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कल बैठै-बैठे मैं यूं ही कुछ सोचने लगा, 'कितना अच्छा होता अगर दिल्ली में भारत-पाकिस्तान (India-Pakistan) का मैच होता', हम सब दोस्त जाते, स्टेडियम के सबसे आगे वाले स्टैंड में बैठते और 'इंडिया-इंडिया' चिल्लाते! हमारा जोश देख कोई पाकिस्तानी फैन भी उठता और अपनी टीम को चीयर करने लगता...हम अपनी-अपनी टीमों को सपोर्ट करते, अंत में मैच खत्म होता, हाथ मिलाते और अपने-अपने घर चले आते, एक ऐसी याद संजोकर जिसे दोहराने का ख्वाब हर क्रिकेट प्रेमी देखता.
जैसे ही ख्वाब शब्द मेरे अंदर आया ये ख्याल हवा हो गए...क्योंकि ख्वाब को हकीकत बनाने की डोर राजनीति के हाथ में है.
अगले साल एशिया कप होना है, भारत की टीम पाकिस्तान जाती लेकिन जय शाह आए और बोल दिया कि 'हमारी टीम पाकिस्तान नहीं जाएगी. लेकिन जब पाकिस्तान जाना ही नहीं था तो उसके एशिया कप होस्ट करने के अधिकार पर मुहर ही क्यों लगाई? ACC की मीटिंग में ही ये साफ क्यों नहीं कर दिया गया कि भारत पाकिस्तान नहीं जाएगा इसलिए कोई और जगह देख लेते हैं. ये सब किसी और के हाथ में होता तो समझ भी आता, लेकिन ACC के अध्यक्ष तो खुद जय शाह हैं तो फिर ये एक ही सिक्का दोनों तरफ कैसे गिर जाता है?
इन चचा को देखिए, इन्होंने कपड़ा एक ही पहना है लेकिन आधा रंग हिंदुस्तान का है और आधा पाकिस्तान का.
अहमदाबाद में भारत की जीत के लिए हवन करते पंडित जी
हैदराबाद में पान की दुकान पर कितनी शिद्दत से मैच देखता आदमी
कराची में जहां लोग ढाबे पर ही कुर्सियां लगाकर बैठ गए
रोहित का बाबर से दोस्ताना अंदाज में गले मिलना
हाल ही में वायरल हुई इस फोटो पर तो नजर पड़ी ही होगी, एक पाकिस्तानी फैन हाथ में तख्ती उठाए गुहार लगा रहा है कि "विराट रिटायर होने से पहले एक बार हमारे मुल्क में भी खेलना" अफसोस दोस्त! विराट शायद चाहकर भी आपके मुल्क में न खेल पाएं
इन इमोशंस के लिए कोई सरहद नहीं है, ये इस पार भी और उस पार भी. दुनिया जानती है कि पाकिस्तान में समस्या है. कई गलतियां हैं उसकी लेकिन क्या क्रिकेट का मैदान ही इन मसलों को सुलझाने की सबसे सही जगह है? 26 अक्टूबर को 500 सिख तीर्थ यात्री पाकिस्तान के हसनाबाद में साका पंजा साहिब जाएंगे. पाकिस्तान के साथ हमारे और भी कई तरह से रिश्ते हैं, तो फिर हमेशा क्रिकेट का मैदान ही मसले सुलझाने का अखाड़ा क्यों बनता है?
1990 में सियाचिन ग्लेशियर को लेकर विवाद हुआ तो पाfकस्तान ने खेलने से मना कर दिया, क्योंकि एशिया कप भारत में हुआ था. इसका अगला एडिशन 1993 में पाकिस्तान में होना था, तल्खियां अभी भी कम नहीं हुई थीं. इसमें भारत ने ही जाने से मना कर दिया. नतीजतन ये पूरा एडिशन ही रद्द करना पड़ा. लेकिन अब 2022 आ चुका है और हालात आज भी वही हैं.
4 बयानों के जरिए देखिए कि समझिए कि कैसे खेल को खेल नहीं रहने दिया जाता है
1978 में भारत के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीतने के बाद पाकिस्तानी कप्तान मुश्ताक मोहम्मद ने कहा - "ये हिंदुओं पर दुनिया भर के मुसलमानों की जीत है"
2007 टी -20 विश्व कप में भारत से पाकिस्तान हार गया, तब शोएब मलिक ने "पाकिस्तान और दुनिया भर के मुसलमानों को समर्थन के लिए धन्यवाद, हमने पूरी कोशिश की लेकिन हम कामयाब न हो सके" कहा.
2014 एशियाई खेलों में हॉकी के फाइनल में भारत की जीत के बाद, पीआर श्रीजेश ने कहा, "मैं पाकिस्तान के खिलाफ खेलते समय बदला लेने की स्थिति में आ जाता हूं और मेरा खून भी उबलता है."
2019 में गृहमंत्री अमित शाह ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जीत के बाद कहा था कि "ये पाकिस्तान पर एक और स्ट्राइक है."
दरअसल खेल का मैदान कोई सियासी अखाड़ा नहीं. यहां दो विरोधी एक दूसरे से मुकाबला करते हैं लेकिन यहां दुश्मनी नहीं दोस्ती का स्कोर बनता है. तमाम नाउम्मीदी के बीच खेल उम्मीद की किरण जगाते हैं, इसे बुझाना ठीक नहीं
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