IBC: दिवाला कानून का क्यों निकला दिवाला?

जिस IBC को सरकार ने बताया था बड़ा सुधार, वो खुद बहुत बीमार है, समझा रहे हैं संजय पुगलिया

संजय पुगलिया
ब्रेकिंग व्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>क्यों IBC कानून का निकला दिवाला</p></div>
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क्यों IBC कानून का निकला दिवाला

फोटो: द क्विंट

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इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) को एक बहुत बड़ा रिफॉर्म बताया गया था, लेकिन अब 4-5 सालों बाद ऐसा लगता है कि इस दिवाला कानून का ही दिवाला निकल गया है.

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इस कानून का वादा/मकसद था कि रिजॉल्यूशन प्रोसेस तेज होगा, कारोबारों को बचाया जाएगा, नाकाबिल प्रमोटरों को बाहर निकाल दिया जाएगा, जल्दी से रिकवरी होगी. मगर पिछला हिसाब-किताब देखें तो हुआ क्या है? 2021 के जो आंकड़े आए हैं, उनके मुताबिक, 40 फीसदी की रिकवरी हुई है यानी जो 100 रुपये बैंकों ने दिए थे, उसमें से सिर्फ 40 की वसूली हुई है. 

पहले मामलों को180 दिन में रिजॉल्व करना था, इस अवधि को बाद में बढ़ाकर 270 दिन किया गया, लेकिन मामलों को रिजॉल्व करने में 400 से ज्यादा दिन लगे हैं. मगर ज्यादा बुरी खबर यह है कि इनमें से 48 फीसदी मामले कौड़ियों के भाव बिकने के हैं. प्रमोटर को भले ही निकाल दिया गया हो, लेकिन बिजनेस से कोई बड़ी रिकवरी नहीं हो पाई.

आईबीसी के चलते कई चौंकाने वाले मामले भी सामने आए हैं. आपने दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड ( डीएचएफएल) का किस्सा सुना होगा. इनके प्रमोटर को इस कंपनी से बाहर कर दिया गया था, आईबीसी के प्रोसेस में डाला गया था और रिजॉल्यूशन हो गया था कि ये कंपनी पीरामल एंटरप्राइजेज को दे दी जाएगी, लेकिन आखिरी दौर में प्रमोटर खुद आ गए और एनसीएलटी से कहा कि ये कंपनी हम 100 फीसदी चुकाकर वापस ले लेंगे. ऐसे में सवाल उठा कि पहले क्यों नहीं चुकाया गया?

कानून में लूपहोल है कि आप आकर ऐसा दावा कर सकते हैं. तो क्या ऐसा होना चाहिए? इसका एक कानूनी पक्ष है तो नैतिक सवाल भी है. सीधी सी बात यह है कि जिन पर आपराधिक मामले हैं, जिनको अनफिट घोषित कर दिया गया है, वो कंपनी पर दावा करने के लिए आए हैं.

आईबीसी की वजह से एनपीए कम?

आप कभी-कभी एक आंकड़ा देखते होंगे कि एनपीए पहले बढ़कर 13 फीसदी हो गया था, जो अब घटकर करीब 8 फीसदी हो गया है. ऐसे में आप सोचते होंगे कि इससे नए कल्चर, आईबीएस का फायदा पता चलता है. मगर यह थोड़ा भ्रामक है क्योंकि पिछले कुछ सालों में कंपनियों ने कर्ज कम लिए हैं. कम कर्जों की वजह से एनपीए भी कम हुआ है.

आईबीसी का एक पॉजिटिव असर यह हुआ है कि क्रेडिट कल्चर में थोड़ा फर्क आया है. अब बस इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि इस कानून की कमियों को दूर किया जाए ताकि एक स्थायी और बेहतर स्ट्रक्चर बन सके.

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