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#नमोरंजित है देश: पीएम मोदी कैसे तोड़ते हैं अपना ही रिकॉर्ड

इसको लहर कहिए या तूफान या सुनामी, ये जीत अभूतपूर्व है

संजय पुगलिया
नजरिया
Updated:
इसको लहर कहिए या तूफान या सुनामी, ये जीत अभूतपूर्व है
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इसको लहर कहिए या तूफान या सुनामी, ये जीत अभूतपूर्व है
(फोटो: इंस्टाग्राम/नरेंद्र मोदी)

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पिछले लोकसभा चुनाव से भी प्रबल जनादेश है ये. ये बताता है कि मोदी मैजिक जस का तस नहीं है. मैजिक बढ़ा है और उन्होंने एक रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल की है. अच्छा खासा वोट शेयर बढ़ाया है. इसको लहर कहिए या तूफान या सुनामी, ये जीत अभूतपूर्व है. ये भारत के व्यक्तित्व को नए मोड़ पर ला कर खड़ा करती है. अगर सरकार के काम में कमी थी, निराशा थी, तब भी देश उनको एक मौका देने को तैयार हो गया, क्योंकि वो इस बात को मान गया कि 'मोदी की नीयत अच्छी है और वो मेहनत पूरी कर रहे हैं.' हर तबके के वोटर ने मोदी के नाम पर वोट दिया.

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नए इलाके में बीजेपी जीती है. पुराने इलाकों में उसने वोट शेयर बढ़ाया है. ये ऐतिहासिक है कि सिंगल पार्टी बहुमत की सरकार और भी बड़े बहुमत से जीत कर आए. भारत में चुनावों को समझने के सारे पुराने फॉर्मूले उन्होंने तोड़ दिए. ये चुनाव MP चुनने का रहा ही नहीं, PM चुनने का हो गया. हर सीट पर मोदी ही लड़े और विपक्ष लड़ने की रस्म अदायगी भर करता दिखा. संसदीय चुनाव प्रणाली असल जिंदगी में अमेरिकी राष्ट्रपति के सीधे चुनाव में तब्दील हो गई. एक ताकतवर प्रधानमंत्री होने के बावजूद वो यूं पेश हुए जैसे वो विपक्षी हों और इस्टैब्लिशमेंट से लड़ रहे हों.

अब गंगा उल्टी बह सकती है. मोदी ने चुनाव जीतने का एक ऐसा नया साइंस बना दिया है, जिसको समझने के लिए अब हो सकता है कि अमेरिकन यहां आए और पता लगाने की कोशिश करें कि मोदी जी ने क्या पॉलिटिक्स और क्या टेक्नॉलजी लगाई थी जिसकी वो कापी कर सकें.

आप इसको पॉलिटिक्स का "FMCG-करण" कह सकते हैं, क्योंकि वोटर पर उनका ब्रांड रिकॉल छाया हुआ था. पीएम मोदी उसको रोज सम्मोहित करते रहे. हर तबके के लिए वो जो सुनना चाहता था, वही बात कहते रहे. वोटर से सीधा लगातार ऐसा संवाद बना के रखा कि उसे लगता था कि मोदी सिर्फ उससे बात कर रहे हैं. संगठन-कैडर के अलावा अपने पक्षकारों और प्रचारकों की फौज उन्होंने हर घर, मुहल्ले और वॉट्सऐप ग्रुप में तैयार कर ली. मन की बात से लेकर नमो ऐप, परीक्षा पर किताब से लेकर उनपर बन रही फिल्में और TV धारावाहिकों में मोदी से जुड़े संदर्भ. सरकारी स्कीमों के करोड़ों लाभार्थियों को सीधे चिट्ठियां - हर तजवीज जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते, मोदी मशीन ने अपनाई और उसका भरपूर इस्तेमाल किया.

इन चुनावों ने बता दिया है कि देश में बहुत बड़े बदलाव हो गए हैं. वोटर राजनीतिक फैसला करता था अब वो ट्रांजैक्शनल फैसला ले रहा है. लेन देन पर आधारित. उसने ये माना है कि शौचालय, गैस कनेक्शन जैसी चीजें गवर्नन्स हैं. अगर कोई कमी भी रह गई, तो बालाकोट की घटना के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे ने उस कमी को पूरी कर दिया. उसने हिंदुत्व और मजबूत नेता के मिश्रण - मोदित्व के ऑफर को और मौका देने का फैसला किया है. यानी धर्म से जुड़े जो मुद्दे उन्होंने, बीजेपी और संघ ने उठाए, उनको वोटर ने वास्तविक मुद्दा मान लिया है.

बीजेपी लंबे वक्त तक जाति के मुकाबले धर्म को वोट करने की कसौटी बनाने के लिए जुटी हुई थी, अब उसे सफलता मिली है. इस सफलता की एक बड़ी वजह ये भी है कि अगर भारत संविधान सम्मत भारत को सेक्युलर और प्रगतिशील होना भी था तो उस विचारधारा की राजनीति करने वाली पार्टियों ने बड़ी गलतियां की. इन गलतियों का पूरा लाभ बीजेपी को मिला. इस नए ऑफर की पैकिजिंग विकास की और आयडेंटिटी की है. वोटर ने इस ऑफर को मंजूर किया है.

मोदी को इस बात का जुनून रहता है कि वो नए कीर्तिमान कैसे बनाएं. इसीलिए मोदी ने बंगाल और नॉर्थ ईस्ट के नए इलाके ढूंढे, पुराने इलाकों में नए फैन - यानी युवा, महिला, अन्य पिछड़ी जातियों का समर्थन ढूंढा.

कांग्रेस को विलेन बना कर प्रोजेक्ट करना उनकी रणनीति के केंद्र में रहा. सत्ता की ताकत के अलावा जीत का जुनून, कड़ी मेहनत और बेजोड़ भाषण कला - ये सब मोदी जी की विशेष पूंजी हैं. विपक्ष इसकी कापी करना तो दूर, समझ भी नहीं पाया. नए काउंटर ऑफर की गुंजाइश थी भी तो वो ज़ुबान नहीं खोज पाया. विपक्ष ठीक से लड़ने लायक गठजोड़ बनाने में तब विफल रहा, जब संकट उसके अस्तित्व का था.

अब आगे की डगर कठिन है, ये हम कहें उसके पहले मोदी जी को पता है. इसलिए आप मोदी-शैली की राजनीति के नए सोपान देखेंगे. सपनों का सौदागर, राजनीति का जादूगर और चुनाव का कारीगर- आपको और दुनिया को चौंकाता रहेगा.

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Published: 23 May 2019,08:09 PM IST

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