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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी
पीएम मोदी की ये जीत ऐतिहासिक है. इसको लहर, तूफान या सुनामी कहा जा सकता है. किसी सिंगल पार्टी का बहुमत के साथ दोबारा आना और वो भी वोट शेयर और सीट बढ़कर आना, ये अपने आप में पहली बार हुआ है.
पीएम मोदी के सामने किसी एंटी इनकंबेंसी फैक्टर ने काम नहीं किया. ऐसा नहीं था कि सारे वादे पूरे कर दिए गए थे. वोटर के निराश होने की बात भी सामने आई थी. इसके बावजूद भी इतना बड़ा जनादेश मिला. इस बात को समझने के लिए मोदी जी के काम करने के तौर तरीके को समझना चाहिए.
नरेंद्र मोदी चुनाव जीतने की ‘महामशीन’ बनते जा रहे हैं. ये बात आमतौर पर सुनने को मिलता है कि हर वक्त पीएम मोदी कैंपेन मोड में ही रहते हैं. अगर हकीकत देखें तो नरेंद्र मोदी ने करीब 140-145 मीटिंग की. डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों ने इस मीटिंग में हिस्सा लिया. ‘मन की बात’ के अलावा कई तरह के कार्यक्रम भी होते थे. इसका मतलब ये है कि हमेशा पीएम एक-एक वोटर से कनेक्ट होने का तरीका निकाल लेते थे.
इसके अलावा पीएम के पास डेटा का बहुत ज्यादा भंडार था. उन्होंने इस डेटा का इस्तेमाल किया. तकनीक का राजनीतिक स्ट्रेटजी के लिए इस्तेमाल किया. मोदी जी शुरू से ही प्रचारक रहे हैं, अपने राजनीतिक करियर में 4 सौ से ज्यादा जिलों की यात्राएं की हैं. इससे उन्हें जमीन की भी समझ बहुत ज्यादा है.
2012 में उनकी गुजरात मॉडल की वजह से विकास पुरूष की छवि बनी. 2014 में पीएम ने अपने पक्ष में पॉजिटिव वेव खड़ी की. जिसके बाद संघ ने उन्हें बीजेपी की तरफ से पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तावित किया. पीएम के पिछले पांच साल पर कई तरह की बहस हो सकती है लेकिन उन्होंने फिर से एक बार साबित किया कि उनके लिए पूर्वानुमान मत लगाइये. क्योंकि वो इसे ध्वस्त कर देंगे. मतलब ये कि पीएम मोदी अपना इतिहास खुद लिखते हैं.
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