स्कूल में कोई कार्यक्रम हो रहा होता था तब भी मैं तीन बजे के बाद स्कूल में नहीं रूकती थी. मुझे याद है कि मैंने कभी भी स्कूल में पूरी क्लास नहीं की. कभी कभार मेरे दोस्तों को गुस्सा भी आता था कि मैं खेल के साथ साथ पढ़ाई में भी अच्छा करती थी. उन्हीं का नोट्स लेकर उन्हीं से अच्छे नंबर लाती थी लेकिन बाद में उन्हें पता चल गया कि मेरे लिए जिमनास्टिक कितना जरूरी है तो उन्होंने बहुत ‘सपोर्ट’ किया.”
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

इसके बाद साल 2002 में दीपा ने पहला मेडल जीता था. अगरतला में ही एक कंपिटीशन हुआ था. इसी जीत के बाद दीपा को पहली बार ट्रैक सूट मिला था. जीत का सिलसिला इसके बाद आगे बढ़ता रहा. हां, एक बार प्रैक्टिस के दौरान दीपा के हाथ की हड्डी जरूर टूटी, लेकिन दीपा के लिए वो मामूली चोट थी. जिससे उबरने के बाद चोट, जीत और हार का सिलसिला साथ साथ ही चलता रहा.

बहुत जिद्दी हैं दीपा

(फोटो: Twitter)

यूं भी दीपा बहुत जिद्दी हैं. एक बार एक विदेशी कोच ने वॉल्ट की एक नई तकनीक को लेकर कह दिया कि लड़कियां नहीं कर पाएंगी. दीपा को ये बात इतनी चुभ गई कि उन्होंने आखिर में उस तकनीक पर जीत हासिल करके ही दम लिया. इसका श्रेय वो अपने कोच को देती हैं.

दीपा के कोच उसके पिता की तरह हैं. पिछले सत्तरह साल से दोनों साथ हैं. दीपा खुद ही कहती हैं:

वो अपनी बेटी की तरह मेरा खयाल रखते हैं. जब मैं घर में रहती हूं तो भी वो मुझे चार पांच बार फोन करते हैं. सुबह-दोपहर-शाम-रात. तुम क्या कर रही हो? खाना खा लिया? क्या खाया? उनका भी एक बेटा है. मेरी ही उम्र का है. मुझे याद है कि एक बार उसने अपने इम्तिहान के वक्त कोच सर को बुलाया था कि पापा आप आ जाओ, लेकिन कोच सर ने मना कर दिया कि अभी दीपा का कंपिटीशन है. लेकिन प्रैक्टिस में जरा सी भी चूक हुई तो वो माफ नहीं करते.

दीपा के नाम के साथ प्रोदुनोवा का नाम जुड़ा हुआ है. 2016 से पहले प्रोदुनोवा कोई जानता भी नहीं था. फिर ये शब्द इतना लोकप्रिय हो गया कि एक बार एक टैक्सी वाले ने स्टेडियम ‘ड्रॉप’ करते वक्त दीपा से ही पूछ लिया- आप वहीं हैं जो प्रोदुनोवा करती हैं. प्रोदुनोवा इतना खतरनाक होता है कि उसे डेथवॉल्ट भी कहते हैं.

दीपा से आप पूछिए कि डर लगता है प्रोदुनोवा करते वक्त, वो पलट कर आपसे ही पूछ लेती हैं कि डर किस बात का? इतनी प्रैक्टिस क्यों की है प्रोदुनोवा से अगर डरना ही है तो.

(फोटो: Twitter/Dipa Karmakar)

रियो में उन्होंने ये करामात की भी थी. लेकिन दूसरे स्टेप में वो फिनिश करने से चूक गईं. जब हार का पता चला तो दीपा को रोना आया. पहले तो कोच ने समझाया बुझाया लेकिन फिर उनकी भी आंखें भर आईं. इतिहास रचने का मौका हाथ से फिसल चुका था. उस रोज का अब अगर दीपा को कुछ याद है तो बस इतना कि उस दिन से पहले कोच सर ने एक भी दिन ‘मैकडॉनल्ड’ खाने नहीं दिया था. उस दिन वो खुद से ही बोले-चलो मैकडॉनल्ड चलते हैं. तुम्हें जो मन करे वो खाओ. इसके बाद दीपा के दिमाग से रियो ओलंपिक निकल गया. अब दिमाग में क्या है? दीपा कहती हैं- टोक्यो ओलंपिक.

यह भी पढ़ें: दीपा करमाकर ने इस इंजरी से उबरकर रचा है इतिहास...

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 08 Aug 2018,10:29 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT