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टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic 2020) में अब भारतीय छोरे दंगल दिखा रहे हैं. कुश्ती स्पर्धा में रवि दहिया (Ravi Kumar Dahiya) फाइनल में पहुंच गए हैं. अब वो भारत को गोल्ड दिला सकते हैं. इस तरह से भारत का एक और मेडल पक्का हो गया है. हालांकि दीपक पूनिया (Deepak Punia) ने सेमीफाइनल में हार गए हैं. गांव के दंगल से लेकर टोक्यो की रेसलिंग मैट तक सफर इन दोनों पहलवानों के लिए सफर आसान नहीं था. काफी चुनौतियों और संघर्ष को पार करके दोनों ने यह मुकाम हासिल किया है.
भारतीय पहलवान दीपक पूनिया हरियाणा के झज्जर जिले के छारा गांव में एक दूध बेचने वाले परिवार में पैदा हुए थे. उन्होंने ओलंपिक तक का सफर महज सात वर्षों में तय किया है. दीपक जब केवल चार साल के थे तभी से उनको "केतली पहलवान" के नाम से भी बुलाया जाने लगा था.
दीपक पूनिया ने जब कुश्ती शुरू की थी तब उनका लक्ष्य इसके जरिये नौकरी पाना था, जिससे वह अपने परिवार की देखभाल कर सकें. लेकिन कुश्ती में उनकी मेहनत रंग लाई और एक-एक करके वे 2016 में कैडेट और 2019 में जूनियर कैटेगरी में वर्ल्ड चैंपियन बन गए.
एक इंटरव्यू में दीपक ने कहा था कि 2015 तक मैं जिला स्तर पर भी पदक नहीं जीत पा रहा था. मैं किसी भी हालत में नतीजा हासिल करना चाहता था, ताकि कहीं नौकरी मिल सके और अपने परिवार की मदद कर सकूं. मेरे पिता दूध बेचते थे. वह काफी मेहनत करते थे. मैं किसी भी तरह से उनकी मदद करना चाहता था. आखिरकार दीपक 2018 में भारतीय सेना में नायक सूबेदार के पद पर तैनात हुए और उन्होंने पिता को दूध बेचने से भी मना कर दिया.
ईरान के महान पहलवान हजसान याजदानी दीपक के आर्दश हैं. दीपक के पिता सुभाष 2015 से 2020 तक लगातार हर दिन अपने घर से 60 किलोमीटर दूर छत्रसाल स्टेडियम में दीपक को घर का दूध, मेवे और फल खुद पहुंचाते रहे हैं. चाहे बारिश हो, गर्मी या सर्दी, ये सिलसिला कभी नहीं टूटा था.
दीपक के कोच वीरेंदर ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि दीपक उनके पास 15 की उम्र में आया था, लेकिन इससे पहले वह मिट्टी की कुश्ती के दंगल लड़ता था. पांच सौ से लेकर पांच हजार की इनामी राशि दीपक के घर का बड़ा सहारा बनती थी.
स्विट्जरलैंड के स्टेफान रेचमुथ के खिलाफ सेमीफाइनल मैच के बाद वह लड़खड़ाते हुए आये थे, उनकी एक आंख पूरी तरह से बंद थी और पैर की एड़ी बुरी तरह सूजी हुई थी. दीपक ने इस बारे में टीम मैनेजमेंट को सूचना तो दी ही साथ में छत्रसाल अखाड़े में अपने कोच विरेंदर सिंह को फोन लगाया. वीरेंदर उस घटना के बारे में कहते हैं कि दीपक ऐसी स्थिति में भी फाइनल लड़ने की बात कर रहे थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं करने को कहा गया.
हरियाणा के सोनीपत जिले के नहरी गांव में जन्मे रवि दहिया किसान परिवार से आते हैं. एक दौर ऐसा भी था जब रवि के पिता के पास जमीन तक नहीं थी, वे किराए की जमीन पर खेती करते थे. लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने पर भी उनके पिता ने कभी कोई कमी नहीं होने दी.
2015 जूनियर वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में रवि ने 55 किलो कैटेगरी में सिल्वर मेडल जीता था, लेकिन सेमीफाइनल में चोटिल भी हो गए. उसके बाद सीनियर वर्ग में करियर बनाने के दौरान चोट के कारण उन्हें पीछे भी हटना पड़ा था. 2017 के सीनियर नेशनल्स में भी चोट ने उन्हें परेशान किया था, इस वजह से उन्हें कुछ समय तक मैट से दूर रहना पड़ा. इसके बाद उन्हें पूरी तरह से ठीक होने में करीब एक साल लगा था. हालांकि चोट के बाद उन्होंने उसी जगह से वापसी की जहां से वे मैट से दूर हुए थे.
2018 वर्ल्ड अंडर 23 रेसलिंग चैम्पियनशिप में रवि ने वापसी करते हुए 57 किलो कैटेगरी में सिल्वर मेडल पर कब्जा जमाया था. कोरोना से पहले मार्च में दिल्ली में हुई एशियन रेसलिंग चैम्पियनशिप में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था.
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