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टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics 2020) में इस बार तीरंदाजी स्पर्धा (Archery) में दीपिका कुमारी (Deepika Kumari) से पदक से काफी उम्मीद है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वे वर्तमान में नंबर वन रैंक की तीरंदाज हैं. झारखंड में रहने वाली दीपिका ने शून्य से शिखर तक का सफर बड़े ही संघर्षों से तय किया है. उन्होंने गरीबी और अभावों को बहुत करीब से देखा है. लेकिन उन्होंने अपने खेल से ऊंचाईयां हासिल की हैं. सबसे कम उम्र में पद्मश्री पाने वाली खिलाड़ी बनीं. आइए एक नजर डालते हैं दीपिका की संघर्ष भरी दास्तां पर...
ओलंपिक महासंघ द्वारा बनाई गई एक शॉर्ट फिल्म में दीपिका कुमारी और उनके परिवार के सदस्यों ने दीपिका के अबतक के सफर से जुड़ी चुनौतियों को भी बताया है. इस फिल्म में दीपिका बताती हैं कि उनका जन्म एक चलते हुए ऑटो में हुआ था, क्योंकि उनकी मां अस्पताल नहीं पहुंच पायी थीं.
दीपिका के पिता शिव नारायण कहते हैं कि जब दीपिका का जन्म हुआ तब हमारी आर्थिक हालत बहुत दयनीय थी. हम बहुत गरीब थे. मेरी पत्नी और दीपिका की मां 500 रुपये महीना की पगार पर काम करती थी और मैं एक छोटी सी दुकान चलाता था. इसमें आगे बताया गया कि जब दीपिका ओलंपिक खेलने गई थी तब भी उनके परिवार की हालत खराब ही थी.
बचपन के दिनों में दीपिका अपने गांव में आमों पर निशाना लगाया करती थीं. उनका निशाना इतना अचूक होता था कि साथी हैरान रह जाते थे. एक दिन दीपिका अपनी मां गीता के साथ कहीं जा रही थीं. रास्ते में उन्हें आम का पेड़ दिखा, दीपिका ने मां से आम तोड़ने की अनुमति मांगी. लेकिन मां ने यह कहते हुए मना कर दिया कि पेड़ बहुत ऊंचा है, नहीं तोड़ पाओगी. तब दीपिका ने जिद करते हुए कहा कि आज तो मैं आम तोड़कर ही रहूंगी और उसने पत्थर उठाकर निशाना साधा और आम तोड़ लिया. दीपिका का निशाना देख मां हैरान रह गई.
दीपिका से पेड़ की जिस शाखा के आम को तोड़ने के लिए कहा जाता था, वो उसको अपने निशाने से गिरा देती थीं. बाद में दीपिका बांस के तीर-धनुष से अभ्यास शुरू कर दिया और धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि वह तीरंदाजी के लिए ही बनी हैं.
ओलिंपिक डॉट कॉम में दीपिका पर प्रकाशित एक लेख के अनुसार बहुत छोटी उम्र में ही उनके निशाना लगाने के हुनर को गांव वालों ने देख लिया था. जब वह पत्थर से आम पर निशाना लगाकर तोड़ती थी. बाद में वह गुलेल से आम को निशाना बनाती थी.
2007 में दीपिका अपनी नानी के घर गई थीं तो वहां पर उनकी ममेरी बहन ने उन्हें बताया कि उनके यहां अर्जुन आर्चरी एकेडमी है. वहां पर सब कुछ फ्री है. किट भी मिलती है, खाना भी मिलता है. यह सुनने के बाद दीपिका आर्चरी एकेडमी में प्रवेश लेना चाहती थीं. क्योंकि उन्हें लगा कि इससे घर का एक बोझ कम हो जाएगा. उस समय उनके परिवार पर आर्थिक संकट बहुत गहराया था.
दीपिका ने अपनी यह इच्छा जब पिता के सामने रखी तो उन्हें मना कर दिया गया. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में वे कहते हैं कि उनका समाज लड़कियों को घर से इतना दूर भेजना ठीक नहीं मानता है.
छोटी सी बेटी को कोई भी अगर 200 किलोमीटर दूर भेज दे तो लोग क्या कहते? कहते कि ‘बच्ची को खिला नहीं पा रहे थे, इसीलिए भेज दिया...' इसी वजह से मैंने दीपिका को एकेडमी जाने से मना कर दिया था. लेकिन दीपिका ने हार नहीं मानी और आखिरकार रांची से लगभग 200 किलोमीटर दूर मौजूद खरसावां आर्चरी एकेडमी तक पहुंच ही गईं.
TEDx XLRI 2021 में दीपिका ने पुरानी बातों को याद करते हुए कहा,"गरीबी एक ऐसी स्थिति है जो या तो आपको साहसी बना देती है या दु:खी कर सकती है. एक वक्त में हम बहुत गरीब थे, खाने तक के लिए पर्याप्त भोजन नहीं था. फिर भी मैं सपने देखती थी, क्योंकि सपने केवल अमीर ही नहीं देख सकते. कोई भी व्यक्ति सपने देख सकता है. मैं अभी भी सपने देखती हूं. उन सपनों को पूरा करने के लिए मैंने घर छोड़ दिया."
दीपिका अकादमी में इसलिए भी गई, क्यों उन्होंने सोचा था कि उन्हें वहां मुफ्त में खाना मिलेगा और इससे उनके माता-पिता पर एक व्यक्ति के खाने का बोझ कम हो जाएगा.
दीपिका ने अपने एक इंटरव्यू में एकेडमी के दिनों के संघर्ष के बारे में कहा था कि “मैं शुरुआत में काफी रोमांचित थी. क्योंकि एकेडमी में सब कुछ नया-नया सा हो रहा था. लेकिन कुछ समय बाद मेरे सामने कई तरह की समस्याएं आईं जिससे मैं निराश हो गयी थी. वहां बाथरूम नहीं थे. नहाने के लिए नदी जाना पड़ता था, रात में जंगली हाथी आ जाते थे. इसलिए रात में वॉशरूम के लिए बाहर निकलना मना था.
लेकिन बाद में धीरे-धीरे जब तीरंदाजी में मजा आने लगा तो वो सब चीजे मेरे लिए मायने नहीं रखने लगीं. मुझे तीरंदाजी से प्यार हो गया.
दीपिका ने शुरुआत में जिला स्तरीय प्रतियोगिताओं से लेकर कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया. कुछ प्रतियोगिताओं में इनाम राशि 100, 250 और 500 रुपये तक होती थी. लेकिन तब ये भी दीपिका के लिए काफी मायने रखती थीं.
दीपिका कई जगह यह कह चुकी हैं कि उन्होंने तीरंदाजी के खेल को नहीं बल्कि इस खेल ने उन्हें चुना है.
आज दीपिका जिस मुकाम पर हैं उसमें उनके कोच धर्मेंद्र तिवारी का भी अहम योगदान है. 2008 में जूनियर वर्ल्ड चेंपियनशिप के ट्रायल के दौरान दीपिका की मुलाकात धर्मेंद्र तिवारी से हुई जो कि टाटा आर्चरी एकेडमी में कोच थे. कोच धर्मेंद्र ने ही दीपिका को सलेक्ट किया और खरसावां से टाटा आर्चरी एकेडमी लेकर गए. धर्मेंद्र तिवारी वर्तमान में भी दीपिका के कोच हैं.
एक दौर ऐसा था जब दीपिका के पड़ोसी उनके माता-पिता से कहते थे कि उन्हें लड़की को घर से बाहर नहीं भेजना चाहिए. लेकिन, आज जब दीपिका घर जाती हैं, तो वे सभी उनसे मिलने आते हैं और उनके माता-पिता से पूछते हैं कि उन्हें दीपिका के आने की सूचना क्यों नहीं दी गई. वहीं लोग जो पहले दीपका को मना करते थे अब वे अपने बच्चों को दीपिका जैसा बनाना चाहते हैं.
दीपिका कुमारी आज के दौर में भारतीय तीरंदाजों का प्रतिनिधित्व करते हुए आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन भी कर रही हैं. राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता इस खिलाड़ी ने 2010 में ही कई अन्य बड़ी तीरंदाजी स्पर्धाओं में भी पदक जीते थे. इन्हीं शानदार प्रदर्शनों के चलते दीपिका को अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित जा चुका है. दीपिका सबसे कम उम्र में पद्मश्री पुरस्कार हासिल करने वाली खिलाड़ी है.
उन्होंने इंटरनेशनल लेवल में कई मेडल अपने नाम किए हैं. दीपिका महज 18 साल की उम्र में वर्ल्ड नंबर वन खिलाड़ी बन चुकी हैं. अब तक विश्व कप प्रतियोगिताओं में 9 गोल्ड मेडल, 12 सिल्वर मेडल और सात ब्रॉन्ज मेडल जीतने वालीं दीपिका पेरिस में आयोजित तीरंदाजी विश्वकप स्टेज 3 में तीन गोल्ड मेडल जीतकर वर्ल्ड रैंकिंग में पहले पायदान पर पहुंच गई हैं. दीपिका ने ये तीनों गोल्ड मेडल मात्र पांच घंटे में हासिल किए हैं.
टोक्यो 2020 उनका तीसरा ओलंपिक होगा. ऐसे में इस बार उनसे गोल्ड मेडल की काफी उम्मीदे हैं.
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