advertisement
वीडियो एडिटर: सुनील गोस्वामी
वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी
भारत के संविधान निर्माता, समाज सुधारक और दलित चिंतक डॉ. भीमराव अंबेडकर की आज जयंती है. डॉक्टर अंबेडकर ने छुआछूत और जातिवाद के खात्मे के लिए खूब आंदोलन किए. लेकिन क्या 70 साल बाद दलितों की समाजिक हालत में बदलाव आया है?
यही समझने के लिए क्विंट ने अंबेडकर जयंती और लोकसभा चुनाव से पहले दलित युवाओं के साथ उत्तर प्रदेश के आगरा में एक चौपाल लगाई.
आगरा के रहने वाले आदित्य कहते हैं, “जिस तरह का भारत बाबा साहब ने सोचा था, वो अबतक नहीं बन सका. वो हमेशा समानता की बात करते थे, लेकिन हमें अबतक बराबरी का दर्जा नहीं मिला.”
सामाजिक कार्यकर्ता मनोज गौतम बताते हैं, “जातिवाद लोगों में इतनी फैल गई है कि लोगों ने देवताओं में भी भेदभाव करना शुरू कर दिया है. सत्ता में बैठे लोग भगवान हनुमान की जाति के बारे में बात कर रहे हैं. कभी हनुमान जी को दलित बता रहे हैं, तो कभी किसी को कुछ.”
क्विंट की चौपाल में दलित समाज के छात्रों ने दलित समाज के प्रति लोगों के बदलते नजरिए पर भी खुलकर अपनी राय रखी.
छात्र गौरव ने कहा, ''नई पीढ़ी की सोच बदली है. लेकिन क्लास में पूछते हैं कि कौन कौन एससी/एसटी कैटेगरी से हैं, तो ये बहुत अजीब होता है, जब हम सब एक क्लास में हैं तो ये पूछने की क्या जरूरत है.”
ये भी पढ़ें- सहारनपुर के दलित युवा किसे देंगे वोट?
जब क्विंट की चौपाल में मोदी सरकार के पांच साल के बारे में दलित छात्रों से पूछा गया, तो उन्होंने तुरंत अपनी नाराजगी जाहिर की.
मनोज गौतम का मानना है कि अगर मोदी सरकार पांच साल में दलितों के लिए कुछ करती, तो फिर दो अप्रैल को दलित आंदोलन और भारत बंद की जरूरत ही नहीं पड़ती. दलितों का सबसे ज्यादा उत्पीड़न यूपी की योगी सरकार में हुआ है, क्योंकि ये लोग चाहते ही नहीं हैं कि दलित समाज आगे बढ़े.
ये भी पढ़ें- डॉ. अंबेडकर,जिन्होंने 3 शिक्षकों से मंत्र लेकर बदली भारत की तस्वीर
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)