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मुजफ्फरपुर:क्यों बच्चों को भूखे पेट रखते थे मां-बाप? क्विंट पड़ताल

“अस्पताल में दवा नहीं, 300 रोज कमाने वाला 500 की दवा कहां से लाएगा”

शादाब मोइज़ी
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मुजफ्फरपुर के अली नेउरा गांव के वो माता-पिता जिन्होंने अपनी बेटी को खो दी.
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मुजफ्फरपुर के अली नेउरा गांव के वो माता-पिता जिन्होंने अपनी बेटी को खो दी.
(फोटो: शादाब मोइज़ी)

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहीम

वीडियो प्रोड्यूसर: फुरकान फरीदी

बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से अबतक एक महीने में 130 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. गांव के गांव मौत की चपेट में हैं. लेकिन सवाल ये है कि जिन बच्चों की मौत हुई है वो कौन हैं? किस परिवार से आते हैं? क्यों एक ही इलाके से इतनी सारी मौतें हुई हैं. यही जानने के लिए क्विंट पहुंचा मुजफ्फरपुर के मीनापुर गांव. ये वही गांव है जहां बुखार ने 13 मासूमों की जान ले ली.

इन मौतों में एक बात चौंकाने वाली थी, वो ये कि जितने भी बच्चों की मौत हुई है वो सभी बेहद गरीब परिवार से आते हैं. मतलब गरीबों पर दोतरफा मार. एक तरफ गरीबी दूसरी तरफ बच्चों की मौत का दर्द.

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बच्चों के लिए काम कर रहे समाजिक कार्यकर्ता अनिल कुमार कहते हैं, “इन बच्चों की मौत देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि चमकी नाम का ये कहर अमीर और गरीब में फर्क देखकर आया है. ये बीमारी सिर्फ गरीब बच्चों को अपना शिकार बना रहा है. जब आप मीनापुर पीएचसी से मरने वाले बच्चों की लिस्ट देखेंगे और लिस्ट में दिए परिवार से मिलेंगे, तो आपको पता चल जाएगा कि वो परिवार किस हालत में जिंदगी गुजार रहे हैं. उनके लिए स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचना कितना मुश्किल है. उनके पास खाने को कितनी कमी है. ये बच्चे असल में कुपोषित हैं.”

“गांव से स्वास्थ्य केंद्र बहुत दूर

मीणापुर पीएचसी की उस लिस्ट के आधार पर हमने उन परिवारों को ढूंढ़ना शुरू किया जिनके बच्चों की मौत हुई थी. इसी दौरान हमारी मुलाकात अली नेउरा के अरुण राम से हुई. अरुण की बच्ची की मौत चमकी बुखार से हुई थी. अरुण बताते हैं, “मेरी बेटी 4 साल की थी. अचानक उसकी तबियत खराब हो गई. उल्टी होना शुरू हो गया. हेल्थ सेंटर हमारे घर से करीब 15 किलोमीटर दूर है. इसलिए अपने रिश्तेदार की बाइक से मुजफ्फरपुर के श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज चले गए. अगर स्वास्थ्य केंद्र पास में होता तो शायद डॉक्टर को तूरंत दिखा लेते.”

अस्पताल में दवा नहीं, 300 रोज कमाने वाला 500 की दवा कहां से लाएगा”

अरुण राम की पत्नी अस्पताल से काफी नाराज थीं. उन्होंने कहा,

अस्पताल वालों ने भर्ती तो किया, लेकिन दवा बाहर से लाने के लिए कहा. 500 की दवा थी. अब खुद सोचिए 300 रुपए रोज कमाने वाला इंसान 500 की दवा कैसे लाएगा. ऊपर से काम भी रोज नहीं मिलता है. कर्ज लेकर दवा लाए. लेकिन दवा काम नहीं आया. बच्ची की मौत हो गई.
कविता देवी, बुखार से मरने वाले बच्चे की मां

“बच्चों की मौत का गम मनाएं या मजदूरी करें”

अली नेउरा के बाद हम उस लिस्ट के सहारे पहुंचे राघोपुर गांव. यहां हमारी मुलाकात हुई हसन अंसारी से. हसन ने बताया, “मैं मजदूरी करता हूं. बच्ची की बुखार से मौत हो गई. रोज कमाते हैं तो खाते हैं. अब हालत ये है कि बच्ची की मौत का दुख सहें या मजदूरी करें. अपनी बेटी को खोया है, लेकिन पेट के लिए उस गम को छोड़कर घर चलाने के लिए काम करना होगा.” सरकार ने 4 लाख रुपए देने का वादा किया था. चेक भी मिला, लेकिन उसपर नाम गलत है. अभी उसी के चक्कर में लगे हैं. ताकि कुछ पैसा ही मिल जाए.”

ये पूछने पर कि उस पैसों का क्या करेंगे तो हसन कहते हैं कि दो बेटी है उसके लिए इन पैसों को बैंक में रख देंगे. आगे जिंदगी में कुछ काम आ जाएगा.

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Published: 02 Jul 2019,10:54 AM IST

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