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अब फीफा वर्ल्डकप (FIFA World Cup 2022) अपने अंतिम दौर में आ चुका है. आज शाम साढ़े आठ बजे अर्जेंटीना और फ्रांस में खिताबी मुकाबला होगा. कतर का वर्ल्डकप कई सारे मुद्दों पर विवाद का केंद्र भी बना. लेकिन विवाद के साथ-साथ यह प्रतिरोध का मंच भी बना.
इस वर्ल्डकप में गे राइट्स को लेकर कठोर नियम रहे, पहनावे और शराब जैसी चीजों पर बंदिशें रहीं. प्रवासी मजदूरों की हालत पर सवाल उठे. फिर इस वर्ल्डकप में भी हमने यह भी देखा कि कैसे महिला अधिकारों के लिए टूर्नामेंट का मंच के तौर पर बखूबी इस्तेमाल किया गया, कैसे इस्लामिक शरिया कानून वाले देशे में समलैंगिक अधिकारों पर चर्चा ने जोर पकड़ा.
खेल सामाजिक जीवन का एक अहम हिस्सा हैं. ऐसे में सामाजिक-राजनीतिक तौर तरीकों को प्रभावित करने के लिए भी यह अहम मंच रहे हैं.
जैसे रंगभेद के विरोध के मामले को ही लें, 1976 के मांट्रियल ओलंपिक का 29 देशों ने दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद की नीति के विरोध में बॉयकॉट किया था. 1964 में दक्षिण अफ्रीका को ओलंपिक से बाहर तक रखा गया था.
एशिया की सबसे हाई रैंकिंग फुटबॉल टीमों में से एक ईरान ने इस बार ग्रुप मैच में वेल्स जैसी मजबूत टीम को 2-0 से हराया. लेकिन ईरान की टीम की चर्चा उनके अपने देश में जारी महिला आंदोलन को समर्थन देने के लिए ज्यादा रही. इंग्लैंड के खिलाफ मैच में ईरानी खिलाड़ियों ने अपने राष्ट्रीय गान को गाने से इंकार कर दिया.
वैसे यह पहली बार नहीं है जब ईरान को लेकर फीफा वर्ल्डकप के दौरान प्रदर्शन हुए हैं. 2006 के जर्मनी वर्ल्डकप में भी ईरान की टीम को बाहर करने के लिए लोगों ने न्यूरेमबर्ग शहर में ईरान-मेक्सिको मैच के पहले प्रदर्शन किए थे. दरअसल तब ईरान के राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने इजरायल को यूरोप में स्थानांतरित करने की बात कही थी. हालांकि ईरान को बाहर नहीं किया गया था.
कतर में समलैंगिक संबंधों पर प्रतिबंध है. वहां फीफा वर्ल्डकप चीफ एक्जीक्यूटिव नासिर अल खटर ने कहा कि कतर में कानून नहीं बदले जाएंगे और दर्शकों को उनकी संस्कृति का ध्यान रखना चाहिए.
इस बात की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना भी हुई. अमेरिकी पत्रकार ग्रांट वाहल ने एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी के साथ एकजुटता दिखाने के लिए रेनबो टीशर्ट पहनी, लेकिन उन्हें स्टेडियम में नहीं जाने दिया गया, इतना ही नहीं बाद में उन्हें हिरासत में ले लिया गया. उनसे कहा गया कि उनकी टीशर्ट "पॉलिटिकल स्टेटमेंट" देती नजर आ रही है. बता दें 18 दिन बाद ग्रांट वाहल की 10 दिसंबर को संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई.
फीफा पर आरोप लगे कि वे गे राइट्स को लागू करवाने में नाकामयाब रहे. बता दें फीफा ने खिलाड़ियों को चेतावनी दी थी कि एलजीबीटीक्यू को समर्थन देने वाले वन लव बैंड को लगाकर वे फील्ड पर नहीं जा सकते. अगर ऐसा करते हैं तो उन्हें येलो कार्ड दिया जाएगा.
इसी तरह पहनावे को लेकर भी विवाद खड़ा हुआ. महिला दर्शकों को नसीहत दी गई कि वे "अंग प्रदर्शन करने वाले कपड़े" ना पहनें. हालांकि फीफा की जनरल गाइडलाइन साफ कहती है कि दर्शक अपनी मनमर्जी की ड्रेस पहन सकते हैं. लेकिन इस विश्वकप में गाइडलाइन कहती हुई नजर आई कि महिला दर्शकों को अपने कंधों और छाती को ढंकने वाले कपड़े पहनने होंगे. इस प्रोटोकॉल का पालन ना केवल स्टेडियम बल्कि सभी सार्वजनिक जगहों और सरकारी स्थलों पर भी किया जाना था.
अमेरिकी अखबार द गार्डियन ने एक रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए बताया कि जबसे कतर को वर्ल्डकप की मेजबानी मिली है, तबसे कुल 6500 प्रवासी मजदूरों की मौत हो चुकी है. बता दें कतर में दक्षिण एशिया से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर जाते हैं. ऐसे करीब 30,000 मजदूरों को विश्वकप की तैयारियों के लिए हो रहे निर्माण में बीते कई सालों से लगाया गया था. रिपोर्ट में बताया गया कि मजदूरों के काम करने की स्थितियां सही नहीं हैं.
इस रिपोर्ट के बाद काफी हो हल्ला हुआ और कतर सरकार ने रिपोर्ट को नकारा. सरकार ने कहा कि 2014 से 2020 के बीच निर्माण स्थल पर 37 मौतें हुईं, जिनमें से 3 ही निर्माण संबंधी गतिविधियों के चलते हुई थीं. सरकार ने कहा कि बाकी लोगों की मौतें "बढ़ती उम्र या दूसरी बीमारियों के चलते हुई होगी."
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