गरीबी मिटाने के लिए उठाया था धनुष, अब जाएंगे ओलंपिक

प्रवीण जाधव बोले- गरीबी से लड़ने के लिए उठाया था धनुष

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वर्ल्ड चैंपियनशिप में रविवार को हुए तीरंदाजी के मुकाबले में भारत ने जीता सिल्वर
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वर्ल्ड चैंपियनशिप में रविवार को हुए तीरंदाजी के मुकाबले में भारत ने जीता सिल्वर
(फोटोः Twitter)

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नाले के किनारे बनी झुग्गियों में अपना आधा जीवन बिताने वाले प्रवीण जाधव ने भारत के लिए वो कर दिखाया है, जिसका सपना देश के हर खिलाड़ी के दिल में होता है. अपने घर की गरीबी मिटाने की खातिर धनुष उठाने वाले प्रवीण जाधव अब ओलंपिक जाएंगे.

सतारा में रहने वाले 22 साल के प्रवीण जाधव ने तीरंदाजी में तरुणदीप राय और अतनु दास के साथ मिलकर वर्ल्ड चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता है. इतना ही नहीं उन्होंने ओलंपिक के लिए टिकट भी हासिल कर लिया है.

रविवार को हुआ था मुकाबला

रविवार को भारत और चीन का तीरंदाजी का मुकाबला हुआ. जिसमें भारत की टीम भले ही गोल्ड मेडल से चूक गई हो लेकिन वह ओलंपिक की टिकट को अपनी झोली में डालने में कामयाब हो गई हैं. भारतीय टीम ने नॉर्वे, कनाडा, चीनी ताइपे और नीदरलैंड जैसी मजबूत टीमों को हराकर फाइनल में अपनी जगह बनाई थी.

पिछली बार भारत ने 2005 में वर्ल्ड चैंपियनशिप के पुरुष रिकर्व श्रेणी में फाइनल में प्रवेश किया था.

भारतीय तीरंदाज टीम में प्रवीण जाधव के साथ तरुणदीप राय और अतुन दास हैं.

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गरीबी के कारण उठाया धनुष

सतारा के सार्दे गांव में रहने वाले प्रवीण जाधव ने कुछ साल पहले तक अपने गांव से बाहर कदम नहीं रखा था और अब वह उस टीम का हिस्सा हैं, जिसने गोल्ड मेडल मैच में चीन से हारने से पहले नार्वे, कनाडा, चीनी ताइपे और नीदरलैंड जैसी टीमों को हराया है.

प्रवीण एक ऐसे घर में रहते हैं जहां दो वक्त का खाना मिलने को भी लक्जरी माना जाता है. प्रवीण के तीरंदाजी का खेल चुनने के पीछे सबसे बड़ी वजह उनके घर की गरीबी ही थी. प्रवीण ने अपने परिवार की गरीबी मिटाने के लिए लगभग छह साल पहले धनुष उठाया था.

प्रवीण जाधव ने मीडिया को बताया कि उन्हें ओलंपिक में जगह बनाने केलिए अभी बहुत मेहनत करनी है. उनका सिलेक्शन होने के बाद भी उन्हें अपनी फॉर्म कोबनाए रखने की जरुरत है क्योंकि यह उनके सफर की शुरुआत है.

जाधव के पिता रमेश दिहाड़ी का काम करते हैं. उनके परिवार को दो वक्त का खाना भी बड़ी मुश्किल से नसीब होता था. गरीबी से परेशान होकर ही प्रवीण ने खेल जगत में आने का फैसला किया.

हम एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे, जहां बिजली की भी कोई सुविधा नहीं थी. हमारे पास दो वक्त के खाने के लिए भी पैसे नहीं थे.
प्रवीण जाधव, भारतीय तीरंदाज.

टीचर और कोच ने दी प्रेरणा

एथलेटिक्स में जाने की सलाह उन्हें उनके टीचर बबन भुजबल ने दी क्योंकि इसमें इंवेस्टमेंट जीरो होता है. भुजबल ने बताया की उनकी पसंद बिलकुल स्पष्ट थी. लेकिन एक अच्छी परफॉर्मेंस के लिए उनमें सहनशक्ति की कमी है. जाधव के अल्पपोषित होने की बात करते हुए उन्होंने बताया कि वे एक बार वार्मअप करते हुए बेहोश हो गए थे, जिसके बाद से उन्होंने जाधव की डाइट का पूरी तरह से ध्यान रखा. इसके बाद वे 400 मीटर से 800 मीटर की रेस में दौड़ने लगे.

जाधव ने तीरंदाजी की प्रेक्टिस सबसे पहले बांस के धनुष से करनी शुरू की थी. बाद में, धीरे-धीरे वह आधुनिक उपकरणों पर आए.

पिछले साल जाधव को खेल कोटे के तहत सेना में भी भर्ती कर लिया गया था लेकिन उनके शिक्षक भुजबल और उनके कोच प्रफुल्ल डांदे ने उन्हें तीरंदाजी पर ही ध्यान देने को कहा. जाधव के कोच का कहना है कि वह एक बेहतरीन और फोक्सड तीरंदाज हैं. उन्होंने इससे पहले उनके जैसा खिलाड़ी नहीं देखा. उनका मानना है कि अगर जाधव अपनी फॉर्म बनाए रखते हैं तो अगले जुलाई टोक्यो में होंगे.

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Published: 19 Jun 2019,08:32 PM IST

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