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खेल में केवल 6.8 सेकेंड बचे थे. भारत 5-4 से आगे चल रहा था. लेकिन तभी जर्मनी को पेनाल्टी कॉर्नर मिल गया. 41 साल बाद ओलंपिक पदक और 49 साल में पहला कांस्य पदक जीतने के भारत के सपने को खत्म करने के करीब पहुंच रहा था जर्मनी.
हालांकि, जर्मनी को पहले पीआर श्रीजेश को पार करना था. केरल के 35 वर्षीय खिलाड़ी ने अपने करियर की सबसे महत्वपूर्ण बचत की. इसके साथ ही उन्होंने आधिकारिक तौर पर द वॉल के रूप में राहुल द्रविड़ की जगह ले ली. हमें यकीन है कि द्रविड़ को उस खिताब से हटने पर कोई ऐतराज नहीं होगा. वास्तव में, उन्हें तीन बार के ओलंपियन को उपाधि सौंपने में बहुत खुशी होगी.
श्रीजेश ने वैसे भी पूरे टूर्नामेंट में शानदार बचत किए हैं. जैसे कि क्वार्टर फाइनल में ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ दो सेकंड से भी कम समय में शानदार डबल-सेव. यकीन न आए तो देखिए.
सोचकर भी डर लगता है कि यह आदमी कुछ समय पहले रिटायर होने पर विचार कर रहा था. यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर ये नहीं होते, तो भारत को अगले तीन साल (अगला ओलंपिक 2024 में होने वाला) पदक के लिए इंतजार करना पड़ता. और, तब तक 35 वर्षीय श्रीजेश मैच में नहीं होते.
सोनी स्पोर्ट्स से श्रीजेश के बारे में बात करते हुए भारत के पूर्व कोच, हरेंद्र सिंह बहुत ही भावुक हो गए और बोले कि, "श्रीजेश इस ओलंपिक में बेहतरीन गोलकीपरों में से एक रहे हैं. उन्होंने एक बड़ी भूमिका निभाई है. उन्होंने हमेशा डिफेंडर्स का मार्गदर्शन किया है. उन्होंने इस क्षण के लिए बहुत त्याग किया है. मैं श्रीजेश के बलिदान के बारे में लिखता जा सकता हूं."
श्रीजेश अपनी युवावस्था में हॉकी के आस-पास कहीं नहीं थे. इसके बजाय, उन्होंने एक धावक के रूप में शुरुआत की और फिर ऊंची कूद, बास्केटबॉल और वॉलीबॉल में चले गए. फिर, जब वह 12 वर्ष के थे, तो उनके कोच ने उन्हें हॉकी में गोलकीपिंग पर अपना ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया.
उन्होंने 2004 में जूनियर राष्ट्रीय टीम से अपनी शुरुआत की और कुछ साल बाद कोलंबो में दक्षिण एशियाई खेलों में खुद को पुरुषों की राष्ट्रीय टीम में वरिष्ठ गोलकीपर एड्रियन डिसूजा और भरत छेत्री के साथ ड्रेसिंग रूम साझा करते हुए देखा. जल्द ही, वह भारत के पहले पसंद के गोलकीपर बन गए.
2014 के एशियाई खेलों और सुल्तान अजलान शाह कप में उनके प्रभावशाली प्रदर्शन के बाद, जहां भारत ने क्रमशः स्वर्ण और कांस्य पदक जीता, केरल सरकार ने 2015 में श्रीजेश को उनके गांव किझाक्कम्बलम में उनके नाम पर एक सड़क का नाम रखकर सम्मानित किया - 'ओलंपियन श्रीजेश रोड'.
इस बार अर्जुन पुरस्कार और पद्म श्री पदक विजेता के नाम की जगह श्रीजेश का नाम? हम सुझाव दे रहे हैं, आदर्श नाम है ना?
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