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कैमरा: त्रिदीप के मंडल
क्रिएटिव प्रोड्यूसर और वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया
एक अक्षर आपकी पूरी पहचान बदल सकता है. ऐसा ही असम के कई लोगों के साथ हुआ है. 5 साल के साहिन अश्वर का नाम NRC कर्मचारियों की भूल से सचिन अश्वर दर्ज किया गया और ये गलती साहिन को NRC लिस्ट से बाहर करने के लिए काफी था. अब साहिन के माता-पिता का नाम NRC लिस्ट में दर्ज है यानी वो भारतीय हैं लेकिन साहिन का नाम NRC लिस्ट से बाहर होने की वजह से ये साफ नहीं है कि 'वो भारतीय है या गैरकानूनी माइग्रेंट?'
असम NRC लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए किसी को भी 1971 से पहले के कागजात जमा करने होते हैं- ये दस्तावेज या तो उनके खुद के हो सकते हैं या उनके पुरखों के हो सकते हैं. जिससे साबित हो सके कि वो या उनका परिवार 24 मार्च 1971 से पहले भारत में रह रहा है. लेकिन कई लोगों का आरोप है कि सही दस्तवेज जमा करने के बाद भी कई लोगों को NRC के अफसरों ने उन्हें जान-बूझ कर NRC लिस्ट से बाहर रखा है.
शाहजहां अली अहमद एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो गरीबों और अनपढ़ लोगों को NRC फॉर्म भरने में मदद करते आए हैं, विडंबना ये है कि उनके और उनके परिवार का नाम NRC लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है. जब रिपोर्टर ने शाहजहां से उनके घर बक्सा जिले में उनसे मुलाकात की तो उन्होंने आजादी के पहले के रिकॉर्ड रिपोर्टर को बताए.
असम के नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए 1979 में असम आंदोलन की शुरुआत हुई और 15 अगस्त 1985 को भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच असम समझौता हुआ. इस समझौते में NRC का प्रावधान था ताकि अवैध तरीके से असम में रह रहे विदेशियों की पहचान की जा सके.
होजाई जिले में संवाददाता ने मुलानी बोरदोलोई से मुलाकात की जो असम के मूल निवासी हैं. उनका, उनके पति और उनके बच्चे का नाम NRC लिस्ट से बाहर है. अब उन्होंने पूरी NRC प्रक्रिया पर सवाल उठा दिया है.
जिन 19 लाख लोगों का नाम NRC लिस्ट से बाहर है उन्हें फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में भेजा जाएगा जहां वो अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने की कोशिश करेंगे. इनमें से कई लोग या तो बहुत गरीब है या अनपढ़, इसका मतलब ये है कि उन्हें इस पेचीदा प्रक्रिया से फिर गुजरना होगा जिसमें उन्हें अपने दस्तावेज साबित करने के लिए वकील नियुक्त करना होगा ताकि वो फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपना केस लड़ सकें. इनमें कई लोग इस प्रक्रिया में लगने वाला खर्च उठा नहीं सकते. कई लोगों ने अब सब कुछ अपनी किस्मत पर छोड़ दिया है अगर वो केस हार जाते हैं तो उन्हें डिटेंशन कैंप में भेजा जाएगा.
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