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ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन ने इंग्लैंड फुटबॉल टीम के खिलाड़ियों को लेकर हुई नस्लीय टिप्पणी की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि इस तरह की हरकत करने वालों को शर्म आनी चाहिए.
यूरो कप 2020 के फाइनल में इटली के हाथों पेनल्टी शूटआउट में हार का सामना करने के बाद इंग्लैंड के तीन खिलाड़ियों - मार्कस रैशफोर्ड, जादोन सांचो और बुकायो साका - को लेकर ट्विटर और इंस्टाग्राम पर नस्लीय टिप्पणियां की गई थीं.
बोरिस जॉनसन ने ट्वीट में लिखा, ''इंग्लैंड की ये टीम सोशल मीडिया पर नस्लीय टिप्पणी नहीं, बल्कि हीरो की तरह तारीफ की हकदार है. ऐसे घटिया व्यवहार के लिए जिम्मेदार लोगों को खुद पर शर्म आनी चाहिए.''
कुछ लोगों ने इन खिलाड़ियों को हार का जिम्मेदार ठहराते हुए "forza italia" हैशटैग के साथ भद्दे-भद्दे कमेंट किए.
लंदन पुलिस ने ट्वीट कर लिखा कि उन्हें फुटबॉलरों के लिए किए गए ''कई आपत्तिजनक और नस्लवादी सोशल मीडिया कमेंट'' के बारे में पता चला है.
उन्होंने आगे लिखा कि ये दुर्व्यवहार पूरी तरह से अस्वीकार्य है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और इसकी जांच की जाएगी.
कंजर्वेटिव सांसद टॉम तुगेंदत ने मांग की है कि इस तरह के व्यवहार पर सोशल मीडिया कंपनियां कार्रवाई करें. उन्होंने ट्वीट कर कहा,
उन्होंने आगे लिखा कि जो ऐसा लिखते हैं उनकी पहचान होनी चाहिए.
हालांकि, इस तरह की नस्लीय टिप्पणियों के बावजूद ज्यादातर कमेंट ऐसे थे जो खिलाड़ियों के समर्थन में थे. पूरे टूर्नामेंट के दौरान इनकी तारीफ भी की गई, क्योंकि ये वही लोग हैं जो कोरोना महामारी से जूझ रहे देश को एक साथ लाने में मदद कर रहे हैं.
इंग्लैंड के फुटबॉलर रहीम स्टर्लिंग को भी नस्लीय दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा है. सोशल मीडिया यूजर्स ने बुधवार को इंग्लैंड की सेमीफाइनल जीत में पेनल्टी जीतने के लिए घोखाधड़ी का आरोप लगाया था.
इंग्लिश फुटबॉल एसोसिएशन ने ट्वीट कर कहा, ''हमें इस बात से घृणा है कि हमारा वो स्क्वायड भेदभावपूर्ण दुर्व्यवहार का शिकार हुआ है. जिन्होंने इस गर्मी में फुटबॉल के लिए सब कुछ दिया है.
यूरो कप के फाइनल में इटली ने पेनल्टी शूटआउट में 3-2 से जीत दर्ज की. 19 साल के साका निर्णायक पेनल्टी को गोल में बदलने में नाकाम रहे, जिससे इटली ने खिताब जीत लिया. जिससे इंग्लैंड की टीम 1966 विश्वकप के बाद यानी 55 साल बाद अपना पहला बड़ा खिताब जीतने में नाकाम हो गई.
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