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दंगल फिल्म में महावीर सिंह फोगाट का किरदार कहता है "म्हारी छोरियां छोरों से कम है के" लेकिन टोक्यो ओलंपिक में भारत को मिले अब तक के 3 मेडल विजेता 'त्रिदेवियों' को देखकर बेशक कहा जा सकता है "म्हारी छोरियां छोरों से आगे हैं".
एक ऐसा देश जहां परिवार बहुत खुले विचारों वाला हो तो बेटियों को 'राजा बेटा' कहता हो, आए दिन खाप पंचायतें और मुख्यमंत्री-नेता लड़कियों के कपड़े पहनने ,फोन रखने और देर रात बाहर घूमने पर खुला फरमान जारी करते हो वहां मीराबाई चानू ,पीवी सिंधु और लवलीना की जीत आपने आप में एक स्टेटमेंट है.
पीवी सिंधु ने रविवार ,1 अगस्त को बैडमिंटन वुमन सिंगल्स में चीन की प्रतिद्वंदी बिन जियाओ को हराकर ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. इसके पहले रियो ओलंपिक में भी सिंधु ने सिल्वर मेडल जीता था. यानी सिंधु दो ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी हैं.
12 साल से अधिक समय तक उनके पिता उनको पुलेला गोपीचंद के एकेडमी ले जाने के लिए सुबह 3:00 बजे उठाते थे और ट्रेनिंग के लिए ले जाते थे .दोनों हर दिन ट्रेन से 60 किलोमीटर का सफर तय करके एकेडमी पहुंचते थे और उतना ही सफर तय करके वापस घर आते थे.
असम से ताल्लुक रखने वाली भारतीय मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन भारत के लिए कम से कम ब्रॉन्ज मेडल पक्का कर चुकी हैं. उन्होंने 30 जुलाई को खेले गए वेल्टरवेट वर्ग के अपने मुकाबले में चीनी ताइपे की निएन-चिन चेन को 4-1 से हराया.
24 जुलाई को टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए पहले ही दिन शानदार आगाज करते हुए मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल दिलाया था. 49 किग्रा वेटलिफ्टिंग कैटेगरी में चालू ने स्नैच में 87 किग्रा और क्लीन एंड जर्क में 115 किग्रा के साथ कुल 202 किग्रा भार उठाया था.
रियो ओलंपिक में मेडल के लिए फेवरेट मीराबाई असफल रही थी और कुछ समय के लिए डिप्रेशन में भी चली गई थीं.टोक्यो में इस जीत के पीछे संघर्ष की अपनी कहानी है.उनकी मां सैखोम तोम्बी देवी के अनुसार
इन त्रिदेवियों की सफलता को भले ही भारत गर्व के साथ तमगे की तरह प्रदर्शित करे लेकिन इन्हें "भारत की बेटियां" कहकर इस जीत में सहभागी दिखने के लिए भी भारत को एक लंबा सफर तय करना है. समय आ गया है जब हम प्यार जताने के लिए बेटियों को 'राजा बेटा' ना बोले. उन्हें अपनी योग्यता साबित करने के लिए 'बेटा' होने की जरूरत नहीं है.
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