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फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगे एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी. दंगों में हुई हिंसा में कई परिवारों को बहुत नुकसान हुआ. दंगों की आग में किसी ने अपनों को खोया, कोई अपाहिज हो गया, तो किसी की रोजी-रोटी छिन गई. इन दंगों ने कई लोगों की जिंदगी को बर्बाद कर दिया.
दंगा पीड़ितों के जख्मों को मुआवजे से नहीं भरा जा सकता है. द क्विंट ने ऐसे लोगों से मुलाकात की, जो दंगों में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. इनमें से कुछ लोगों को पर्याप्त मुआवजा मिला और कुछ लोगों को कुछ नहीं मिला.
द क्विंट दंगा पीड़ित कुछ ऐसे लोगों से मिला, जो कि गंभीर मेडिकल परिस्थितियों से गुजर रहे हैं और अपने परिवार के बीच रह रहे हैं. हमारा मकसद यह जानने का रहा कि, दंगों ने कैसे उनकी जिंदगी बदल दी.
फरवरी 2020 में नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों में 52 वर्षीय मोहम्मद वकील ने अपनी आंखें खो दी. मोहम्मद वकील कहते हैं कि, “मुझे इस बात की परवाह नहीं है कि सरकार से कितना मुआवजा मिलेगा, क्योंकि अब मेरी आंखें लौटकर नहीं आ सकती है.”
दिल्ली में दंगों के दौरान दंगाइयों ने मोहम्मद वकील के चेहरे पर एसिड फेंक दिया था, जिसकी वजह से उनकी दोनों आंखें चली गईं.
एसिड हमले के बाद हिंसा के माहौल के बीच मोहम्मद वकील अपने बेटे के साथ 12 घंटे बाद सरकारी अस्पातल पहुंचे.
डॉक्टर्स का कहना है कि मेरी आंखें वापस आ जाएंगी, लेकिन वह नॉर्मल नहीं रहेंगी. हालांकि मैं लोगों को पहचान सकूंगा. दंगों से पहले मेरी जिंदगी बहुत शांतिपूर्ण थी. हम बात कर रहे हैं, लेकिन सिर्फ मैं आपको सुन सकता हूं, देख नहीं सकता हूं.
मोहम्मद वकील को दिल्ली सरकार से 2 लाख रुपए मुआवजा मिला है. उन्होंने 5 लाख रुपए के मुआवजे की मांग की थी. यह मामला अगस्त 2020 से लंबित पड़ा है.
दिल्ली सरकार ने दिल्ली दंगा पीड़ितों के लिए 3 मुख्य कैटेगरी में मुआवजे का ऐलान किया है.
24 फरवरी 2020 को 17 वर्षीय मोहम्मद अकमल (परिवर्तित नाम) को गोली मार दी गई थी, जब वे घर लौट रहे थे. पिछले एक साल से वह बिस्तर पर पड़ा है और उसके पैरों में कोई जान नहीं है.
अकमल के परिवार को 2 लाख रुपए का मुआवजा मिला है. जबकि उन्हें 3 लाख रूपए मुआवजे की उम्मीद थी.
44 साल के लोकमान, नॉर्थ-इस्ट दिल्ली के रहने वाले थे. जिन्हें दंगाइयों ने घर लौटते वक्त घेरकर बुरी तरह मारा. लोकमान की पत्नी, गुड्डी ने बताया कि, उनके पति के सिर पर काफी गंभीर चोटें आई थीं, अस्पताल से डिस्चार्ज होने कुछ महीनों बाद जून 2020 में लोकमान की मौत हो गई.
मृतक लोकमान की पत्नी गुड्डी को मुआवजे के तौर पर सिर्फ 20,000 हजार रुपए मिले. अपने पति के इलाज के दौरान उन्होंने गंभीर रूप से घायलों की कैटेगरी के तहत कई बार मुआवजे के लिए आवेदन किया. लेकिन उन्हें और पैसा नहीं मिला.
मोहम्मद जाकिर उस वक्त दंगाइयों के हत्थे चढ़ गए, जव वे फैक्ट्री से घर लौट रहे थे. मारपीट में उनके दोनों हाथों में फ्रेक्चर हो गया, पैर और जबड़ा भी टूट गया.
जाकिर को दिल्ली पुलिस ने अस्पताल में भर्ती कराया था. शारीरिक रूप से अक्षम होने पर उन्हें टेलरिंग की जॉब नहीं मिली. जाकिर को एक एनजीओ ने सहायता दी, लेकिन वे दिल्ली सरकार से मुआवजे के तौर पर 2 लाख रुपए चाहते हैं ताकि अपना छोटा सा बिजनेस शुरू कर सकें.
पत्रकार आकाश नापा को दंगों की रिपोर्टिंग के दौरान गोली लग गई. गोली लगने से उनकी सेहत काफी खराब हो गई. कुछ दिनों तक उन्होंने घर से काम किया, लेकिन फरवरी में दुर्भाग्यवश उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया.
आकाश नापा को 2 लाख रुपए का मुआवजा मिला. उन्होंने 5 लाख रुपए मुआवजे की मांग की थी.
22 वर्षीय मोहम्मद गुफरान को दंगों के दौरान सीने में उस वक्त गोली लग गई थी, जब वे घर की बालकनी में खड़े थे. गोली उनके सीने में फेफड़ों के पास लगी थी, जिसे डॉक्टरों ने नहीं निकाली.
दिल्ली दंगा में गोली के शिकार हुए मोहम्मद गुफरान ने मुआवजे के लिए आवेदन किया था, लेकिन उन्हें अब तक दिल्ली सरकार से मुआवजा नहीं मिला.
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