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दिल्ली हाई कोर्ट ने 4 जून को एक्टर जूही चावला की 5G तकनीक लागू करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी. चावला के अलावा याचिका वीरेश मलिक और टीना वचानी ने भी दायर की थी. चावला ने याचिका में 5G तकनीक टेस्टिंग के बिना लागू करने को चुनौती दी थी.
जस्टिस जेआर मिड्ढा की बेंच ने कहा कि याचिका पब्लिसिटी स्टंट लगता है और याचिकाकर्ताओं पर 20 लाख का जुर्माना भी लगाया.
लेकिन एंटी-5G एक्टिविस्ट कोर्ट के फैसले से सहमति नहीं रखते हैं. उनका कहना है कि 5G तकनीक को लागू करने से रोकने की पर्याप्त वजहें हैं.
पुणे स्थित एक्टिविस्ट वैशाली पाटकर कहती हैं कि हाई कोर्ट का फैसला 'अन्यायपूर्ण और अस्वीकार्य' है. उन्होंने कहा, "हम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं लेकिन 20 लाख का जुर्माना लगाना ज्यादा हो गया. जूही ने सिर्फ सही सवाल पूछने के लिए याचिका दायर की थी, सरकार को डेटा जारी कर बताना चाहिए कि रेडिएशन कितनी नुकसानदायक है."
एक्टिविस्ट शौमिक सेनगुप्ता कहते हैं, "मैं जूही का आगे बढ़कर इस मुद्दे को समर्थन देने के लिए सम्मान करता हूं. सरकार डेटा क्यों नहीं जारी करती? अगर डेटा कहता है कि 5G पूरी तरह सुरक्षित है और रेडिएशन जीवित वस्तुओं को नुकसान नहीं पहुचाएंगी तो हम सरेंडर कर देंगे. लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार को खुद जवाब नहीं पता."
2017 में तुर्की के हिस्टोलॉजी और एम्ब्र्योलॉजी डिपार्मेंट ने एक स्टडी की थी. उसके मुताबिक, मोबाइल 1.8 से 2.2 GHz तक की फ्रीक्वेंसी इस्तेमाल करते हैं. WHO गाइडलाइन के मुताबिक ये फ्रीक्वेंसी टिश्यू को गर्म कर देती हैं.
टिश्यू तब गर्म होता है जब हमारी स्किन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फ्रीक्वेंसी (EMF) या वेव को सोख लेती है. इससे शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है.
पाटकर का मानना है कि 5G टावर से निकलने वाली रेडिएशन मानव शरीर को पार कर सकती है और इससे 'कैंसर हो सकता है.' उन्होंने कहा, "अगर ऐसा नहीं है तो सरकार को स्पष्ट करना चाहिए. दिक्कत ये है कि इसे साबित करने के लिए कोई स्टडी नहीं है."
क्विंट को दो स्टडी मिली जिसमें कहा गया था कि EMF से इंसानों में कैंसर हो सकता है. एक स्टडी 14 देशों के 30 वैज्ञानिकों ने इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के लिए की थी.
भारत में 5G शुरू होने और उसके जारी होने की प्रक्रिया के दौरान सोशल मीडिया पर दावे किए जा रहे हैं कि इससे स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं.
डॉ राजेश देशपांडे ने क्विंट से कहा कि ये सभी दावे उचित लगते हैं लेकिन पर्याप्त डेटा नहीं है जो कहे कि 5G नुकसानदायक है. डॉ देशपांडे ने कहा, "इसलिए इस स्थिति में कोई बयान देना ठीक नहीं होगा. ये जरूरी है कि हम और ट्रायल करें और प्रभावों पर स्टडी करें. फिर ही हम कुछ कह सकते हैं."
डॉ एलवी कृष्णन ने द हिंदू से कहा कि कुछ चूहों या इंसानों पर टेस्टिंग काफी नहीं है. उन्होंने कहा, "रेडिएशन का असर कुछ समय बाद दिखता है. अगर इंसान पर ये सुरक्षित लगती है तो भी पेड़-पौधों और जानवरों पर इसके प्रभाव की टेस्टिंग होनी चाहिए."
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