advertisement
देशभर में WhatsApp के करीब 40 करोड़ यूजर हैं. हर रोज खबरों, आपसी बातचीत के साथ-साथ हजारों फेक न्यूज भी इस प्लेटफॉर्म से शेयर होते हैं, नतीजा सामने है, अलग-अलग राज्यों से कभी भीड़ के हमले तो कभी नफरत बांटने वाली फर्जी खबरें इस प्लेटफॉर्म से आती हैं. लेकिन बावजूद इसके इनकार नहीं किया जा सकता है कि पॉलिटिकल पार्टियों में ये एप्लिकेशन काफी फेमस है. पार्टियां अपने प्रचार-प्रसार के लिए WhatsApp का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करती हैं. आम आदमी की जिंदगी का हिस्सा बनता नजर आ रहा है WhatsApp.
10 साल पहले जब WhatsApp लॉन्च हुआ था, उस वक्त ये प्राइवेसी के लिए जाना जाता था. लेकिन फिर फेसबुक ने इसका अधिग्रहण कर लिया है और चीजें फेसबुक के हिसाब से ही बदलती गईं. अब वाट्सअप के कई फीचर फेसबुक फ्लेवर वाले हैं, फेसबुक से परेशान लोग जिस तरह दूसरे प्लेटफॉर्म की तरफ जा रहे हैं, ठीक उसी तरह अब वक्त आ गया है WhatsApp के ऑल्टरनेटिव ढूंढने का.
कैंब्रिज एनालिटिका केस में ये साबित हुआ था कि फेसबुक के डेटा में सेंधमारी हो सकती है. डेटा बेचकर कमाई करने के फेसबुक के तरीके के बारे में भी काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है. वहीं दूसरी तरफ Telegram यूजर्स के डोनेशन पर निर्भर है, डेटा ट्रैक या कलेक्ट नहीं करता.
अब साल 2020 तक WhatsApp को भी फेसबुक से लिंक करने की तैयारी है. जिसमें स्टेट्स एड भी होगा, वो किसी भी यूजर के फेसबुक अकाउंट से जुड़ा होगा. मतलब कि आपका डेटा सोशल मीडिया अकाउंट से लिंक होगा, अगर ऐसा होता है तो प्राइवेसी में सेंध लगने की पूरे आशंका भी होगी.
प्राइवेसी के अलावा Telegram की कुछ खूबियां इसे WhatsApp से और बेहतर बनाती हैं. जैसे, भारत में तो थोक मैसेज भेजने के रवैये को आप समझते ही होंगे. गुड मॉर्निंग से लेकर लेकर गुडनाइट तक के मैसेज और ढेर सारे पॉलिटिकल मैसेज.
ऐसे में WhatsApp के एक ग्रुप में 256 लोग जुड़ सकते हैं, वहीं टेलीग्राम के एक ग्रुप में 2 लाख मेंबर जोड़े जा सकते हैं. जाहिर है कि सियासी दलों के लिए ये चैट मैसेंजर ज्यादा बड़ा प्लेटफॉर्म साबित हो रहा है.
टेलीग्राम पर ये भी खास है कि अगर आपके कॉन्टेक्ट लिस्ट में कोई है वही आपसे संपर्क कर सकता है जबकि WhatsApp पर कोई भी आपको मैसेज कर सकता है अगर उसके पास आपको मोबाइल नंबर है. इन सब खूबियों के कारण जब-जब फेसबुक या Whatsapp में कोई खामी आती है. टेलीग्राम यूजर अपने आप बढ़ने लगते हैं.
बता दें कि इस पॉपुलर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को बनाने वाले रूस के Pavel Durov को वहां का मार्क जकरबर्ग भी कहा जाता है. साल 2013 में Pavel Durov ने Nikolai Durov के साथ मिलकर टेलीग्राम बनाया.
ऐसा कहा जाता है कि जब तक WhatsApp के को-फाउंडर्स जैन कॉम और ब्रायन एक्टन कंपनी से जुड़े थे, तब तक प्राइवेसी इस चैट एप्लीकेशन की प्राथमिकता थी. लेकिन जब से जकरबर्ग एंड कंपनी का कब्जा WhatsApp पर हुआ है. लगातार छेड़छाड़ हो रही है.
ब्रायन एक्टन ने हाल ही में इन आशंकाओं को और पुख्ता किया था, उन्होंने कहा था-
ऐसे में अगर आप WhatsApp की प्राइवेसी को लेकर परेशान हैं तो अब वक्त नया विकल्प चुनने का विकल्प आ गया है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)