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‘हमने दीपक को काबिलियत दी, धोनी ने उसे दुनिया के सामने पेश किया’

दीपक चाहर के पिता ने एयर फोर्स की नौकरी छोड़ दीपक की कोचिंग का जिम्मा उठाया

क्विंट हिंदी
क्रिकेट
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दीपक चाहर के पिता लोकेंद्र चाहर
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दीपक चाहर के पिता लोकेंद्र चाहर
(फोटोः क्विंट हिंदी)

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रणजी ट्रॉफी के 2010-11 सीजन में नवंबर का ही महीना था, जब दीपक चाहर ने राजस्थान की ओर से अपने डेब्यू मैच में ही हैदराबाद की टीम को झकझोर कर रख दिया था तो कुछ वक्त तक उनका नाम क्रिकेट फैन्स की जुबान पर रहा.

धीरे-धीरे वक्त तो आगे बढ़ गया, लेकिन दीपक उस शानदार शुरुआत के बावजूद भी आगे नहीं बढ़ पाए. टीम इंडिया तक पहुंचने का सपना दूर-दूर तक पूरा होता नहीं दिख रहा था.

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9 साल बाद उसी नवंबर के महीने में बांग्लादेश के खिलाफ नागपुर में निर्णायक टी20 मैच में दीपक ने एक साथ दो रिकॉर्ड बना डाले. अंतरराष्ट्रीय टी20 में हैट्रिक लेने वाले पहले भारतीय गेंदबाज बने और साथ ही सिर्फ 7 रन पर 6 विकेट लेकर इसी फॉर्मेट में सबसे बेहतरीन गेंदबाजी का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया.

दीपक के पिता समेत पूरा परिवार इस मैच को देख रहा था. इस रिकॉर्ड के पूरे होते ही दीपक और उनके पिता का बरसों का संघर्ष सफल हो गया.

ये वो संघर्ष है, जो सिर्फ रणजी ट्रॉफी के डेब्यू से टीम इंडिया में आने तक दीपक का नहीं था, बल्कि ये तब शुरू हुआ था, जब 12 साल के अपने बेटे को क्रिकेटर बनाने की ठानकर पिता लोकेंद्र चाहर ने एयर फोर्स की नौकरी छोड़ दी थी.

उन्होंने ही दीपक को कोचिंग दी. दीपक को काबिल बनाया और साथ मिलकर बराबर की मेहनत और उतना ही संघर्ष किया. नागपुर में बने उस रिकॉर्ड ने उन्हें गर्व का एहसास तो कराया, लेकिन न तो वो इससे भावुक हुए और न उन्हें हैरानी हुई.

वो कहते हैं-”

“जब आखिरी के दो विकेट थे, तो मुझे पूरी उम्मीद थी, कि जिस तरह का वो बॉलर है और टेल-एंडर्स खेल रहे हैं तो पूरा चांस है.”

दीपक ने उन्हें सही साबित किया. साथ ही सही साबित किया पूर्व कप्तान एमएस धोनी के भरोसे को भी. आईपीएल में चेन्नई सुपरकिंग्स में धोनी की कप्तानी में दीपक ने शुरुआत की और ‘कैप्टन कूल’ के भरोसे और उनके समर्थन ने दीपक में आत्मविश्वास भरा और तय कर लिया टीम इंडिया तक का रास्ता.

लोकेंद्र चाहर भी इसे मानते हैं और कहते हैं कि दीपक में काबिलियत हमने तैयार की, लेकिन पूरी दुनिया के सामने उसे पेश करने का काम धोनी ने ही किया.

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