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एशियन गेम्स में भारत का 'शतक': स्पोर्ट्स में कैसे बढ़ रहा है दबदबा? क्या हैं कारण?

Asian Games 2023: 107 मेडल के साथ भारत का ऐशियन गेम्स के किसी भी एडिशन में ये अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा.

धनंजय कुमार
स्पोर्ट्स
Published:
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एशियन गेम्स में 'शतक': स्पोर्ट्स में कैसे बढ़ रहा है भारत का दबदबा? क्या हैं कारण?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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'अबकी बार-सौ पार'- एशियन गेम्स 2023 (Asian Games) शुरू होने से पहले भारत का ये नारा था और अब जब एशियन गेम्स खत्म हो चुके हैं तो भारत ने अपने नारे को हकीकत में तबदील कर दिया है.

107 मेडल के साथ भारत का ऐशियन गेम्स के किसी भी एडिशन में ये अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा. इसमें 28 गोल्ड, 38 सिल्वर और 41 ब्रॉन्ज के साथ टीम इंडिया चौथे स्थान पर रही. सिर्फ चीन, जापान और कोरिया और भारत से ऊपर हैं.

अब एक सवाल आपके मन में भी आया होगा कि अगर 72 सालों में भारत ने अपना बेस्ट एशियन गेम्स परफॉर्मेंस दिया है तो इसके पीछे कारण क्या हैं? स्पोर्ट्स में ऐसा क्या बदला है?

एशियन गेम्स 2023 तो चर्चा में है ही, लेकिन हम यहां बात भारतीय स्पोर्ट्स में आए बदलावों की कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि भारत ने सिर्फ एशियन गेम्स में अपना अब तक का बेस्ट दिया है.

  • इस साल 107 मेडल के साथ ऐशियन गेम्स में भारत का बेस्ट प्रदर्शन

  • 2020 टोक्यो ओलंपिक में भी भारत ने अपने पिछले सालों के रिकॉर्ड तोड़ते हुए 7 मेडल जीते.

  • बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों में भी भारत ने 61 मेडल अपने नाम किए.

  • 2010 में नई दिल्ली CWG के बाद से भारत ने इसके हर एडिशन में 60 से ज्यादा मेडल जीते हैं.

यानी चाहे एशियन गेम्स हो, कॉमनवेल्थ हो या ओलंपिक, भारत अपने मेडल की संख्या हर एडिशन के साथ बढ़ा रहा है.

जाहिर है कि सुधार तभी होता है, जब कुछ बदलाव होते हैं. हम उन्हीं सुधारों की चर्चा कर हैं. इसमें कोई एक या दो नहीं बल्कि कई फैक्टर्स हैं. बड़े अंतरराष्ट्रीय इवेंट्स में खिलाड़ियों/एथलीट्स का बड़ा दल भेजना, भारत का नए खेलों में हिस्सा लेना, नए-नए रोल मॉडल उभर कर आना, इंफ्रास्टक्चर में सुधार, नियमों में बदलाव, सरकारी नीतियां, योजनाएं और संस्थागत सहयोग. इन सभी पहलुओं में हुए बदलावों के आधार पर ही अब नतीजों में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं.

हम यहां सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा नहीं करेंगे बल्कि जरूरी बिंदुओं को ही छूने की कोशिश करते हैं.

जितने ज्यादा खिलाड़ी, उतने ज्यादा मेडल

'जितने ज्यादा खिलाड़ी, उतने ज्यादा मेडल'- भारत के संदर्भ में ये लाइन सटीक लगती है. एशियन गेम्स में भारत ने इस बार, पिछले संस्करणों के मुकाबले, सबसे ज्यादा खिलाड़ी उतारे तो सबसे ज्यादा मेडल भी आए. लेकिन बात सिर्फ इस बार की नहीं है.

2014 के एडिशन में अपवाद मान लें तो 1994 से लेकर 2022 हर एडिशन में भारत के मेडल बढ़ रहे हैं.

भारत ने 2010 में 625 एथलीट्स भेजे जिसमें 65 मेडल आए, 2014 में 541 एथलीट्स गए तो मेडल की संख्या भी गिर गई. 2018 में 570 सदस्यों के दल ने 70 मेडल दिए. 2022 के एडिशन (जो इस साल हुआ) में सबसे ज्यादा 655 सदस्यों का दल गया तो अब तक के सबसे ज्यादा 107 मेडल आए.

नए खेलों में भारत की भागीदारी

भारत ने इस बार एशियन गेम्स में कई ऐसे खेलों में पहली बार भाग लिया जिनका आपने शायद नाम भी नहीं सुना होगा, और सुना होगा तो मेडल की उम्मीद नहीं की होगी. पिछले रिकॉर्ड तोड़कर भारत ने इस साल सबसे ज्यादा 40 अलग-अलग स्पोर्टिंग इवेंट्स में भाग लिया. 2018 में 36 इवेंट्स में भारत ने हिस्सा लिया था.

रोलर स्केटिंग में भारत का न तो कोई इतिहास है, न कोई पिछला प्रदर्शन, लेकिन उसमें 2 मेडल जीते. ब्रिज और सेपक टाकरा जैसे इवेंट्स में भी भारत ने मेडल अपने नाम किए. घुड़सवारी में ड्रेसेज के टीम इवेंट में गोल्ड मेडल जीता.

शूटिंग में भारत के पिछले 2 ओलंपिक खराब गए थे. कोई मेडल नहीं आया, लेकिन इस बार भारतीय दल की तैयारी का नतीजा है कि एशियन गेम्स में शूटिंग में 22 मेडल आए. क्रिकेट में भारतीय टीम इस बार पहली बार खेली और महिला-पुरुष दोनों में गोल्ड मेडल आए.

खेल पत्रकार और विशेषज्ञ मोना पार्थसारथी ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा, "दीपा कर्माकर जब रियो ओलंपिक में चौथे स्थान पर रही थीं, तब किसी को उम्मीद नहीं थी, कि हम जिमनास्ट में यहां तक पहुंच सकते हैं, क्योंकि इसपर हमेशा यूरोपिय देशों और अमेरिका का दबदबा रहता है."

इस बार गोवा में हो रहे 37वें नेशनल गेम्स में कई नए खेल शामिल किए गए हैं. बीच फुटबॉल, रोल बॉल, सेपक टाकरा, स्क्वे मार्शल आर्ट, कल्लियारापट्टू और पेनकक सिल्ट जैसै खेल पहली बार नेशनल गेम्स में खेले जाएंगे. इससे साफ है कि नए-नए खेलों में भी प्रतिभा तलाशने की कोशिश की जा रही है.

जोरदार तैयारी और जमीनी स्तर से छोटी उम्र में नई प्रतिभाएं

इस बार भारत ने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए तैयारियां की. भारत ने 'अबकी बार 100 पार' का नारा दिया, लेकिन ये खाली नारा नहीं था, बल्कि इसकी तैयारी भी हो रही थी. मोना पार्थसारथी कहती है, "पहले टूर्नामेंट से 5-6 महीने पहले तैयारियां शुरू करते थे, लेकिन अब हम एक चक्र पूरा होते ही दूसरे चक्र की तैयारी शुरू कर देते हैं. चाहे वो ओलंपिक हो, CWG या एशियन गेम्स, जिस चीज की टीम को जरूरत है चाहे वो विदेश में ट्रेनिंग हो, कोच हो या सपोर्ट स्टाफ हो, हर चीज खिलाड़ियों को मुहैया कराई गई हैं."

"जमीनी स्तर से टैलेंट सामने आ रहा है. पदक जीतने वालों में बहुत से खिलाड़ी हैं जो खेलो इंडिया से निकले हैं. ग्रास रूट लेवल पर प्रतिभाओं को तराशने के लिए जिस मंच की जरूरत होती है वो भारत को मिला है. बहुत सारे खिलाड़ी नीचे से आए हैं और बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हुए टीम में चुने गए हैं. लक्ष्य ओलंपिक पोडियम योजना (TOPS) भी अहम भूमिका निभा रहा है."
मोना पार्थसारथी, खेल पत्रकार
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इस बार काफी कम उम्र के खिलाड़ियों ने भी कमाल का प्रदर्श किया है. 18 साल की ईशा सिंह, 17 साल की पलक गुलिया, 22 साल के ऐशवर्य प्रताप तोमर ने शूटिंग में मेडल अपने नाम किए. साफ है कि खेलों की तरफ कम उम्र में ही युवा आकर्षित हो रहे हैं. ये खिलाड़ी कम उम्र में ही एकेडमी में जाकर तैयारी शुरू कर देते हैं, जैसे ईशा सिंह गगन नारंग की एकेडमी में जाती हैं. इनके परिणाम भी भारत को मिल रहे हैं.

रोल मॉडल की अहम भूमिका

खेल में रोल मॉडल की भूमिका अहम है. गौर से देखें तो जिन खेलों में भारत ने बड़े नाम दिए, उन्हीं में ज्यादा मेडल आते हैं. उदाहरण के लिए शूटिंग में अभिनव बिंद्रा ने गोल्ड, इसके बाद विजय कुमार और राज्यवर्धन सिंह राठौर ने मेडल जीते. ओलंपिक में इन खिलाड़ियों के मेडल से युवाओं को आकर्षण हुआ और अब कम उम्र में ही खिलाड़ी शूटिंग में मेडल ला रहे हैं. ईशा सिंह, पल्लव और ऐशवर्य का ऊपर जिक्र हम कर चुके हैं. इसी तरह कोच का भी अहम रोल है.

"पस्टल टीम ने काफी सारे मेडल जीते. उनके पास समरेश जंग जैसे कोच हैं, जिन्होंने 2002 कॉमनवेल्थ में 2 गोल्ड और 2006 कॉमनवेल्थ में 5 गोल्ड मेडल जीते. ऐसे खिलाड़ियों का इनपुट भी टीम के साथ है जिससे उन्हें काफी मदद मिल रही है."
मोना पार्थसारथी, खेल पत्रकार

एथलेटिक्स में नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक्स में जब से गोल्ड जीता है, भारत में एथलेटिक्स को लेकर अलग ही माहौल है. लोग एथलेटिक्स की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. इस बार अनु रानी और किशोर जेना ने भी जेवलिन थ्रो में मेडल अपने नाम किए. इसके अलावा रिले टीम, अविनाश सावले, तजिंदर पाल सिंह तूर जैसे एथलीट्स के दम पर भारत एथलेटिक्स में सबसे ज्यादा 29 मेडल जीता.

नीतियां और सहयोग

खेल मंत्रालय की 'टारगेट ओलंपिक पोडियम योजना' (TOPS) जैसे सरकारी योजनाएं भी लक्ष्य निर्धारित करने और खिलाड़ियों को सहयोग देने में मददगार साबित हो रही हैं. इसके अलावा मेडल जीतने पर पुरस्कार, सरकारों से मिलने वाली धनराशी, सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धी, मीडिया कवरेज आदी से भी खिलाड़ी मोटिवेट होकर खेलों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं.

खेलो इंडिया और नेशनल गेम्स से खिलाड़ियों को मंच प्रदान करने और जमीनी स्तर की प्रतिभाओं को तराशने में मदद मिल रही है. नीरज चोपड़ा से लेकर मीराबाई चानू तक आज कई बड़े नाम नेशनल गेम्स खेलकर ही आए हैं.

मोना पार्थसारथी कहती हैं, "पहले खिलाड़ियों को अपने कागज पूरा करने के लिए ही काफी समय देना पड़ता था. उनका ध्यान साजो-सामान जुटाने में रहता था और प्रेक्टिस को ज्यादा समय नहीं दे पाते थे, लेकिन अब सबकुछ बहुत आसान हो गया है. खिलाड़ियों को कुछ चाहिए तो मंजूरी मिलने में कोई बड़ी समस्या नहीं आती. खिलाड़ी बाहर जा सकते हैं और तैयारी कर सकते हैं."

हालांकि, इस बार कुछ खेलों में भारत को थोड़ी निराशा भी हुई. वेटलिफ्टिंग पारंपरिक तौर पर भारत के लिए पदक लाने वाला खेल रहा है, लेकिन इस बार मेडल नहीं आया. कुश्ती में भी भारत को ज्यादातर हार ही मिली. बजरंग पुनिया जैसे पहलवानों के हारने पर आलोचना भी हुई. महिला हॉकी टीम की हार सबसे चौंकाने वाली रही. महिला हॉकी में भारत का दबदबा माना जाता है, लेकिन एशियन गेम्स में हार नसीब हुई.

दूसरी तरफ भारत में क्रिकेट विश्व कप जारी है. कह सकते हैं कि भारतीयों को सबसे ज्यादा पसंद आने वाला खेल क्रिकेट है. अब एशियन गेम्स के बाद क्रिकेट के मैदान पर विश्व कप जीत लेता है तो 2023 खेल की दुनिया में भारत के लिए और ऐतिहासिक बन जाएगा.

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