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ऋषभ पंत कमाल के प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं. सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ मिली जीत में उनका योगदान शानदार था. उन्हें मैन ऑफ द मैच चुना गया. उन्होंने 21 गेंद पर 49 रनों की शानदार पारी खेली. इसमें 2 चौके और 5 छक्के शामिल हैं. उनका स्ट्राइक रेट 233.33 रहा.
ये तस्वीर का सिर्फ एक पहलू है. दूसरा पहलू बहुत गंभीर है. इतना गंभीर, जिसके कारण दिल्ली की टीम शानदार प्रदर्शन के बाद भी टूर्नामेंट से बाहर हो सकती थी. अगर ऐसा होता, तो जो ऋषभ पंत मैन ऑफ द मैच बने, वही ‘विलेन’ बन जाते.
आप मैच में ऋषभ पंत के आउट होने के तरीके और उसके बाद पैदा हुई स्थितियों को याद कीजिए. कहानी पूरी तरह साफ हो जाएगी. दिल्ली को जीत के लिए आखिरी 18 गेंद पर 34 रन चाहिए थे.
अब दिल्ली को जीत के लिए 12 गेंद पर सिर्फ 12 रन चाहिए थे. यानी इतने बड़े मैच में अब किसी भी तरह के रिस्क की जरूरत ही नहीं थी. 19वें ओवर की पहली ही गेंद पर रदरफोर्ड आउट हो गए.
मामला अब भी दिल्ली के पक्ष में था क्योंकि पंत क्रीज पर थे. पंत ने तीसरी गेंद पर छक्का मार दिया. इसके बाद अगली गेंद ‘वाइड बॉल’ थी. यानी अब जीत के लिए 7 गेंद पर सिर्फ 5 रन चाहिए थे.
आखिरी ओवर में दिल्ली को जीत के लिए पांच रन चाहिए थे. क्रीज पर अमित मिश्रा और कीमो पॉल थे. खलील अहमद गेंदबाजी करने आए. इसके बाद जो हुआ उसकी जिम्मेदारी ऋषभ पंत को लेनी चाहिए.
टीम मैनेजमेंट को भी ऋषभ पंत से उनकी अति-आक्रामकता के बारे में बात करनी चाहिए. टीम के साथ जुड़े दिग्गज सौरव गांगुली और रिकी पॉन्टिंग को भी ऋषभ पंत को समझाना चाहिए कि क्रिकेट में ‘फिनिशर’ की परिभाषा और उसका रोल क्या होता है.
आखिरी ओवर का नाटकीय घटनाक्रम देखिए-
आईपीएल से लेकर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जब आखिरी ओवर में पांच रन ‘डिफेंड’ हुए हैं और बाजी पलटी है. ऋषभ पंत को शायद ऐसे मैच याद नहीं, क्योंकि वो ऐसी गलती इस सीजन में पहले भी कर चुके हैं. पंजाब के खिलाफ दिल्ली की हार में यही देखने को मिला था.
आरसीबी के खिलाफ इसी सीजन में एक और मैच में ऋषभ पंत ने ऐसे ही आउट होकर टीम को मुसीबत में डाला था. उस रोज भी दिल्ली के निचले क्रम के बल्लेबाजों ने किसी तरह टीम की नैया पार लगाई थी.
विश्वकप की टीम में ना चुने जाने के पीछे भी उनकी यही अपरिपक्वता थी. ऋषभ पंत को ये समझना होगा कि बड़ा खिलाड़ी बनने के लिए मैच बनाना और मैच जिताना दोनों आना चाहिए. फिलहाल उन्हें मैच बनाना आता है, मैच जिताना नहीं.
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