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गूगल, FB नए IT नियम लागू करने के लिए तैयार, WhatsApp क्यों नहीं?

WhatsApp नए आईटी नियमों के खिलाफ कोर्ट चला गया है

महब कुरैशी
टेक और ऑटो
Published:
WhatsApp नए आईटी नियमों के खिलाफ कोर्ट चला गया है
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WhatsApp नए आईटी नियमों के खिलाफ कोर्ट चला गया है
(फोटो: Quint)

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WhatsApp के नए आईटी नियमों के खिलाफ कोर्ट जाने के बाद 'निजता के अधिकार' और 'बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार' पर बहस एक बार फिर शुरू हो गई है. WhatsApp का कहना है कि नए नियम यूजर्स के लिए 'एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन' सुरक्षा को कम कर देंगे.

मैसेजिंग प्लेटफॉर्म ने कोर्ट में तब अपील की, जब नए नियमों को लागू करने की डेडलाइन 25 मई को खत्म हो गई.

WhatsApp के मुकदमे के जवाब में इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने 26 मई को कहा कि सरकार ‘निजता के अधिकार’ का सम्मान करती है और उसका उल्लंघन करने का कोई इरादा नहीं है.  

इसी बीच टेक जायंट्स गूगल और फेसबुक ने कहा है कि वो नए नियमों को लागू करेंगे.

ये दिलचस्प है कि फेसबुक ने नियमों को लागू करने की बात कह दी है, लेकिन उसके स्वामित्व वाले WhatsApp ने भारत सरकार के खिलाफ केस कर दिया है.

आईटी नियमों पर अलग-अलग रवैया

इन नियमों को लागू करने के मामले में फेसबुक और WhatsApp को अलग-अलग करके देखने की जरूरत है. ये इसलिए क्योंकि नए आईटी नियमों का नियम 4(2) मेसेजिंग सर्विस मुहैया कराने वाले सभी सिग्नीफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज (SSMI) को ऑरिजिनेटर ट्रेसेबिलिटी सुनिश्चित करने के लिए कहता है. मतलब कि मेसेज कहां से शुरू हुआ इसे ट्रेस किया जा सके.

द डायलॉग के फाउंडिंग डायरेक्टर काजिम रिजवी समझाते हैं कि ये नियम सिर्फ WhatsApp और सिग्नल जैसे प्लेटफॉर्म पर लागू होता है, गूगल और फेसबुक पर नहीं.  

रिजवी ने क्विंट से कहा, "फेसबुक और गूगल के लिए अपने ग्लोबल मॉडल को नए नियमों के मुताबिक इंटीग्रेट करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन वो लागू करने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि ट्रेसेबिलिटी का नियम WhatsApp जैसे प्लेटफॉर्म से कहता है कि कोई मेसेज सबसे पहले किसने भेजा ये बताओ. ये तकनीकी चिंता है."

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इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स के मुताबिक, एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को कमजोर किए बिना इस नियम को लागू करने का कोई तरीका नहीं है. अगर ऐसा किया गया तो यजर्स पर साइबर अटैक का खतरा बढ़ जाएगा और उनकी निजता को भी खतरा होगा.  

सरकार का कहना है कि ये निर्देश सिर्फ गंभीर अपराध के मामले में ही लागू होगा. ये या तो यौन अपराध होंगे या जिनसे देश की संप्रभुता को खतरा होगा.

वहीं, दूसरी तरफ WhatsApp का कहना है कि इस निर्देश से एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन खत्म हो जाएगा और 450 मिलियन भारतीय यूजर्स की निजता का उल्लंघन हो सकता है.

नियम 4(2): असल मुद्दा इसी का

क्विंट ने पाया कि WhatsApp ने कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में 68 बार नियम 4(2) का जिक्र किया है.

बॉम्बे हाई कोर्ट में वकील सत्य मूले ने बताया कि ये नियम WhatsApp जैसे प्लेटफॉर्म्स से सबसे पहले मेसेज भेजने वाले को पहचानने के लिए कहता है.

इसका मतलब है कि किसी मेसेज को सबसे पहले भेजने वाले को पहचानना और उसकी पहचान अथॉरिटीज को बताना. इसके अलावा नए नियमों का पालन नहीं करने पर सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज को सजा और आपराधिक जवाबदेही का प्रावधान है.  

मूले का मानना है कि नियम 4(2) के आने से WhatsApp को अपना एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन तोड़ना होगा. WhatsApp के मुताबिक, ये ऐसे कम्युनिकेशन माध्यम की बुनियादी बातों के खिलाफ है जो पूरी तरह निजी है और अभिव्यक्ति की आजादी की सुरक्षा करता है. जो कि संविधान में भी सुरक्षित किए गए हैं.

“अगर WhatsApp मेसेज भेजने वालों को ट्रैक करेगा तो उसे सभी मेसेज और उन्हें भेजने वालों को ट्रैक करना पड़ेगा और ये निजता का उल्लंघन होगा.”
सत्य मूले, बॉम्बे हाई कोर्ट में वकील

गूगल और फेसबुक क्यों लागू कर रहे नियम

दोनों ही कंपनियां एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन मॉडल इस्तेमाल नहीं करती हैं और इसलिए नियम लागू करने की दिशा में काम करने के लिए राजी हुई हैं.

एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन का मतलब है कि WhatsApp पर हर बातचीत सिर्फ सेन्डर और रिसीवर ही पढ़ और सुन सकते हैं. और कोई इसे पढ़-सुन नहीं सकता, यहां तक कि WhatsApp भी नहीं.

InstaSafe के सीईओ संदीप कुमार पांडा ने क्विंट से कहा कि फेसबुक ने इस एन्क्रिप्शन को अपने मेसेंजर और इंस्टाग्राम डायरेक्ट एप्लीकेशन पर लाने का वादा किया था लेकिन ये 2022 से पहले पूरा नहीं होता दिखता.

अगर भविष्य में फेसबुक और गूगल ये एन्क्रिप्शन लाना चाहेंगे तो उनके लिए मुश्किल हो जाएगी. क्योंकि उन्हें ऐसा सिस्टम बनाना पड़ेगा जिसमें चैट ट्रेस की जा सके और एन्क्रिप्शन भी न टूटे.

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