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फुटबॉल से मेरा परिचय एक पोस्टर के जरिए हुआ था. मैं 6-7 साल का था. अंग्रेजी पढ़नी नहीं आती थी. लेकिन उस पोस्टर ने जादू कर दिया. उस पर छपी दो तस्वीरें अब भी मुझे याद हैं. मेरे बड़े भाई ने बताया कि एक रुमेनिगे (जर्मनी के कार्ल हेंज रुमेनिगे) हैं और दूसरा सॉक्रेटस (ब्राजील के पूर्व कप्तान).
बहुत बाद में पता चला कि दोनों अपने समय के लेजेंड थे, जिन्होंने इस खेल को नई दिशा दी. तस्वीर में सॉक्रेटस ज्यादा प्रभावशाली लगे और तभी से सांबा टीम से प्यार हो गया, साथ ही फुटबॉल से भी. तब से हर वर्ल्ड कप का इंतजार रहता है, हर मैच देखने की जिद भी और हर टूर्नामेंट से पहले फेवरेट की वही बोरिंग लिस्ट- ब्राजील, अर्जेंटीना, जर्मनी, इटली और नीदरलैंड्स. बाद में इस लिस्ट में फ्रांस और स्पेन का नाम भी जुड़ गया.
लेकिन परमानेंट फेवरेट में से दो नाम इस बार टूर्नामेंट से ही आउट हैं- नीदरलैंड्स और इटली. एक दशक के बाद ऐसा हुआ कि नीदरलैंड्स वर्ल्ड कप के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाया और इटली जो 1958 के बाद से लगातार वर्ल्ड कप खेल रही है इस बार 32 टीमों में से एक नहीं होगी. इटली चार बार वर्ल्ड कप जीत चुका है और ब्राजील और जर्मनी के साथ दुनिया के फुटबॉल पावरहाउस में से एक है.
लेकिन इटली का गेम खेलने का तरीका, उसके खिलाड़ियों का मशीन जैसा एप्रोच और जीतने के लिए हर हथकंडा अपनाना- ये सब हमारे जेनरेशन के फुटबॉल प्रेमियों को कभी भी प्रभावित नहीं कर पाया. इटली की टीम का एप्रोच विरोधियों को फ्रस्ट्रेट करना रहा है, खुद आक्रमण करके जीतना नहीं. फैन्स को यह कैसे पसंद हो सकता है?
रही सही कसर 2006 वर्ल्ड कप फाइनल की उस घटना ने पूरी कर दी, जिसमें उस समय के सुपरस्टार जिनेदिन जिदान को रेड कार्ड दिखाकर मैच से बाहर कर दिया गया. उस समय तक जिदान को परफेक्ट फुटबॉलर माना जाता था- पूरी तरह से टीम प्लेयर, काफी स्किल वाला, शानदार एथलीट और हमेशा शांत रहने वाला.
जिसने जिदान के करियर को नजदीक से देखा था, उन सबके लिए यह बड़ा झटका था. जरूर मातेराजी ने कुछ घिनौने शब्द कहे होंगे और सच में ऐसा ही हुआ था. 10 साल के बात मातेराजी ने माना कि उसने जिदान की बहन के बारे में अपशब्द कहे थे. हम सबको उस समय यही लगा था कि एक सोची-समझी चाल के तहत जिदान को भड़काया गया.
उस एक घटना से फाइनल का परिणाम बदल गया. इटली की जीत हुई और हमारे जैसे फैन्स में इटली की टीम का सम्मान बिल्कुल कम हो गया. ऐसे में इटली के वर्ल्ड कप में नहीं खेलने का मुझे कोई अफसोस नहीं होगा.
लेकिन नीदरलैंड्स को मैं बहुत मिस करूंगा. नीदरलैंड्स की टीम ने जॉन क्राएफ के टोटल फुटबॉल को जिया है. टोटल फुटबॉल बोले तो हर खिलाड़ी पूरी तरह से आक्रमण के मूड में. उद्देश्य सिर्फ विपक्षी गोल पोस्ट में गोल करना. रॉबेन में उसकी झलक दिखती थी. वेस्ली स्नाइनडर उस परंपरा को आगे बढ़ा रहे थे. वो सब 2018 के वर्ल्ड कप में नहीं दिखेगा और मेरे जैसे फुटबॉल फैन के लिए यह बड़े दुख की बात है.
साथ ही हम सब इस बात से भी निराश हैं कि इस साल के मेगा आयोजन में चिली भी नहीं होगा. क्या एलेक्सिस सांचेज और विडाल की गैरमौजूदगी में वर्ल्ड कप के जादू में कमी नहीं होगी?
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