कोरोना के साथ हमें एक और ‘वायरस’ मार रहा- जर्जर स्टेट

माना 2020 में नहीं थे तैयार, 2021 में कहां हो सरकार?

संजय पुगलिया
ब्रेकिंग व्यूज
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वीडियो एडिटर: कनिष्क दांगी

139 करोड़ हिंदुस्तानियों का ये देश इस वक्त कोरोना वायरस के अलावा एक और खलनायक से लड़ रहा है. एक तो वायरस की मार और ऊपर से सरकारी सिस्टम बीमार. सरकार, संसद, कार्यपालिका, न्यायपालिका, दूसरे सरकारी संस्थान, मीडिया इन सबको मिलकर इस विपरीत परिस्थिति में जो करना चाहिए था, वो नहीं किया है. कोरोना वायरस से लड़ने के लिए तो हमारे पास वैक्सीन है, लेकिन भारत की सरकार में मौजूद इस वायरस का इलाज हमें समझ नहीं आ रहा है. कोरोना वायरस की दूसरी लहर इतनी खतरनाक है कि एक्टिव केस को संभालने के लिए हमारे पास स्वास्थ्य तंत्र नहीं बचा है.

भारतीय राज्य की ताकत पर चर्चा हम किसी भी राजनीतिक दल, नेता पर ठीकरा फोड़ने के लिए नहीं कर रहे हैं. सिर्फ लोगों की जिंदगी बचाना अब सबकी प्राथमिकता में होना चाहिए. अस्पताल से लेकर कब्रिस्तान तक की तस्वीरें चरमराई हुई राजव्यवस्था की गवाही दे रही हैं.

यूपी के 5 शहरों में लॉकडाउन हो या ना हो, इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि 'ये संभव नहीं है और इस पर अगले हफ्ते सुनवाई करेंगे.' क्या इस संकटकाल में ऐसी प्रक्रिया और फैसले ज्यादा खतरनाक स्थिति में नहीं पहुंचा रही हैं. हमारी राजव्यवस्था की ताकत हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में पीपीई किट, मास्क का ज्यादा दाम वसूलने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में खर्च हो रही है. इस मामले में कोर्ट भी लंबी सुनवाई कर रहा है. हेल्थ केयर इंफ्रास्ट्रक्चर पीपीई किट, मास्क, सेनेटाइजर, टेस्टिंग किट को लेकर नगाड़ा बजाया गया. लेकिन आज हकीकत किसी से छिपी नहीं है.

एक साल में सरकार नहीं कर पाई पुख्ता तैयारी

कोरोना की दूसरी लहर में हालात संभाले नहीं संभल रहे हैं. भारतीय राज्य को पिछले एक साल में जो वैक्सीनेशन की सप्लाई की ठोस तैयारी करनी थी, उसमें हम नाकाम रहे हैं. ऐसा लगता है वैक्सीन प्रोडक्शन, ट्रांसपोर्टेशन, सप्लाई चेन की हमने पुख्ता तैयारियां नहीं की. कोविन वेबसाइट तो वैक्सीनेशन की प्रक्रिया में सिर्फ रजिस्ट्रेशन भर है.

हेडलाइन मैनेजमेंट में जुटी सरकार

अब सरकार फिर से हेडलाइन मैनेजमेंट पर लग गई है, जिसके तहत वैक्सीन के इंपोर्ट को मंजूरी देने की बातें चल रही हैं, प्राइसिंग पर नई तैयारियां चल रही हैं. ये सारी बातें विशेषज्ञ पिछले कई हफ्तों से बता रहे थे, लेकिन अब जाकर सरकार ने ये बातें मानी हैं.

कोरोना से जीत का ऐलान कर दिया गया था, इसलिए आम जीवन पटरी पर आ गया था. चुनाव, रैलियां, दूसरे आयोजन चलते रहे. लेकिन वायरस के म्यूटेट होने के बाद किसी को अंदाजा नहीं लगा कि ये म्यूटेटेड वायरस कितनी तेजी से फैलेगा. इस बार बड़े पैमाने पर कोरोना फैला है, मंजर भयानक है.
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माना 2020 में नहीं थे तैयार, 2021 में कहां हो सरकार?

अगर मान भी लें कि हम 2020 में हम इस नए वायरस को लेकर तैयार नहीं थे. ऐसी खबरें भी आई कि राजनीतिक दल के नेता भारी डिमांड वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन पार्टी के दफ्तर से बांट रहे हैं. दूसरी राजनीतिक पार्टी का नेता इसकी मैन्यूफैक्चिरिंग के लिए केंद्रीय मंत्री से व्यक्तिगत स्तर पर मंजूरी ले आता है. ऐसी चरमराई हुई राजव्यवस्था में हम जी रहे हैं, इस जर्जर व्यवस्था के अंगों को अगर हमें समझकर बदलना होगा.

कोरोना क्राइसिस में भी खास और आम का फर्क!

जब हमारी व्यवस्था को लगा कि वो कोरोना संकट से नहीं निपट पाएंगे तो लॉकडाउन जैसे विकल्प तलाशे गए. लेकिन इस दौरान भी सख्ती से लेकर फाइन लगाने तक लोगों से भेदभाव किया गया.

प्रवासी मजदूरों की परेशानी की फिर से वही तस्वीरें दिख रहीं

भारतीय राज्य की हालत क्या है इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगता है कि बड़ी तादाद में युवा आबादी एक जगह से दूसरी जगह माइग्रेट कर रही है. जब पहली लहर आई थी तब हमने लाखों लोगों का माइग्रेशन देखा. अब फिर से वही मंजर दिखने लगा है. ये वो इलाके हैं जहां से राजव्यवस्था गैरहाजिर है.

सदी के सबसे बड़े संकट में खर्च नहीं करेंगे तो कब करेंगे?

राष्ट्रीय सुरक्षा का इससे बड़ा विषय क्या होगा कि करोड़ों की आबादी इस वक्त अपनी जिंदगी को लेकर खतरनाक स्थिति में है. सरकार डिफेंस पर बहुत सारा पैसा खर्च कर सकती है तो स्वास्थ्य पर हम क्यों खर्च नहीं कर सकते. भारतीय राजव्यवस्था की जर्जर हालत एक दूसरा खतरनाक वायरस है, जिससे हम लड़ रहे हैं.

कहां गए अस्पताल और बेड के वो वादे?

जिलों के स्तर पर 100-500 बेड के कोविड हॉस्पिटल बनाने की बात हुई थी. नीति आयोग ने भी इस तरह का प्रस्ताव दिया था. इस पर बात कहां तक पहुंची और वो अस्पताल कहां गए? भारतीय राज्य कितना क्रूर है वो इस बात से पता चलता है कि अस्पताल में बैठा हुआ डॉक्टर ये तय नहीं कर पा रहा है कि वो किस मरीज को ज्यादा गंभीर मानकर अस्पताल में एडमिट करे.

इकनॉमी-तरक्की छोड़िए, जान बच जाए काफी है

स्वास्थ्य संकट पर बात हो रही है इसलिए लेबर कानून, कृषि कानून, अदालतों की नियुक्ति, केंद्र राज्य के संबंध, इकनॉमी में रेगुलेशन के मुद्दे इन सब पर बात करना मुफीद नहीं होगा. फिलहाल स्वास्थ्य संकट को राष्ट्रीय आपातकाल के तौर पर देखे जाने की जरूरत है. भारतीय राज्य को इस वायरस के खिलाफ जैसी लड़ाई लड़नी चाहिए थी, वो नहीं हो पाया है. अब दबाव में कुछ टुकड़ों में काम होता नजर आ रहा है. सरकार को ये समझना होगा कि एक दिन की बर्बादी कई लाख जिंदगियों को खतरे में डाल रही है.

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