advertisement
वीडियो एडिटर: दीप्ती रामदास
बिहार चुनाव से पहले 'खाखी टू खादी' की यात्रा चल रही है. बिहार के पुलिसिया तंत्र के सबसे बड़े अधिकारी डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे अब 'विघायक जी इन वेटिंग' बन गए हैं. 1987 बैच के आईपीएस ऑफिसर गुप्तेश्वर पांडे ने अपनी नौकरी को वक्त से पहले बाय-बाय कहा और फिर नीतीश कुमार को हाय-हैलो.
संविधान, कानून या फिर किसी भी लिखित कागजात में ये तो नहीं लिखा कि एक डीजीपी या पुलिस अधिकारी नौकरी छोड़कर चुनाव नहीं लड़ सकता, लेकिन जब किसी राज्य के लॉ एंड ऑर्डर की कमान संभालने वाला, सत्ता में बैठी पार्टी से दिल मिलाएगा, तो जनता के दिमाग में सवाल तो उठेगा जनाब ऐसे कैसे?
गुप्तेश्वर पांडे बिहार के सीएम नीतीश कुमार की मौजदूगी में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) में शामिल हो गए. बक्सर सीट से पार्टी के उम्मीदवार हो सकते हैं. 5 महीने बाद वो रिटायर होने वाले थे, फिर अगला चुनाव 2025 में. मतलब 5 साल का इंतजार करना पड़ता. वीआरएस लेने से पुलिस डिपार्टमेंट और पावर तो गया ऐसे में सिर्फ पॉलिटिक्स ही कुर्सी पर बनाए रख सकती है.
कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिखने लगते हैं, पांडे जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से ही गुप्तेश्वर पांडे डीजीपी कम और तीर वाली पार्टी मतलब जेडीयू के प्रवक्ता की तरह बयान के तीर छोड़े जा रहे थे.
हालांकि उन्होंने इसके लिए सफाई भी दी थी, लेकिन कमान से निकला तीर और मुंह से निकली बात वापस नहीं आती.
टैक्स के पैसे से वेतन उठाने वालों से जनता सवाल भी पूछ सकती है कि सुशांत सिंह राजपूत केस के लिए जितनी बेचैनी थी वो बिहार के बढ़ते क्राइम पर क्यों नहीं दिखी. इस बात को आंकड़े से समझिए.
वैसे गुप्तेश्वर पांडे का चुनाव लड़ना या राजनीति में आना कोई देश का पहला मामला नहीं है, इनसे पहले करीब-करीब हर पार्टी में पुलिस अधिकारी से लेकर जज शामिल हुए हैं. वो भी नौकरी और राजनीति में आने के बीच ज्यादा गैप भी नहीं था.
यहां तक की देश के 46 वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रहे रंजन गोगोई का नाम भी ऐसी ही लिस्ट में है. नौ नवंबर 2019 को उनकी अगुवाई में पांच जजों की बेंच ने ही अयोध्या विवाद पर फैसला दिया था. और 17 नवंबर को पद से सेवानिवृत्त हुए. फिर 19 मार्च को राज्यसभा सांसद के तौर पर शपथ ले ली.
ओ.पी. चौधरी ने छत्तीसगढ़ रायपुर जिला के कलेक्टर रहते हुए नौकरी से इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद उन्होंने अमित शाह के सामने बीजेपी की सदस्यता ले ली थी. 2014 में झारखंड के आईएएस विनोद किसपोट्टा कांग्रेस में शामिल हो गए थे. राजनीति में आने के लिए उन्होंने वीआरएस ले लिया था.
जैसा कि हमने पहले बताया कानूनन ये गलत नहीं है लेकिन पब्लिक लाइफ में परसेप्शन बड़ा अहम है. नौकरी छोड़ने और राजनीति के बीच थोड़े समय का अतंराल आ जाए तो भी गनीमत है. लेकिन ये क्या बात हुई कि आज अफसर और कल नेतागिरी? जनाब ऐसे कैसे?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined