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रविवार 9 फरवरी का दिन. घर से हजारों मील दूर एक अनजान शहर पोचेफ्स्ट्रूम का मैदान. 15 ऐसे लड़के, जो अपनी आंखों में बसे एक खास सपने को हकीकत में बदलने के लिए जी-जान से जुटे होंगे. एक आखिरी जोर और फिर वो सपना हो जाएगा पूरा, जो आगे आने वाले कई सालों की बुनियाद रखेगा.
कुछ 19 साल, तो कुछ उससे भी कम उम्र के ये लड़के मैदान में उतरेंगे वर्ल्ड चैंपियन बनने के लिए. वर्ल्ड चैंपियन उस खेल में, जिसे ये बेहद प्यार करते हैं. जिसके लिए इन लड़कों और इनके परिवारों ने कई तरह के संघर्ष किए.
इतनी सी उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी का भार संभालना आसान नहीं है, लेकिन जब कोई इनके इस स्तर तक पहुंचने की कहानी सुनेगा है, तो वो समझ सकेगा कि ये इस बोझ के लिए भी तैयार हैं.
प्रियम गर्ग की कप्तानी वाली इस भारतीय टीम में हैं कुछ ऐसे ही हीरे, जिनसे भारत को है बहुत उम्मीदें-
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में जब भारतीय टीम संघर्ष कर रही थी, तो अथर्व अंकोलेकर ने टीम की जिम्मेदारी संभाली और बेहतरीन अर्धशतक लगाकर टीम को अच्छे स्कोर तक पहुंचाया.
उससे पहले न्यूजीलैंड के खिलाफ ग्रुप मैच में अथर्व की स्पिन ने भारत को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी.
चुनौती आर्थिक स्तर पर भी रही. अथर्व की मां ने मुंबई में बस कंडक्टर की नौकरी शुरू की और परिवार की परवरिश की. हालत ये तक रही कि मां कई बार बेटे के मैच भी नहीं देख पाई. इसके बावजूद अथर्व यहां तक पहुंचे और अब वर्ल्ड चैंपियन बनने की कगार पर हैं.
महज 10 साल की उम्र में अथर्व एक प्रैक्टिस सेशन में मास्टर-ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को भी आउट कर चुके हैं. उनकी बॉलिंग से प्रभावित होकर तेंदुलेकर ने उन्हें ऑटोग्राफ किए हुए हैंड ग्लव्स भी दिए थे.
भारतीय टीम के कप्तान हैं प्रियम गर्ग. मेरठ के रहने वाले प्रियम मुश्किल आर्थिक हालात के बावजूद अगर इस मुकाम तक पहुंचे हैं तो इसमें उनके पिता की भी बड़ी मेहनत है. प्रियम को क्रिकेट में बड़े स्तर तक पहुंचाने के लिए उनके पिता ने दूध बेचने से लेकर स्कूल वैन चलाने तक कई काम किए, ताकि आर्थिक तंगी के कारण प्रियम क्रिकेट से दूर न रह जाए.
प्रियम ने कहा कि उनके पिता ने कई तरह के काम किए ताकि वो एक दिन वो क्रिकेटर बन सके.
प्रियम ने सिर्फ 11 साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया था और ऐसे में उनके पिता और बड़ी बहनों ने उनको ये कमी पूरी नहीं होने दी और क्रिकेटर बनने के सपने को पूरा करने में पूरा साथ दिया.
आज प्रियम ऐसे मुकाम पर खड़े हैं, जहां वो मोहम्मद कैफ और विराट कोहली जैसे क्रिकेटरों के साथ इतिहास में अपना नाम लिखा सकते हैं.
आज यशस्वी जायसवाल का नाम भारत के क्रिकेट प्रेमियों की जुबान पर छाया हुआ है. पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल में शतक लगाने वाले यशस्वी टीम के स्टार बल्लेबाज हैं. आईपीएल में 2.4 करोड़ रुपये में उन्हें राजस्थान रॉयल्स ने अपने साथ शामिल किया.
क्रिकेट के मैदान तक पहुंचने का यशस्वी का सफर मिसाल है. यशस्वी उत्तर प्रदेश के भदोही में उनके पिता एक छोटी सी दुकान संभालते हैं. परिवार के आर्थिक हालात ऐसे नहीं थे कि यशस्वी करियर के तौर पर सिर्फ क्रिकेट को चुनें.
जायसवाल अपने पिता के साथ मुंबई पहुंचे, वहां अपने चाचा के पास एक महीने तक रहे. लेकिन जगह की कमी की वजह से वो एक डेयरी में शिफ्ट हो गए, जहां उन्हें कमाई के साथ-साथ रहने का भी ठिकाना मिल गया.
कुछ एक्स्ट्रा पैसों के लिए और कभी-कभी अपना पेट भरने के लिए यशस्वी ने रात में पानी-पूरी तक बेची. फिर उन्हें मिले कोच ज्वाला सिंह, जिन्होंने इस टैलेंट को खराब होने से बचाया और सही दिशा दिखाई.
आज यशस्वी टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज हैं औऱ प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट बनने के प्रबल दावेदार हैं.
किसान का बेटा या तो किसान बनेगा या वो फौज में भर्ती होगा. भारत में खेती-किसानी से जुड़े परिवारों की ज्यादातर कहानी कुछ यही रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश के हापुड़ के किसान योगेंद्र त्यागी ने इसे बदला और अपने बेटे को क्रिकेटर बनाने की ही ठानी.
आज कार्तिक भारतीय अंडर-19 टीम के मुख्य तेज गेंदबाज हैं. गेंदबाजी की शुरुआत करते हैं और अगर कोई ध्यान से देखे तो पाएगा कि कार्तिक बड़ी आसानी से 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंदबाजी करते हैं. पहले ओवर से लेकर आखिरी ओवर तक कमाल की यॉर्कर फेंकते हैं.
कार्तिक के लिए भी राह कोई आसान नहीं थी. पिता ने गांव में ही बेटे की खातिर एक सीमेंट की पिच बनाई, जिसमें कार्तिक लगातार प्रैक्टिस करता रहता. गांव वालों के तानों को भी अनसुना किया. कोचिंग के लिए कार्तिक अपने गांव से करीब 3 घंटे का सफर तय कर रोज मेरठ की एकेडमी में जाते रहे.
कोच विपिन वत्स की यही वो एकेडमी है, जिसने भारत को प्रवीण कुमार और भुवनेश्वर कुमार जैसे बेहतरीन स्विंग गेंदबाज दिए और अब एक और स्विंग स्टार है, जो रफ्तार का कहर भी मचाता है.
राजस्थान के जोधपुर के रवि बिश्नोई को कभी भी बाकी कई खिलाड़ियों की तरह खराब आर्थिक हालातों का सामना नहीं करना पड़ा. पिता स्कूल के हेडमास्टर हैं. फिर भी राह बिश्नोई की भी आसान नहीं रही.
अलग-अलग स्तर पर कई बार ट्रायल देने और ट्रायल में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद हर बार सिर्फ वापस भेज दिया जाना, कुछ यही चलता रहा युवा बिश्नोई के शुरुआती दौर में.
ट्रायल्स में न चुने जाने के कारण अपने बेटे को रोते देख उन्होंने अपने बेटे को हर तरह से समर्थन देना शुरू किया. इसके बाद कोच की मदद से एक बार फिर ट्रायल का मौका मिला और इस बार जब राजस्थान की जूनियर टीम में जगह मिली, तो अच्छे प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हो गया.
19 साल के इस लेग स्पिनर के बेहतरीन प्रदर्शन का सिलसिला अब अंडर-19 वर्ल्ड कप में भी जारी है, जहां उसने अब तक 13 विकेट हासिल किए हैं. रवि बिश्नोई सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले भारतीय गेंदबाज हैं और अब भारत के वर्ल्ड चैंपियन बनने की उम्मीदों का एक बड़ा कारण भी.
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