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कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka HighCourt) ने अपने एक फैसले में कहा कि मैच फिक्सिंग को भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत दंडनीय और अपराध नहीं माना जाएगा. कोर्ट ने 2019 के कर्नाटक प्रीमियर लीग से संबंधित एक केस को रद्द कर दिया.
क्रिकबज की रिपोर्ट के मुताबिक जज श्रीनिवास हरीश कुमार की बेंच ने कहा इस तरह के मामलों में अपराधियों को दंडित करना बीसीसीआई पर निर्भर करेगा.
हाईकोर्ट ने अपने हाल के फैसले में कहा कि यह सच है कि अगर कोई खिलाड़ी मैच फिक्सिंग करते हुए पाया जाता है, तो एक सामान्य सी बात होगी कि उसने क्रिकेट प्रेमियों को धोखा दिया है लेकिन यह सामान्य भावना अपराध को जन्म नहीं देती है. मैच फिक्सिंग एक बेईमानी का संकेत हो सकता है, एक खिलाड़ी की अनुशासनहीनता, मेंटल करप्शन और इस उद्देश्य के लिए बीसीसीआई को अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का अधिकार है.
बता दें कि, 2019 में कर्नाटक प्रीमियर लीग में मैच फिक्सिंग एक बड़ा मुद्दा था और यह तब सामने आया जब बेंगलुरु पुलिस ने खिलाड़ियों, मालिकों, कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन (KSCA) के एक अधिकारी और एक सट्टेबाज सहित कई के खिलाफ चार्जशीट दायर की.
इस मामले में सीएम गौतम (खिलाड़ी और याचिकाकर्ता 1), अबरार काजी (खिलाड़ी और याचिकाकर्ता 2), अली अशपक उर्फ असफाक हनीफ थारा (बेलगावी पैंथर्स और याचिकाकर्ता 3 के मालिक) और अमित मावी (सट्टेबाज और याचिकाकर्ता 4) मुख्य आरोपी थे.
बता दें कि जज ने कहा कि प्रतिवादी द्वारा यह तर्क दिया गया था कि सट्टेबाजी गेमिंग के बराबर है जो कर्नाटक पुलिस अधिनियम के तहत एक अपराध है. यदि कर्नाटक पुलिस अधिनियम की धारा 2 (7) को देखा जाता है, तो इसमें स्पष्ट रूप से व्याख्या की गई है कि गेम ऑफ चांस में कोई एथलेटिक शामिल नहीं है. क्रिकेट एक खेल है और इसलिए सट्टेबाजी होने पर भी इसे कर्नाटक पुलिस अधिनियम में पाई गई 'गेमिंग' की परिभाषा के दायरे में नहीं लाया जा सकता है.
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