Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Breaking views  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019ब्रेकिंग VIEWS| इस दिवाली BJP को मिला फीका लड्डू, मीठा लोकतंत्र

ब्रेकिंग VIEWS| इस दिवाली BJP को मिला फीका लड्डू, मीठा लोकतंत्र

राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का जीत का फॉर्मूला राज्य स्तर पर काम नहीं करता.

संजय पुगलिया
ब्रेकिंग व्यूज
Updated:
क्या कहते हैं महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे
i
क्या कहते हैं महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

कैमरा: सुमित बडोला

वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

महाराष्ट्र में बीजेपी शिवसेना सरकार की वापसी हुई लेकिन कमजोर होकर और हरियाणा में बीजेपी को बहुमत नहीं मिल पाया.

इन विधानसभा चुनाव नतीजों के पीछे का मैसेज क्या है?

राज्यों में बीजेपी अजेय नहीं है. दिल्ली में हो सकती है और वो एक व्यक्ति नरेंद्र मोदी की वजह से है. यानी राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का जीत का फॉर्मूला राज्य स्तर पर काम नहीं करता.

जनता के मुद्दे अलग हैं और बीजेपी जो पैकेज बेचती है वो हर बार हर जगह बिके ये जरूरी नहीं है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
वोटर स्थायी रूप से बीजेपी से मुग्ध नहीं है. यानी विपक्ष के लिए गुंजाइश है. लेकिन विपक्ष नदारद है. विपक्ष इस मौके का फायदा उठाने में सक्षम नहीं है. खासकर कांग्रेस बेमन से लड़ती है, कई बार तो हारने के लिए ही जैसे-तैसे लड़ लेती है फिर भी जनता उसको समर्थन दे रही है.

दरअसल जनता लोकतंत्र में संतुलन चाहती है. ये ही लोकतंत्र का स्वभाव है. लोकसभा में हारने के बाद उसके पास मौका था, क्योंकि महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस के पास ठीकठाक ढांचा अब भी है. लेकिन अनिर्णय की कुल्हाड़ी कांग्रेस हमेशा अपने साथ रखती है. ये अनिर्णय उसकी नेतृत्व की कमी का नतीजा है. ये चुनाव कांग्रेस लड़ी ही नहीं. एक तरह से उसने बीजेपी को निर्विरोध जीतने का मौका दे दिया था. लेकिन ये क्रेडिट तो शरद पवार और भूपिंदर सिंह हुड्डा को जाता है की उन्होंने इस चुनाव को निर्विरोध नहीं रहने दिया.

तो कुल मिलाकर ये नतीजे क्या बताते हैं?

वोटर लोकसभा और विधानसभा के मुद्दों को अलग रखता है. वोटर का मुद्दा राष्ट्रवाद और आर्टिकल 370 नहीं था, उसका बड़ा मुद्दा खेती, किसानी और रोजगार था.

महाराष्ट्र में बीजेपी-सेना का वोट शेयर 4% गिरा है. ये 47% से 43% पर पहुंच गया लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 के मुकाबले ये गिरावट 7%  की है. हरियाणा में बीजेपी को बहुमत नहीं मिला लेकिन वोट शेयर 3% बढ़ा है. अगर लोकसभा चुनाव 2019 से तुलना करें तो वोट शेयर 22% गिरा है.

बीजेपी का इम्पोर्ट मॉडल रिस्की है . दूसरी पार्टियों से नेता और कैंडिडट इम्पोर्ट कर के जीतने की बीजेपी की रणनीति जीत की गारंटी नहीं देती. उलटे बीजेपी सेना के कई बागी जीत कर आ गए.

सतारा लोकसभा में शिवाजी के वंशज उदयनराजे भोंसले का एनसीपी छोड़ना और बीजेपी से लड़ना और हारना बताता है कि प्रतीकों की राजनीति हर वक्त नहीं चलती. शरद पवार के लिए ये जीत बेहद जरूरी थी.

बीजेपी के लिए मराठा वोट को खींचना एक बड़ा प्रोजेक्ट था. वो सफल नहीं हुआ. शरद पवार अपने बूते अपना मराठा जनधार बचाने में सफल रहे. ये उनके करियर की सबसे मुश्किल लड़ाई थी. अकेले लड़े. उन्होंने कांग्रेस को भी इज्जत बचाने जितना सहारा दिया. कांग्रेस-एनसीपी ने 2014 के मुकाबले ज्यादा सीटें जीती हैं. लेकिन बड़ा फायदा एनसीपी का है, उसने एक दर्जन से ज्यादा नयी सीटें जीतीं हैं.

सत्तारूढ़ दल का दोबारा जीतना अपने आप में एक उपलब्धि है, ये मानना चाहिए. फिर भी ये नतीजे बताते हैं कि बीजेपी के मुख्यमंत्री प्रो इंकम्बेन्सी मोड में हैं, ये एक मिथ था. बीजेपी ने महाराष्ट्र में 2014 के मुकाबले करीब दो दर्जन सीटें खोयी हैं. शिवसेना की सीटें भी घटी हैं.

बीजेपी का अरमान था कि वो शिवसेना के भरोसे ना रहे. ये अरमान भी टूटा. शिवसेना पूरे 5 साल सहयोगी होने के बावजूद बीजेपी को आंख दिखाती रही. अब जो आंकड़े बने हैं, उसमें बीजेपी को सेना का दबाव झेलते रहना पड़ेगा.

अपने विरोधियों के खिलाफ ED और CBI लाने का फॉर्मूला भी फेल हुआ है. शरद पवार तो ED कॉर्ड का फायदा उठा गए और हुड्डा का भी पॉलिटिकल रिवाइवल हो गया.

बीजेपी ने हरियाणा में गैर जाट मुख्यमंत्री रखा. जाटों को आरक्षण नहीं दिया. जाट आंदोलन के कई नेता अब भी जेल में हैं. उधर मराठा आरक्षण देकर भी बीजेपी मराठा मन को नहीं जीत पायी. यहां बीजेपी की रणनीति को बड़ा झटका लगा है. बीजेपी की कोशिश थी कि पहले अन्य पिछड़ी जातियों का सामाजिक गठजोड़ बनाए, और मराठा जाट जैसी बड़ी ताकतवर जातियों को पहले नजरअंदाज करे और बाद में लुभाए. ये फेल हुआ है.

सबसे बड़ा आउटकम ये है कि भारत का संघीय मानस किसी एक प्रभावी राजनीतिक छतरी में जाने को तैयार नहीं है. इन चुनावों में संघीय ढांचा फिर से फलता-फूलता दिख रहा है, जो भारतीय लोकतंत्र की जान हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 24 Oct 2019,09:16 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT