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Air Pollution: प्रदूषण रोकने के लिए 5 सालों में टैक्स पेयर के कितने पैसे खर्च हुए?

एयर पॉल्यूशन के कारण भारत में रहने वाले लोगों की जिंदगी करीब साढ़े तीन साल कम होती जा रही है.

शादाब मोइज़ी
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33000 मौत, 11000 करोड़ खर्च.. फिर भी हवा जरीली क्यों?

(फोटो - क्विंट हिंदी)

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ये आम लोग और टीवी वाले प्रदूषण (Pollution) को लेकर बहुत हो हल्ला करते हैं. इतना AQI हो गया. धुंध है, जहरीली हवा है. दम घोटू. आंखों में जलन. लेकिन नेताओं को देखेंगे तो लगेगा कि असल में एयर पॉल्यूशन तो कुछ है ही नहीं. यकीन नहीं हो रहा तो जाकर बीजेपी नेता और भारत के पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का सोशल मीडिया देख लीजिए. चौंकिए मत- भारत में पर्यावरण मंत्रालय भी है और मंत्री भी.

शायद एयर पल्यूशन की वजह से इनके सोशल मीडिया अकाउंट पर भी धुंध छाया हुआ है इसलिए तो जहां देशभर में प्रदूषण को लेकर लोग परेशान हैं वहां इनके अकाउंट पर चुनावी मौसम का पता चल रहा है.

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इस आर्टिकल में हम नेताओं की बात नहीं बल्कि सरकारों ने प्रदूषण को रोकने के लिए कितने पैसे खर्च किए और कितने खर्च ही नहीं किए, इसकी असलियत बताएंगे. साथ ही ये भी बताएंगे कि प्रदूषण की वजह से कितने लोग हर साल मारे जा रहे हैं, आपकी जिंदगी के कितने साल कम हो रहे हैं और साथ ही ऐसा क्या किया जाए कि जानलेवा प्रदूषण पर रोक लगे. और फिर आप अपनी सरकारों से पूछिएगा जनाब ऐसे कैसे?

पहले एक अपील-- हवा में प्रदूषण हो या राजनीति और समाज में फैल रही जहरीली सोच.. हम हर मुद्दे पर सवाल पूछते हैं और सौल्यूशन भी ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं. इसके लिए हमें आपके साथ की जरूरत है. क्विंट के मेंबर बनें. मेंबर बनने के लिए लिंक पर क्लिक करें.

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आपकी जिंदगी करीब साढ़े तीन साल कम होती जा रही है.. 

दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, आगरा, गुरुग्राम, फरीदाबाद, मुजफ्फरनगर या कहें नॉर्थ इंडिया का करीब हर शहर-गांव जहरीली हवा की चपेट में है. आंखों में जलन, सांस लेने में तक्लीफ. और यही वजह है कि एयर पॉल्यूशन के कारण भारत में रहने वाले लोगों की जिंदगी करीब साढ़े तीन साल कम होती जा रही है.. 

शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान के मुताबिक, दिल्ली में रहने वालों का हाल तो और बुरा है. प्रदूषण की वजह से यहां करीब 2 करोड़ लोगों की life expectancy औसतन 11.9 साल कम हो रही है.

इंडिपेंडेंट इंटरनेशनल वीकली मेडिकल जरनल लैंसेट के मुताबिक भारत के 10 शहरों में 7% मौतों के पीछे एयर पॉल्यूशन है. स्टडी के मुताबिक 10 शहरों - अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी में हर साल औसतन 33,000 से ज्यादा मौत एयर पॉल्यूशन के वजह से होती है.

प्रदूषण रोकने के लिए करोड़ों रुपए खर्च ही नहीं हुए

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई, 2024 को देश का बजट पेश किया था. तब पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) को फाइनेंशियल ईयर 2024-25 के लिए 3,330.37 करोड़ रुपये के बजट आवंटन की घोषणा की गई थी. जो कि पिछले वित्त वर्ष में निर्धारित 3,231.02 करोड़ रुपये से 93.25 करोड़ रुपये ज्यादा थी.

लोग कहेंगे देखो सरकार कितना पैसा दे रही है. थामा थामा. अभी आपको खाता बही दिखाते हैं.

साल 2019 में केंद्र सरकार ने National Clean Air Programme शुरू किया था. खूब खबरें बनीं. लक्ष्य था कि 2026 तक 40 फीसदी प्रदूषण कम किया जाएगा. फिर 131 शहर इसमें शामिल किए गए. वायु प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए अब तक लगभग 8011.56 करोड़ रुपये खर्च किए जाने के बावजूद प्रदूषण पर कंट्रोल नहीं पाया जा सका है.

यहां एक बात काफी खास है. वो ये कि फंड जारी हुए फिर भी इन्हें खर्च नहीं किया गया.

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की वेबसाइट Portal for Regulation of Air Pollution in Non-Attainment Cities के मुताबिक, 2019 से लेकर अबतक सरकार ने 11210 करोड़ रुपए फंड रिलीज किए हैं. हालांकि इसमें से अबतक सिर्फ 8011 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए.

29 जुलाई 2024 को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि पिछले पांच सालों में, Central Pollution Control Board ने पर्यावरण संरक्षण शुल्क (ईपीसी) यानी environment protection charge और पर्यावरण मुआवजा (ईसी) के फंड का 75 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा खर्च नहीं किया.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने लोकसभा में जवाब में बताया कि

2019 और 2024 के बीच, सीपीसीबी को ईपीसी फंड के रूप में 422.56 करोड़ रुपये मिले. इसमें से 99.29 करोड़ रुपये का इस्तेमाल पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों के लिए किया गया है. वहीं ईसी फंड के रूप में 404 करोड़ रुपये कलेक्ट किए गए. इसमें से Central Pollution Control Board ने सिर्फ 61 करोड़ रुपये खर्च किए. मतलब ये फंड भी काफी हद तक खर्च नहीं हुए.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंडर आने वाली सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का बजट 2024-25 में 105.70 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 113 करोड़ रुपये कर दिया गया है. लेकिन फिर भी हालात नहीं बदले.

दिल्ली से लेकर नोएडा- प्रदूषण रोकने के लिए पैसे खर्च ही नहीं हुए

अब बात कुछ शहरों की करते हैं जिन्हें पर्दूषण कंट्रोल के लिए फंड तो मिले लेकिन लोगों की जिंदगी बचाने के लिए वो पैसे खर्च ही नहीं हुए.

दिल्ली

2019 से लेकर ऑक्टूबर 2024 तक नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत दिल्ली को करीब 42 करोड़ रुपए जारी किए गए. खर्च हुए करीब 12.6 करोड़ रुपए.

2022 में टाइम्स ऑफ इंडिया में एक खबर छपी थी. जिसमें एक आरटीआई के हवाले से लिखा था कि हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) ने 2015 से नवंबर 2021 तक 470 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं.

इसके बाद कितने खर्च हुए हैं इसके आंकड़े हमें नहीं मिले. लेकिन सवाल है कि इतने करोड़ खर्चे के बाद भी दिल्ली की हवा जहरीली की जहरीली ही क्यों है?

अब ये सुनते ही अरविंद केजरीवाल के विरोधी खुश हो जाएंगे. और कहेंगे देखो केंद्र सरकार पैसे दे रही है लेकिन दिल्ली सरकार खर्च ही नहीं कर पा रही है. तो बाकी जगहों का भी हाल जान लीजिए.

UP के शहरों की सच्चाई

  • नोएडा को प्रदूषण कंट्रोल के नाम पर मिले 30.89 करोड़ और इन पांच सालों में खर्च किए सिर्फ एक करोड़ 43 लाख रुपए.

  • दिल्ली से सटे यूपी के मेरठ को मिले 139 करोड़ रुपए और खर्च किए 117 करोड़ के करीब.

हरियाणा के फरीदाबाद को मिले 60 फीसदी पैसे खर्च ही नहीं हुए

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की लिस्ट में हरियाणा का एक ही शहर है फरीदाबाद. उसका भी हाल जान लीजिए. सरकार किसकी है ये पता न हो तो गूगल कर लीजिएगा.

फरीदाबाद को प्रदूषण कंट्रोल के लिए मिले 73.53 कोरड़ और खर्च किए करीब 28.6 करोड़ रुपए. आखिर क्यों ये पैसे समय पर खर्च नहीं किए गए?

प्रदूषण कंट्रोल बोर्डों में नौकरी के 60% पद खाली

देश भर में  State Pollution Control Boards (SPCBs) और केंद्र शासित राज्यों में Pollution Control Committees में  लगभग आधे पद खाली पड़े हैं. 11 राज्यों में 60% से ज्यादा पोस्ट खाली हैं. 6 सितंबर 2024 को Central Pollution Control Board ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सामने एक हलफनामे में बताया कि सभी एसपीसीबी और पीसीसी में कुल 11,562 स्वीकृत पदों में से 5,671 (49.04%) पद खाली छोड़ दिए गए हैं.

कैसे प्रदूषण को किया जाए कंट्रोल

प्रदूषण से लड़ाई का सोल्यूशन एक दिन में नहीं निकल सकता है. ऑनलाइन क्लास, वर्क फ्रॉम होम, ऑड ईवन ये सब शॉर्ट टर्म सॉल्यूशन है. हमें उन देशों से सीखना चाहिए जिसने प्रदूषण को कंट्रोल किया.

  • 1990 के दशक में बीजिंग में जनसंख्या के साथ-साथ प्रदूषण भी बढ़ रहा था. सड़क पर कारों की संख्या बढ़ती जा रही थी. लेकिन बीजिंग ने कड़े कदम उठाए.

  • वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए बीजिंग का बजट 2013 में 3 बिलियन युआन (US$434 मिलियन) से बढ़ाकर 2017 में 18 बिलियन युआन (2.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) किया गया.

  • बीजिंग ने डीजल और कोएले के खप्त पर कंट्रोल किया. इेलेक्रिट बसों की सर्विस बढ़ाई गई. पब्लिक ट्रांस्पोर्ट पर फोकस किया.

  • कोपेनहेगन को ‘साइकिल फ्रेंडली कैपिटल’ कहा जाता है. यहां पर 50% से ज्यादा लोग साइकिल का इस्तेमाल करते हैं. ग्रीन स्पेस बढ़ाए गए हैं.

  • ‘कचरे से ऊर्जा’ नीति लागू है.

लैकिन हमारे देश में कहीं फंड खर्च नहीं हो रहे, कहीं प्रदूषण से लड़ने के लिए नौकरी पर लोग रखे नहीं जा रहे. कहीं नेता प्रदूषण कंट्रोल की बात छोड़ चुनाव में व्यस्त हैं तो कहीं सरकारें एक दूसरे पर इल्जाम लगा रही हैं. इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

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