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क्रोएशिया फुटबॉल टीम के कप्तान लुका मॉड्रिच ने आखिरकार क्रिस्टियानो रोनाल्डो और लियोनल मेसी का बैलोन डी' ओर पुरस्कार पर पिछले एक दशक से चला आ रहा वर्चस्व खत्म कर ही दिया.
क्रोएशिया को पहली बार फीफा विश्व कप के फाइनल में पहुंचने वाले करिश्माई कप्तान लुका ने रियाल मैड्रिड के ही अपने पूर्व साथी पुर्तगाल के रोनाल्डो, फ्रांस के कायलन एमबापे और एटलेटिको मैड्रिड के एंटोनी ग्रिजमैन को पछाड़कर पहली बार बैलोन डी' ओर की ट्रॉफी पर कब्जा कर लिया।.
आज की तारीख में क्रोएशिया फुटबॉल टीम के कप्तान और फीफा वर्ल्ड कप 2018 के बेस्ट प्लेअर रह चुके लुका मॉड्रिच की हर तरफ चर्चा हो रही है. हर कोई इस खिलाड़ी के बारे में बात कर रहा है या फिर ज्यादा से ज्यादा जानना चाहता है. फीफा वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने वाला दूसरा सबसे छोटा देश क्रोएशिया कैसे फुटबॉल के महाकुंभ के फाइनल में पहुंचा, ये अपने आप में एक शानदार कहानी है. लेकिन उससे भी ज्यादा दिलचस्प और हैरान करने वाली कहानी मॉड्रिच की है.
उस मॉड्रिच की, जिसे बचपन में ही भारी युद्ध के बीच अपना मोहल्ला, अपना शहर छोड़ना पड़ा और एक वक्त पर अपने छोटे कद और पतले शरीर के लिए उसे कई फुटबॉल क्लब ने मौका नहीं दिया.
मॉड्रिचा कस्बे के एक छोटे से गांव में पले-बढ़े मॉड्रिच बचपन में अक्सर अपने पिता की भेड़ों को पहाड़ी पर चराने के लिए ले जाया करते थे. हालांकि उनका बचपन किसी डरावने सपने से कम नहीं था. उनका गांव क्रोएशियन युद्ध के बिल्कुल बीचों बीच था. शायद ही कोई दिन जाता होगा, जब उन्हें कत्लेआम की चीखें, खून की बदबू या जलते घर देखने को न मिलते हों.
लेकिन युद्ध ने उस शहर में भी इस परिवार का पीछा नहीं छोड़ा. जिस जगह पर मॉड्रिच अपने परिवार के साथ छिपकर रह रहे थे, वहां रोज आसमान से बम गिरते थे. दो साल के लिए वो शहर सीज हो गया. जीना-मरना अब बस भगवान के ही भरोसे था.
बम की आवाज, जलते घर और युद्ध के धुएं के बीच मॉड्रिच के मन में फुटबॉल का प्यार पनप रहा था. जिस होटल में वो शरणार्थी के तौर पर रह रहे थे, वहां उन्हें एक और दोस्त मिल गया था, जो उन्हीं की तरह फुटबॉल का दीवाना था. दोनों साथ खेलते थे लेकिन मॉड्रिच की रफ्तार और गेंद पर नियंत्रण बहुत ही शानदार था.
अक्सर होटल की पार्किंग में या फिर छोटे मैदान में पतले-दुबले मॉड्रिच फुटबॉल ड्रिबलिंग करते नजर आते थे. इस बीच किसी रिफ्यूजी ने ही मॉड्रिच के खेल को देखा और वहां के लोकल क्लब “एनके जदार” के कोच को फोन करके बताया कि इस छोटे लड़के का खेल देखो. कोच ने छोटे मॉड्रिच का खेल देखा और बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने मॉड्रिच के माता-पिता से गुजारिश की कि वो क्लब के पास वाले होटल में शिफ्ट हो जाएं.
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क्लब में ट्रेनिंग के दौरान अक्सर ग्रेनेड और मोर्टार बरसते थे. कई बार छोटे-छोटे खिलाड़ी मैदान छोड़कर भागते थे. मॉड्रिच के पहले कोच ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मॉड्रिच बहुत तेज भागते थे और गेंद पर उनका कंट्रोल बहुत ही शानदार था.
इस बीच क्रोएशिया को आजादी मिली और मॉड्रिच की अच्छी किस्मत ये रही कि जिस क्लब से उन्होंने शुरुआत की थी वो 1992 में क्रोएश लीग का फाउंडिंग मेंबर बना. क्लब में मॉड्रिच लगातार निखर रहे थे, अपनी उम्र के लड़कों से वो हर वक्त एक कदम आगे थे लेकिन बस एक दिक्कत थी जो उन्हें परेशान कर रही थी. वो थी- उनका दुबला,पतला शरीर.
वो आम खिलाड़ियों से कद में थोड़े छोटे और शरीर में थोड़े पतले थे. कई लोगों को लगता था कि उनका पत्ते जैसा पतला शरीर उन्हें इस मजबूत लोगों के खेल में आगे नहीं बढ़ने देगा. मॉड्रिच को कई बार अपने पतले शरीर की वजह से भला-बुरा भी सुनना पड़ा. उनसे कई मौके छीने भी गए लेकिन वो हार कहां मानने वाले थे. उन्होंने हर एक मुश्किल को अपने क्रिएटिविटी और खेल के दम पर पछाड़ा और देखते ही देखते दुनिया के नंबर-1 मिडफील्डर बन गए.
इस वक्त मॉड्रिच रियाल मैड्रिड जैसे अमीर क्लब के लिए खेलते हैं. 2012 में जब उन्हें रियाल मैड्रिड ने खरीदा था, तो तब भी फैंस ने उन्हें पतले-दुबले और छोटे शरीर के लिए चिढ़ाया था, लेकिन आज वही फैंस हैं, जो मॉड्रिच को अपने सिर आंखों पर बैठाते हैं.
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