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अगर टीम इंडिया के कोच रवि शास्त्री भी सोशल मीडिया पर ये कहने से नही चूकते कि आईपीएल में आज का मैच जरुर देखना क्योंकि ये गुरु-चेले यानि कि धोनी-पंत का मुकाबला है तो आप समझ ही सकतें है ये मैच चेन्नई सुपर किंग्स बनाम दिल्ली कैपिटल्स ना होकर भारतीय क्रिकेट के दो युग के शख्सियतों के बीच है. एक के पास साबित करने को कुछ नहीं तो दूसरे के लिए खुद को हर मोड़ पर साबित करने की कामयाब शुरुआत हो रही है.
लेकिन, एक हकीकत ये भी है कि पंत ना तो चेले हैं ना ही धोनी उनके गुरु. सच्चाई तो ये है कि पंत के आदर्श ऐडम गिल्क्रिस्ट हुआ करते थे क्योंकि वो बायें हाथ से बल्लेबाजी करते थे. लेकिन, पारंपरिक मीडिया में इस बात को जगह कम ही मिलती है क्योंकि कहानी को गुरु-चेले के मुकाबले के तौर पर गढ़ना आसान हो जाता है.
बहरहाल, इस मैच को एक तरह से भारतीय क्रिकेट में दो युगों के मिलने के एक क्षण के तौर पर शायद देखा जा सकता है. आखिरकार, एक मैच आ ही गया जहां पर धोनी की टक्कर सीधे पंत से है क्योंकि दोनों अपनी-अपनी टीमों के कप्तान हैं, विकेटकीपर हैं और अहम बल्लेबाज भी हैं.
पिछले साल मैनें टीम इंडिया के पूर्व विकेटकीपर किरण मोरे से एक सवाल पूछा था कि जब भारतीय क्रिकेट में कोई दूसरा कपिल देव नहीं आ पाया तो क्या धोनी जैसे खिलाड़ी के रिटायरमेंट के बाद वही होगा तो उनका जवाब हैरान करने वाला था. चूंकि, मोरे धोनी से भी काफी करीब से जुडें हैं और पंत भी अक्सर वक्त मिलने पर मोरे के साथ क्रिकेट पर चर्चा करतें हैं.
शायद मोरे को भी ये अंदाजा नहीं होगा कि नये साल के शुरुआत में पंत कैसे हर मान्यताओं को धवस्त करते हुए खुद के लिए एक ऐसी पहचान बनाने की राह पर चल निकलेंगे जहां धोनी से उनकी तुलना ही बंद हो जायेगी.
अगर धोनी के लिए रांची से निकलकर भारतीय क्रिकेट का सुपरस्टार बनने का सफर किसी परीकथा के सच होने से कम नहीं था तो पंत को पहले ही कदम से महान धोनी की तुलना के साथ गुजरना पड़ा. धोनी को अपने शुरुआती दिनों में कभी भी किसी दिग्गज के साथ तुलना और उनके जैसा खेलने की उम्मीदों के दबाव से नहीं गुजरना पड़ा. हां, कभी भी भारतीय फैंस की इच्छा होती कि काश कोई गिलक्रिस्ट की तरह भारत के लिए भी ऐसे कमाल दिखा पाता. लेकिन पंत को तो भारतीय समर्थक उनके घरेलू मैदान पर ही धोनी से तुलना वाले ताने देने लगते. ये इतना बढ़ गया था कि दिसंबर 2019 में विराट कोहली को ये कहना पड़ा कि कि धोनी के साथ बार-बार तुलना करके और स्टेडियम में उनका नाम लेना पंत जैसे युवा प्रतिभा का अपमान करने के बराबर है.
पंत के देश में भले ही उनको वो अहमियत ना मिल रही हो लेकिन विदेश में उनका सम्मान उस समय भी हो रहा था. मुझे अच्छी तरह से याद है कि कैसे 2020 में न्यूजीलैंड के दौर पर पूर्व विकेटकीपर इयन स्मिथ ने इस लेखक से पूछा था कि आखिर पंत क्यों नहीं है वन-डे या टी20 टीम में?
स्मिथ की ये बात शायद अब हर किसी के ज़ेहन में गूंज रही हो.
ये सच है कि धोनी और पंत की शैली में वैसा ही फर्क है जैसा कि स्वभाविक तौर पर किसी दायें और बायें हाथ के बल्लेबाज में होता है. लेकिन, एक बात जो दोनों में समान है वो है खुद की काबिलियत पर अटूट भरोसा. किसी आलोचक की बातों से कोई फर्क नहीं पड़ना. हालात कैसे भी हों, अपने जज्बे से उसे बदल देना इन दोनों की खूबी रही है.
इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन ने कुछ महीने पहले ब्रिटेन के अखबार Daily Mail के कॉलम में ये बात लिखी.
पंत जानते हैं कि जब तक धोनी खेलेंगे उनके साथ उनकी तुलना होती ही रहेगी. इसलिए उन्होंने इस बात के साथ शालीन तरीके से जीने का अंदाज भी सीख लिया है. ऑस्ट्रेलिया दौरे से जब पंत दिल्ली लौटे तो उन्होंने कहा था कि धोनी के साथ तुलना होने पर अच्छा तो लगता है लेकिन मैं नहीं चाहता हूं कि ऐसा हो क्योंकि मैं अपनी पहचान बनाना चाहता हूं. वैसे भी किसी युवा का किसी ऑयकन के साथ तुलना कैसे हो सकती है? पंत के इस तर्क पर शायद धोनी को भी फख्र हुआ होगा.
लेकिन, पंत जानते हैं कि अगर भारतीय क्रिकेट में उन्हें लंबी रेस का घोड़ा बनना है और एक खास पहचान साबित करनी है तो उन्हें उस रास्ते जरुर गुजरना पड़ेगा जिसने धोनी को क्रिकेट में अमरत्व प्रदान किया है. वो रास्ता है भारत के कप्तान के तौर पर कामयाबी हासिल करना. पंत के लिए उस रास्ते पर चलने के लिए सबसे पहली शुरुआत आईपीएल की ट्रॉफी से ही होगी. अगर कप्तानी के पहले ही मैच में पंत ने धोनी को मात दिया तो शायद आने वाली पीढ़ी ये कह सकती है जिस सीजन धोनी का सूरज अस्त हो रहा था , उसी सीजन में हमने पंत के सूरज को उगते हुए देखा है.
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