Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Breaking views  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019अफगानिस्तान में तालिबान- अमेरिका की हार, चीन तैयार,भारत खड़ा बीच मझधार

अफगानिस्तान में तालिबान- अमेरिका की हार, चीन तैयार,भारत खड़ा बीच मझधार

Afghanistan को लेकर अमेरिका का इतना बड़ा अपमान और उससे इतनी बड़ी गलती हो सकती है, इसका अनुमान नहीं था

संजय पुगलिया
ब्रेकिंग व्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>Afghanistan में तालिबान का कब्जा</p></div>
i

Afghanistan में तालिबान का कब्जा

(फोटो- क्विंट हिंदी)

advertisement

अफगानिस्तान में 20 साल की मेहनत पर कुछ ही दिनों में पानी फिर गया है. तालिबान ने देश पर कब्जा कर लिया है और लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि वो अब क्या करें. इस भयानक ट्रैजिडी को समझने में थोड़ा वक्त लगेगा, लेकिन कुछ बातें जो साफ हैं उन्हें समझ लेते हैं. सबसे पहला ये कि अमेरिका का इतना बड़ा अपमान और उससे इतनी बड़ी गलती हो सकती है, इसका अनुमान नहीं था. फॉरेन पॉलिसी प्रेसिडेंट के रूप में जो अपनी पहचान बनाना चाहते थे, फॉरेन पॉलिसी जिनकी एक्सपर्टीज है, वो राष्टपति जो बाइडेन गलती कर गए हैं और अमेरिका की मिट्टी पलीत करवाई है.

भारत के लिए एक अच्छा मौका, लेकिन सीमित विकल्प

वो तालिबानी ताकतें आज अफगानिस्तान की सत्ता में काबिज हो गई हैं, जिससे बीस साल तक अमेरिका लड़ा था. अफगानिस्तान की सेना को तैयार करने में करीब एक लाख करोड़ रुपये खर्च किया. लेकिन आज अफगानी सेना तालिबान के लड़ाकों के सामने बिलकुल टिक नहीं पाई और सरेंडर कर दिया, इसीलिए ज्यादा खून खराबे के बगैर अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया है. जो लोग कहते थे हम तालिबान से बात नहीं करेंगे अब उन्हें अपनी स्ट्रेटजी रिड्रॉ करनी पड़ेगी. चीन इसमें शातिर निकला है जो कह रहा है कि हम तालिबान से बात करेंगे और भारत एक सिद्धांतवादी विचारों के बीच दुविधा के रास्तों में है.

हालांकि भारत के लिए यहां एक अच्छा मौका है कि एक नई लीडरशिप यहां दिखा सके. लेकिन जाहिर है कि वो सावधानी से चलेगा. देखना ये होगा कि भारत के पास अब क्या विकल्प है, तालिबान-अफगानिस्तान मुद्दे को सुलझाने के लिए दरअसल अब बहुत सीमित विकल्प हैं.

तालिबान को लेकर अमेरिका का अंदाजा निकला गलत

ये बात लोगों के गले से नहीं उतर रही है कि अमेरिका की ऐसी मिट्टी पलीत कैसे हो गई, जो पिछले हफ्ते तक ये कह रहा था कि तालिबानियों को काबुल तक पहुंचने मे करीब दो महीने लगेंगे. पेंटागन, इंटेलिजेंस और पॉलिटिकल लीडरशीप नहीं समझ पा रही थीं. वहीं राष्टपति बाइडेन का कहना है कि,

"जीरो रिस्क है, वहां पर भले ही तालिबान का कब्जा हो जाए, वहां की लीडरशिप तय कर ले. लेकिन अमेरिका का निकलना बहुत जरूरी है, मैं नहीं चाहता कि राष्ट्रपति फौज को लेकर अफगानिस्तान में उलझा हुआ रहे."

लेकिन अब इस मामले के खलनायक डोनाल्ड ट्रंप सामने आकर कह रहे हैं, कि बाइडेन साहब आपकी फॉरेन पॉलिसी का क्या हुआ, अमेरिका का सेटबैक दरअसल पूरी दुनिया के लिए बुरी खबर है. क्योंकि आप कुछ भी कहें अमेरिका हमेशा डेमोक्रेटिक ताकतों की तरफ खड़ा तो रहता है, लेकिन उसके जो तौर तरीके हैं एक तरह से वो एक टाइम वॉर में फंसकर रह गया है. जहां उसे अंदाजा नहीं हुआ कि वो किससे लड़ रहा है. जहां उसे बुरी हार का सामना करना पड़ेगा.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

अमेरिका की बुरी हार क्यों?

इसे अमेरिका की बुरी हार कहा जा रहा है, क्योंकि पिछले 20 सालों से अमेरिका ने अफगानिस्तान पर करीब 1 लाख करोड़ रुपये खर्च किए और उनकी सैन्य शक्ति को मजबूत करने की कोशिश की. इस लड़ाई को पिछले 20 सालों से अमेरिका की सेना ही लड़ रही थी. हालांकि नतीजा यह हुआ कि अमेरिकी सैनिकों से लड़कर तालिबानी सेना चमक उठी और उनकी सारे गुर सीखकर आज पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है.

लेकिन अफगानिस्तान की सेना भ्रष्टाचार में इतनी डूब चुकी थी कि जो अमेरिका की सोच थी कि काबुल को बचा लेंगे तो पावर का सेंटर हमारे हाथ में रहेगा. ये सब कुछ नहीं चला, 14-15 अगस्त के वीकेंड में काबुल में अमेरिकी सेना के निकल जाने के बाद तालिबान आसानी से जीत गया. जो देश ये कह रहे थे कि तालिबानियों से बात नहीं करेंगे, उन्हें ये सोचना होगा कि क्या वो सामूहिक बयान दें या मान्यता देने की बात करें या न करें.

इनमें चीन इस वक्त सबसे स्मार्ट नजर आ रहा है, जो कहता है कि अगर तालिबान पावर में है और अफगान जनता के लिए कुछ करना चाहता है तो हम उनसे बात करेंगे. लेकिन भारत ने कहा है कि तालिबान से कभी बात नहीं करेंगे. ये तो अमेरिका था जिसने दोहा में तालिबान के साथ बात कर हल निकालने की बात कही थी.

एयरपोर्ट से चल रही है अमेरिकन एंबेसी

अब अमेरिका से अफगानिस्तान में करीबन 5 से 6 हजार सैनिक भेजे जा रहे हैं, जिससे अमेरिकी नागरिकों को और वो अफगानिस्तानी नागरिक, जिन्होंने अमेरिका की मदद की थी उन्हें वापस लाया जा सके. अमेरिका की एबेंसी को बंद करना पड़ा, एंबेसी के झंडे को लपेटकर और सभी लैपटॉप कंप्यूटर तोड़कर अब अमेरिकी एंबेसी काबुल एयरपोर्ट से चलाई जा रही है. अभी भी एयरपोर्ट पर अमेरिकी सैनिक मौजूद हैं. लेकिन अफगानिस्तान से आने वाली तस्वीरें दिल दहलाने वाली हैं. बदहवासी का आलम ये है कि हजारों लोग एयरपोर्ट पर पहुंच चुके हैं कि कैसे देश से बाहर निकला जाए.

अमेरिका के जाने पर वहां महिला मॉडलों के पोस्टरों पर पेंटिंग कर दी गई है. बुर्के की बिक्री बढ़ गई है. अब वहां पर तालिबान के कट्टरपंथी तरीके से सबसे ज्यादा खतरा महिलाओं को है. इसीलिए वो बुर्का खरीद रही हैं. बदहवासी का मंजर और ज्यादा भयानक है. अफगानिस्तान के लोग प्लेन के टायर में लटकर जा रहे थे और आसमान से गिरकर उनकी मौत हो गई.

अफगानिस्तान में बैंकों में पैसे नहीं हैं. जरूरी चीजों की सप्लाई अवरुद्ध होने वाली है. वहीं तालिबान अपनी कट्टरपंथी छवि को बदलने के लिए अलग-अलग बयान दे रहा है. उनका कहना है कि महिलाएं हिजाब जरूर पहने, बाकी हम उन्हें पढ़ने की इजाजत दे देंगे. लेकिन जाहिर बात है कि वो इस पावर ट्रांसफर को मजबूत करना चाहते हैं. तो अभी वो शुभ-शुभ बातें बोल रहे हैं. लेकिन किसी को शक नहीं है कि तालिबान की ताकत क्या है और ये अलकायदा और आईएस जैसे संगठनों को कितना हौसला देगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT