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आधुनिक क्रिकेट के सबसे जेंटलमैन खिलाड़ी राहुल द्रविड़ के करियर की एक बड़ी कमी आखिरकार दूर हो ही गई. यह कमी थी एक अदद वर्ल्ड कप ट्रॉफी जीतने की. द्रविड़ अपने सफल-सुनहरे कैरियर में भले ही यह सपना पूरा नहीं कर पाए लेकिन उनके शिष्यों ने अंडर-19 वर्ल्ड कप जीतकर यह ट्रॉफी आज ‘गुरूदक्षिणा' के रूप में उनकी झोली में डाल दी.
क्रिकेट की दुनिया में ‘श्रीमान भरोसेमंद', ‘संकटमोचक' और ‘भारत की दीवार' जैसे कई विशेषणों के बावजूद द्रविड़ अब तक किसी वर्ल्ड कप विजेता टीम का हिस्सा नहीं रहे थे. लेकिन भारत के जिन युवाओं ने अंडर-19 वर्ल्ड कप जीता उसके गुरु यानी कोच राहुल द्रविड़ हैं.
दरअसल, भारतीय क्रिकेट की अगली नस्ल को तैयार करने की जिम्मेदारी उठाने वाले द्रविड़ ने सितारों की फौज में नहीं बल्कि टीमवर्क में भरोसा रखने वाली एकादश बनाई है और इसकी बानगी अंडर 19 वर्ल्ड कप में देखने को मिली. यह द्रविड़ का ही जज्बा था कि टूर्नामेंट के दौरान बेंगलूरू में आईपीएल की नीलामी हुई लेकिन अपनी युवा ब्रिगेड का ध्यान उन्होंने भटकने नहीं दिया.
द्रविड़ ने इन खिलाड़ियों को सपने देखने का हौसला दिया और वह सपना हकीकत में बदला जो वह बतौर खिलाड़ी पूरा नहीं कर पाये थे. भारत अंडर 19 वर्ल्ड कप में सबसे ज्यादा चार बार वर्ल्ड कप जीतने वाली एकमात्र टीम बन गई. अब तक ऑस्ट्रेलिया और उसके नाम तीन-तीन खिताब थे.
अपने 16 साल के टेस्ट कैरियर में 164 टेस्ट में 13288 रन बनाने वाले द्रविड़ ने वनडे क्रिकेट में 344 मैच खेलकर 10889 रन बनाये. वर्ल्ड कप में 1999 में बतौर रिजर्व विकेटकीपर उन्होंने पदार्पण किया लेकिन भारत का प्रदर्शन टूर्नामेंट में बेहद खराब रहा.
इसी वर्ल्ड कप से हालांकि द्रविड़, सौरव गांगुली और सचिन तेंदुलकर की तिकड़ी का दबदबा दिखाई देने लगा था. चार साल बाद दक्षिण अफ्रीका में गांगुली की कप्तानी में भारतीय टीम खिताब के बिल्कुल करीब पहुंची लेकिन फाइनल में यह सपना टूट गया जब ऑस्ट्रेलिया ने उसे हराकर खिताब जीता.
द्रविड़ की कप्तानी में 2007 में भारत ने वेस्टइंडीज में वर्ल्ड कप खेला जो किसी बुरे सपने से कम नहीं था. भारतीय टीम शुरूआती दौर से ही हारकर बाहर हो गई. द्रविड़ का सपना फिर अधूरा रहा. विधि का विधान देखिये कि भारत ने 2011 में अपनी मेजबानी में 28 साल बाद वर्ल्ड कप अपने नाम किया लेकिन महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी वाली टीम में द्रविड़ नहीं थे. द्रविड़ और गांगुली को टीम में जगह नहीं मिली और वर्ल्ड कप इनके सुनहरे कैरियर का हिस्सा नहीं बन सका.
इसके बाद सितंबर 2011 में वह इंग्लैंड के खिलाफ आखिरी वनडे खेलकर द्रविड़ ने इस प्रारूप से विदा ली तो कहीं ना कहीं वर्ल्ड कप नहीं जीत पाने की कसक रही होगी.
सात साल बाद गुरु द्रविड़ के शिष्यों ने उनके इस सपने को जिया और हकीकत में बदला. भारत के अंडर 19 चैम्पियन बनने की खुशी इस तथ्य के साथ दोहरी हो गई कि द्रविड़ का अधूरा सपना आखिरकार पूरा हुआ.
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