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वीडियो एडिटर: कनिष्क दांगी
इस Breaking Views में चर्चा भारत, अमेरिका और चीन के त्रिकोण पर चर्चा होगी. 27 अक्टूबर को इन तीनों देशों के रिश्तों के लिहाज से बड़ी घटना हुई. दरअसल, अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट (माइक पोम्पियो) और सेक्रेटरी ऑफ डिफेंस (मार्क एस्पर) भारत आए हुए हैं. इन दोनों ने भारतीय समकक्षों विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री के साथ एक दस्तावेज पर साइन किया, जिसका नाम है- बेसिक एक्सचेंज एंड कॉपरेशन एग्रीमेंट (BECA).
इस समझौते के तहत भू-स्थानिक सूचनाएं एक्सचेंज की जाएगी. उदाहरण के तौर पर-
इस तरह की जानकारियों का आदान-प्रदान होगा. ऐसे में जब भारत का चीन से टकराव चल रहा है, इसको ध्यान में रखते हुए ये काफी अहम सझौता है. साथ ही दोनों ही देशों ने कहा है कि चीन को काबू में लाने की जरूरत है, वो गड़बड़ी कर रहा है. अमेरिका का कहना है कि वो पूरी तरह से भारत के साथ है. ये सब सुनकर तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन सवाल ये है कि ठीक अमेरिकी चुनाव से पहले इस एक्सरसाइज का मतलब क्या है?
ऐसे समय में जब अमेरिका में चुनाव हो रहे हैं, दो भारी-भरकम अमेरिकी सचिवों का भारत आने का मतलब ये हो सकता है कि बहुत बड़ी बात है, अहम है, अमेरिकी सरकार द्वारा पॉलिसी पर टिके रहने का संकेत दिया जा रहा है. ये भी संकेत है कि चुनाव में कोई हारे-जीते दोनों देशों के संबंध इसी तरह से चलते रहेगें.
विदेशी मामलों के बड़े स्तंभकार हैं केपी नायर. नायर का कहना है कि अमेरिका के डिप्लोमेटिक सर्कल में एक चर्चा आजकल चल रही है कि माइक पोम्पियो अपना पॉलिटिकल करियर बनाने के काम में जुटे हुए हैं. शायद वो 2024 का अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ना चाहते हैं. लेकिन क्या उनको पता है कि ट्रंप उन्हें बनाए रखेंगे? क्या ट्रंप जीतकर आ भी गए तो मार्क एस्पर को पता है कि वो बरकरार रहेंगे? अगर बाइडेन आ गए तो पॉलिसी पलट भी तो सकती हैं. माना कि भारत और अमेरिका के बीच में जो करार हुआ है, वो बड़े स्तर पर नहीं बदलेंगे लेकिन प्राथमिकता क्या होगी ये अभी से नहीं कहा सकता. दोनों में कोई भी जीतकर आता है तो भारत के साथ अमेरिका की प्राथमिकता क्या होगी ये इस बात पर निर्भर करेगा कि चीन के साथ अमेरिकी की प्राथमिकता क्या होगी.
दरअसल, हम कहने की ये कोशिश कर रहे हैं कि इस हाईप्रोफाइल यात्रा को एक बहुत गंभीर माइलस्टोन के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए. क्योंकि, अमेरिका में पिछले डेढ़ साल से ट्रंप प्रशासन जो भी कर रहा है उसका संबंध चुनाव और सिर्फ चुनाव है. पहले भी चुनाव के पहले ऐसा दौरा होता रहा है, इस लिहाज से ये एक रस्म की तरह हो जाएगा कि जिसे चुनाव लड़ना है वो भारत के साथ सामरिक चर्चा जरूर कर लें.
भारत के पास ये ऑप्शन नहीं है कि वो चीन के खिलाफ, अमेरिका के किसी एलायंस का पार्टनर हो जाए क्योंकि भारत तो खुद सुपरपॉवर बनना चाहता है. वैसे भी पिछले 6 महीने से चीन हमारे बॉर्डर पर आकर बैठा हुआ है, हमारी जमीन ले चुका है, इसलिए भारत के पास कोई ज्यादा स्कोप नहीं होगा कि वो अपनी पॉलिसी ट्रंप और बाइडेन पर निर्भर होकर बनाए. भारत को अपनी प्राथमिकता खुद तय करनी होगी.
कुल मिलाकर इस पूरी कवायद में वास्तविकता से दूर भी नहीं होना चाहिए. यहां पर भारत की अहम भूमिका होनी चाहिए कि अमेरिका के ऊपर भी एक तरीके से दबाव बनाए कि वो चीन के बारे में अपना ढुलमुल रवैया छोड़े और तय करे कि आखिर उसे करना क्या है.
कोई वैश्विक गठबंधन बनाना है तो भारत कि उसमें बड़ी भूमिका होनी चाहिए और सिर्फ अलायंस पार्टनर के तौर पर या पिछलग्गू के तौर पर भारत अमेरिका के साथ नहीं जा सकता. भारत के सामने चुनौती ये देखना होगा कि कौन सा प्रशासन अमेरिका में आता है और उसकी चीन पर पॉलिसी क्या होती है. भारत को अपने तरीके से सोचकर एक नए अप्रोच के साथ आना होगा चाहे नतीजा कुछ भी आए.
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