advertisement
भारत में वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क्स (VPNs) सर्विस पर गृह मामलों की संसदीय स्टैंडिंग कमेटी ने प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव दिया है. समिति ने भारत सरकार से कहा है कि वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क्स यानी वीपीएन सर्विस की मदद से ऑनलाइन प्लेटफार्म पर अपराधी गुमनाम बनकर मौजूद रहते हैं. भारत को इस सेवा को स्थायी तौर पर रोकने के लिए एक व्यवस्था विकसित करने की जरूरत है.
दिलचस्प बात यह है कि ऐसा सुझाव कुछ महीनों बाद अब आ रहा है जब कोरोना महामारी (Covid-19) को ध्यान में रखते सरकार ने अन्य सेवा प्रदाताओं यानी OSPs द्वारा वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क VPN के उपयोग को उदार बनाया था.
VPNs लोगों को सुरक्षित तौर पर वर्क फ्रॉम होम करने में मदद करते हैं. यह निजी सूचना के चोरी होने और साइबर खतरों के डर को भी दूर करता है.
वीपीएन की मदद से आप अपनी प्राइवेसी बनाए रख सकते हैं, लोकेशन-गेटेड कंटेंट को बायपास कर सकते हैं, वहीं फिल्टर्ड नेटवर्क एक्सेस करने के साथ-साथ और भी बहुत कुछ कर सकते हैं.
यहां हम कारणों पर प्रकाश डाल रहे हैं कि आखिर क्यों संसदीय समिति चाहती है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeiTy) द्वारा VPNs पर प्रतिबंध लगाया जाए...
कॉपीराइटेड कंटेट की पायरेटिंग में बढ़ोत्तरी.
डार्क वेब मार्केटप्लेस आमतौर पर VPN के माध्यम से एक्सेस किए जाते हैं और हथियार, ड्रग्स खरीदने तथा अन्य अवैध सर्विस का लाभ उठाने के लिए तेजी से लोकप्रिय तरीके बन गए हैं.
इसकी वजह से साइबर क्रिमिनल्स पूरी तरह से गुमनाम रहते हुए हैकिंग, जानकारी चुराना और वायरस डालने जैसे गैरकानूनी काम करते हैं.
द इंटरनेट फ़्रीडम फ़ाउंडेशन (IFF) के पॉलिसी काउंसल रोहिन गर्ग ने कहा है कि 'वीपीएन को ब्लॉक करने को न केवल नेट न्यूट्रैलिटी के लिए बल्कि यूजर्स की प्राइवेसी के लिए भी झटका हो सकता है.'
भारत में VPN का उपयोग विशेष तौर पर पिछले वर्ष बढ़ा है, क्योंकि कोरोना महामारी की वजह से डिजिटलीकरण बढ़ा और ज्यादा से ज्यादा लोग ऑनलाइन काम करने के लिए मजबूर हुए.
द क्विंट से बात करते हुए गर्ग ने कहा कि लोग VPN का प्रयोग ऑनलाइन एक्टिविट को होस्ट करने के लिए करते हैं, अपनी ऑनलाइन सिक्योरिटी को इंप्रूव करने के लिए करते हैं. ऐसे कंटेंट जो किसी भौगोलिक तौर पर हर जगह के लिए उपलब्ध नहीं हैं उन्हें एक्सेस करने के लिए करते हैं. नेटफ्लिक्स की स्ट्रीमिंग और अन्य ब्लॉक वेबसाइट्स को एक्सेस करने के लिए करते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि VPN अब भारत के इंटरनेट इकोसिस्टम का हिस्सा बन चुका है. इसलिए इसके उपयोग को पूरी तरह से प्रतिबंधित करना नेट न्यूट्रैलिटी के किसी झटके से कम नहीं होगा.
नेट न्यूट्रैलिटी के सिद्धांत यह कहता है कि इंटरनेट पर उपलब्ध सभी सामग्री तक बिना किसी भेदभाव के सभी समुदायों और क्षेत्राें के यूजर्स की आसान और सुगम पहुंच होनी चाहिये.
वीपीएन (VPN) के उपयोग करने के कई कारण हैं, उनमें से सबसे अहम बिजनेस के लिए इसका उपयोग है.
इंडियन इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सक्षम सेवाएं यानी आईटी-आईटीईएस (IT-ITes) सेक्टर की ग्रोथ भारत में डेटा संरक्षण (Data Protection) और गोपनीयता (Privacy) का सम्मान करने वाली व्यवस्था के कारण हुई है.
ये कंपनियां सेफ, सिक्योर और प्राइवेट कम्युनिकेशन के लिए वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क पर विश्वास करती हैं. पब्लिक नेटवर्क पर गोपनीय डेटा (confidential data) शेयर करना एक साइबर सुरक्षा के लिए किसी बुर सपने से कम नहीं है.
लंबे समय से VPN का प्रयोग बिजनेसेस द्वारा रिमोट या मोबाइल एक्सेस, होम ऑफिस को विभिन्न ब्रांचों से जोड़ने और बिजनेस-टू-बिजनेस कम्युनिकेशन के लिए किया जाता रहा है. महामारी के दौरान VPN विशेष तौर पर वर्क फ्रॉम होम करने वाले कर्मचारियों के लिए मददगार सहायक हुए है. इससे कर्मचारी अपने घरों से सुरक्षित रूप से काम कर सकते हैं.
श्रुति श्रेया प्राइवेसी पॉलिसी थिंक टैंक, द डायलॉग में रिसर्च एसोसिएट हैं. उन्होंने द क्विंट को बताया कि VPN पत्रकारों की गोपनीयता, सेफ्टी और सिक्योरिटी के लिए एक महत्वपूर्ण टूल है.
श्रुति आगे बताती हैं कि पत्रकार न केवल खुद की बल्कि अपने स्रोतों की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एन्क्रिप्शन पर भरोसा करते हैं. इसलिए वे VPN के माध्यम से सिक्योर कम्युनिकेशन की सेवा को चालू रखते हैं. गुमनामी के अलावा, यह तकनीक उन्हें उन विदेशी अधिकार क्षेत्र में उपलब्ध कंटेंट तक पहुंचने में मदद करती है जो भौगोलिक प्रतिबंधों के कारण हर जगह के लिए एक्सेसेबल नहीं होती है.
भारत में एक संवैधानिक लोकतंत्र है, जहाँ सभी को निजता का मौलिक अधिकार दिया गया है. वहीं कुछ जगहों पर इसके विपरीत अधिकनायकवादी शासन होता है. जिसे हम तानाशाही शासन के नाम से भी जानते हैं.
सॉफ्टवेयर फाउंडेशन लीगल सेंटर (SFLC.in) के लीगल डायरेक्टर प्रशांत सुगथन ने बताया कि अधिकांश देश जिन्होंने VPN के उपयोग को ब्लॉक कर दिया है उनमें उत्तर कोरिया, चीन और इराक शामिल हैं. इन सभी जगह अधिकनायकवादी या सत्तावादी शासन है. इन जगहों पर फ्रीडम ऑफ स्पीच यानी आवाज उठाने की आजादी (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) को प्रभावित करने और इस तरह के कंटेंट को यूजर्स की पहुंच से दूर रखने के लिए VPN के उपयोग पर बैन लगाया गया है.
सुगथन ने इस पर ध्यान आकर्षित हुए कहा कि "हमारे पास निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है. अगर VPNs पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो ये अधिकार प्रभावित होंगे."
वहीं श्रेया ने बताती हैं कि "जिस तरीके से सिक्योर कम्युनिकेशन के लिए जर्नलिस्ट्स और बिजनेसेस वीपीएन पर भरोसा करते हैं, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है VPN तक पहुंच संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार के रूप में सुरक्षित है."
चीन में VPN पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन टेकराडार की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन अभी भी टेक्नोलॉजी के लिए टॉप 10 बाजारों में से एक है.
इससे पता चलता है कि किसी भी सेंसरशिप मैकेनिज्म में कहीं न कहीं उसके दुरुपयोग होने की संभावना होती है. नागरिक अधिकारों और बोलने की आजादी जैसे मामलों पर प्रतिबंधात्मक रुख अपनाने वाले देश आमतौर पर वीपीएन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हैं या उसका उपयोग करने से रोकते हैं.
नुकसान पहुंचाने वाले ऑनलाइन कंटेंट का तेजी से हो रहा प्रसार एक ओर चिंता का प्रमुख विषय है. लेकिन यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि केवल VPN पर प्रतिबंध लगाने से मौजूदा साइबर सुरक्षा खतरों का समाधान नहीं हो सकता.
टेक्नोलॉजी एक दोधारी तलवार की तरह है. जहां एक ओर इसकी फेसियल रिकॉग्निशन सुविधा से अपराधियों का चेहरा पहचानकर उन्हें गिरफ्तार करने में मदद मिलती या गुमशुदा लोगों का पता लगाने में मदद मिलती है. वहीं दूसरी ओर सिस्टम इसका प्रयोग घुसपैठ करके निगरानी करने के लिए भी कर सकता है.
इस प्रस्तावित प्रतिबंध से ऑनलाइन आपराधिक गतिविधियों की समाप्त होने की संभावना नहीं है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)