( ये स्टोरी सबसे पहले 18 जून 2018 को पब्लिश हुई थी. क्योंकि आज केदारनाथ के कपाट खुल रहे हैं इसे फिर से पब्लिश किया जा रहा है)
- मल्टीमीडिया प्रोड्यूसर: कुनाल मेहरा
हिमालय की बर्फीली चोटियों और ग्लेशियरों की गोद में बसी केदार घाटी. जिस जोश के साथ श्रद्धालु शिव के नाम का जाप करते हुए 16 किलोमीटर लंबी चढ़ाई चढ़ रहे थे, उससे इस बात का अंदाजा बिलकुल भी नहीं लगाया जा सकता कि 2013 में आई आपदा के बाद किसी के मन में किसी भी तरह का डर है. यही वजह है कि इस साल अब तक 6 लाख से ज्यादा लोग केदारनाथ पहुंचे हैं.
लेकिन 17 जून 2013 को मिनटों में केदारनाथ मंदिर के आसपास सबकुछ मलबे में तब्दील हो गया था. आपदा के वक्त यहां मौजूद हजारों लोग या तो मौत के उस सैलाब में बह गए थे या बड़े-बड़े पत्थरों के नीचे दब गए. जो चंद खुशकिस्मत थे, वो किसी तरह से मौत के मुंह से निकले और अब उस तबाही को याद कर सिहर उठते हैं.
6 साल बाद केदारनाथ का चेहरा कितना बदला, ये जानने के लिए क्विंट की टीम ने यहां पहुंची. केदारनाथ से पहले सोनप्रयाग एक अहम पड़ाव है. आपदा के बाद से यहां लोगों का रजिस्ट्रेशन किया जाता है. सोनप्रयाग से गौरीकुंड का सफर हमने जीप से तय किया. ये सफर हमारे लिए जितना आसान था, उतना ही मुश्किल गौरीकुंड से केदारनाथ का सफर. जैसे-जैसे हम चढ़ाई चढ़ते गए, वैसे-वैसे लोगों की आपबीती भी और दर्दनाक होती गईं.
‘नहीं थी जिंदा बचने की उम्मीद...’
हमारी मुलाकात सुभाष लाल से हुई. पांच साल पहले उनकी एक छोटी दुकान हुआ करती थी. अब मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालते हैं.
17 जून को 6 बजे केदारनाथ मंदिर के पीछे से नदी का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था. मैंने सैकड़ों लाशों को देखा. एक आदमी दूसरे आदमी से चिपककर बैठा था. मैं भी एक नेपाली के कंबल में जाकर घुस गया. लेकिन तब तक वो मर चुका था. मैं दूसरे आदमी के पास गया तो वो भी मर चुका था.सुभाष लाल
सुभाष को उम्मीद नहीं थी कि वो बच पाएंगे. क्योंकि ठंड और भूख लगातार बढ़ रही थी और शरीर साथ नहीं दे रहा था. लेकिन 9 दिन तक लगातार चलने के बाद वो किसी तरह अपने घर पहुंच सके.
आपदा में परिवार के 18 लोगों की मौत
ललित 16 साल का था जब नदी ने अपना कहर बरपाया. परिवार के 18 सदस्यों को खोने का गम और यादों के साथ आज उसकी उम्र 21 साल हो गई है.
रामबाड़ा का नामो-निशान नहीं
गौरीकुंड और केदारनाथ के बीच एक इलाका जहां कभी चहल पहल हुआ करती थी. ये एक अहम पड़ाव था जहां लोगों को घर और होटल हुआ करते थे, लेकिन अब रामबाड़ा का नामो-निशान तक नहीं है.
दिनेश नेगी की दुकान रामबाड़ा में ही थी. वो बताते हैं कि बारिश की वजह से लोग परेशान थे. कोई भी केदारनाथ की तरफ नहीं जा रहा था और रामबाड़ा में यात्रियों की संख्या काफी ज्यादा हो चुकी थी.
हमारे ढाबे से 100 मीटर पहले रास्ता पूरी तरह से जाम हो चुका था. काफी ज्यादा बारिश हो रही थी. पूरे होटल भरे हुए थे. यात्री परेशान थे. इतनी बारिश पहले कभी नहीं देखी थी. नदी भी काली हो गई थी. बदबू आ रही थी. वो बदूब भी बता रही थी कि कुछ होनेवाला है, लेकिन कोई समझ नहीं पाया.दिनेश नेगी, दुकानदार
दिनेश ने बताया कि तेज बारिश के बाद कुछ जगहों पर लैंडस्लाइड होने लग गया. कई जगहों पर मलबा नीचे गिर रहा था और लोग बचने के लिए होटलों में घुस गए. लेकिन जैसे ही नदी में बाढ़ आई होटल टूट गया और बाढ़ ने पत्तों की तरह रामबाड़ा को साफ कर दिया.
पहाड़ों पर मूड की तरह बदलता है मौसम
रामबाड़ा से केदारनाथ करीब 8 किलोमीटर है. ये रास्ता खड़ी चढ़ाई की तरह है. नए रास्ते के जरिए हम भी केदारनाथ पहुंच गए, इस ऊंचाई पर मौसम मूड की तरह बदलता है. सुबह तेज धूप तो शाम को घने बादल और बढ़ती सर्दी.
इससे पहले रास्ता रामबाड़ा की तरफ से ही ऊपर निकलता था लेकिन आपदा के दौरान ये पूरी तरह से बह गया. नए रास्ते की कम चौड़ाई एक बड़ी समस्या है. उसके ऊपर खच्चर, डोली और पिट्टू वालों की वजह से पैदल यात्रा कर रहे लोगों को काफी दिक्कत होती है.
चोराबारी झील: आपदा की गुनहगार
हजारों लोगों की मौत की दोषी चोराबारी झील आज खुद मर चुकी है. दरअसल, केदार घाटी में 13 जून से ही लगातार बारिश हो रही थी. नदी का जलस्तर पहले से ही बढ़ा हुआ था, जिससे यहां पहुंचे श्रद्धालुओं और लोगों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था. कई पुल भी टूट चुके थे.
केदारनाथ मंदिर से करीब चार किलोमीटर ऊपर चोराबारी झील है, जो भारी बारिश की वजह से लबालब भर चुकी थी. लगातार बढ़ते पानी का दबाव ये झील सह नहीं पाई और इसका एक हिस्सा टूट गया. पानी का बहाव इतना तेज था कि उसके साथ बड़े-बड़े पत्थर भी नीचे आ गए और कुछ ही मिनटों में केदारनाथ मंदिर के आसपास तहस नहस हो गया.
इसके बाद केदार घाटी में बहने वाली मंदाकिनी नदी में पानी का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया जिसने निचले इलाकों में तबाही मचा दी.
केदारनाथ आपदा को 6 साल बीच चुके हैं. मंदिर और उसके आसपास काफी बदलाव हुआ है. वक्त के मरहम ने इस आपदा के जख्म कुछ हद तक तो भरे हैं लेकिन आपदा पीड़ितों के लिए तबाही का मंजर और दुख भरी कहानियों को भुला पाना नामुमकिन है.
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