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Google पर महामुकदमे का भारत और दुनिया के लिए क्या मतलब?

गूगल का कहना है कि लोग उनके पास च्वाइस की वजह से आते हैं, ऐसा नहीं है कि मार्केट में दूसरे ऑप्शन नहीं हैं

संजय पुगलिया
ब्रेकिंग व्यूज
Updated:
Breaking Views । Google पर महामुकदमे का भारत और दुनिया के लिए क्या मतलब?
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Breaking Views । Google पर महामुकदमे का भारत और दुनिया के लिए क्या मतलब?
(फोटो: कनिष्क दांगी/क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर : कनिष्क दांगी

ऐसा लगता है कि दुनियाभर के लिए चीन, कोरोनावायरस, अमेरिकी चुनाव का 'ड्रामा' कम पड़ रहा था कि अब एक नया नाटकीय मोड़ गूगल के साथ आ गया है. अमेरिका का जस्टिस डिपार्टमेंट गूगल पर एक मुकदमे को लेकर कोर्ट चला गया है जो कि एक बहुत बड़ा और ऐतिहासिक मुकदमा हो सकता है. इस मुकदमे में कहा गया है कि गूगल अपने गलत एकाधिकार का प्रयोग कर कंपीटिशन को खत्म करता है, कंज्यूमर विरोधी गतिविधियां चलाता है.

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(ग्राफिक्स: श्रुति माथुर)

इस मामले को लेकर अमेरिकी हाउस में कमेटी ने एक साल की सुनवाई की थी. खास बात ये है कि रिपब्लिकन और डेमोक्रेट कई सालों से इस बात पर एकमत हैं कि ये बिगटेक कंपनियां देश और दुनिया को नुकसान पहुंचा रही हैं. किसी कायदे-कानून की गिरफ्त में नहीं हैं, तो इनकी जांच पड़ताल करना जरूरी है. इसी को ध्यान में रखते हुए अटॉर्नी जनरल विलियम बार ने ये मुकदमा दायर किया है. मतलब ये भी है कि चुनाव के ठीक पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का ये भी वादा पूरा हो गया है, ऐसे में कहा जा सकता है कि पॉलिटिकल टाइमिंग का भी इस मुकदमे में पूरा ध्यान रखा गया है.

Google पर इस मुकदमे से आखिर होगा क्या?

अब इस बड़े मुकदमे से होगा क्या? इसको समझने के लिए दो तीन बातों का खयाल रखना बहुत जरूरी है. पहला ये कि ये जो अमेरिका का एंटीट्रस्ट कानून है, वो सौ-सवा साल पुराना कानून है. जब डेटा-इनोवेशन-टेक्नोलॉजी की कल्पना नहीं थी. अब जब किसी कंपनी ने इनोवेशन के जरिए अपनी साइज को बहुत बड़ा बना लिया है तो उसे एंटी-कंपीटिटिव कैसे माना जाएगा, अदालत को इस पर जिरह करना होगा. वहां सरकार को अपना तर्क साबित करना पड़ेगा. क्योंकि गूगल का ये कहना है कि सरकार जो मुकदमा लेकर आई है वो बिलकुल बेकार है और इसमें कोई दम नहीं है.

ऐसे में अब दो बातें हो सकती हैं- ये मुकदमा कई सालों तक चल सकता है या कोर्ट के बाहर सेटलमेंट हो सकता है. सरकार के पास विकल्प था कि वो एग्जीक्यूटिव ऑर्डर लाकर गूगल को चार टुकड़ों में बांटने की बात कह सकते थे लेकिन ऐसा नहीं किया गया क्योंकि कानून को फिर से परिभाषित करना जरूरी है. सवाल ये भी खड़ा होता है कि सिर्फ गूगल को ही पहले क्यों चुना गया है? बाकी कंपनियों को क्यों नहीं?

Google की सफाई क्या है?

Goole का अपने बचाव में जो तर्क है वह ध्यान देने वाली बात है. कंपनी का कहना है कि लोग उनके पास च्वाइस की वजह से आते हैं, ऐसा नहीं है कि मार्केट में दूसरे ऑप्शन नहीं हैं. कंपनी का कहना है कि लोगों पर वो कोई दबाव नहीं डाल रहे होते हैं. वहीं अटॉर्नी जनरल की दलील है कि सर्च में कंपीटिशन न आ सके इसके लिए गूगल लोगों के साथ तरह-तरह की पार्टनरशिप करती है. उदाहरण के तौर पर आपने Apple को पैसे दिए हैं और उनके साथ ये पार्टनरशिप की है कि उस पर गूगल ही फ्री तरीके से आ सकेगा और कोई दूसरा नहीं आ सकता. अटॉर्नी जनरल की दलील है कि ये मोनोपॉली टेंडेंसी दिखाता है और एंटीट्रस्ट कानून के दायरे में आता है.

गूगल ये कह सकता है कि ये इनोवेशन की वजह से है. कोई भी बाजार में आकर काम कर सकता है अगर दूसरी कंपनियां फेल हो रही हैं तो इसमें गूगल का कोई कसूर नहीं है. कंपनी ये भी आंकड़ा दे सकती है कि सर्च और विज्ञापनों से कमाई की बात करें तो पिछले सालों में ये कम ही हुई है. सर्च इंजन के जरिए डिजिटल एडवरटाइजमेंट में 2018 में गूगल का मार्केट शेयर 63 फीसदी था जो अब घटकर 58 फीसदी रह गया है.

अमेजन, गूगल के लिए ज्यादा बड़ा मुकाबला लेकर आ रहा है तो कंपनी को मुकदमे से ज्यादा अमेजन से डर है वो अब 11 फीसदी से बढ़कर 17 फीसदी मार्केट शेयर पर बैठा हुआ है.

(ग्राफिक्स: श्रुति माथुर)

'जहरीले कंटेंट' के खिलाफ क्या करेगी सरकार?

जो लोग टेक कारोबार को फॉलो करते हैं, उनमें से बहुत सारे लोग ये सवाल उठा रहे हं कि ये तो मामला हो गया सर्च के जरिए विज्ञापन जुटाने का, लेकिन जो 'टॉक्सिक कंटेंट' हैं उसके लिए क्या किया जा रहा है. जो दूसरी कंपनियों के जरिए टॉक्सिक कंटेंट फैल रहा है, जिससे आर्थिक-सांस्कृतिक जीवन में बड़ी बुराइयां पैदा हो रही हैं, ऐसी डिजिटल कंपनियों को कंट्रोल करने के लिए क्या किया जा रहा है. जाहिर है कि बहुत दिनों से ये बात हो रही है कि जो एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म होते हैं, उनके ऊपर कोई भी कंटेंट सवार हो जाता है और उस कंटेंट के प्रति किसी की जिम्मेदारी नहीं होती है, उसे कैसे मैनेज किया जाए?

दरअसल, हुआ ये है कि जब टेक कंपनियां बढ़ रही थीं तो शुरू में सत्ताधारी दल, सरकारें इनके साथ हुआ करती थीं, सरकारें मदद करती थीं. अब कंपनियों के बड़े हो जाने के बाद उनकी मोनोपॉली हो गई है.

अब सरकारों को भी लग रहा है कि उनसे ज्यादा ताकतवर कोई कैसे हो सकता है. तो न सिर्फ अमेरिका में यूरोपियन यूनियन भी इससे पहले गूगल पर बहुत सारे जुर्माने लगा चुका है. जापान और भारत में भी इन्हें नियंत्रित करने की कोशिश हो रही है. चीन ने तो पहले ही सिलिकन वैली वाली कंपनियों को रोक रखा है.

सरकारों की भी अग्निपरीक्षा!

ऐसे में जो बिग टेक कंपनियों की ये जो चुनौती है इसको पहले सरकारें सिर्फ देख रही थीं. अब सरकारें ऐसा क्यों कर रही थीं- टेक्नोलॉजी की समझ की कमी इसका बड़ा कारण है. सरकारों के पास रेगुलेशन और नियम-कानून पर्याप्त नहीं थे. सरकारें अब इस नियम-कानून बनाने की कोशिश कर रही हैं. अमेरिका में तो ये बिजनेस 'माउंट एवरेस्ट' के जितना बड़ा हो सकता है. गूगल का ही सिर्फ एक ट्रिलियन डॉलर का वैल्युएशन है. एप्पल, अमेजन, फेसबुक, गूगल (अल्फाबेट) ये चार वो कंपनियां हैं जिनका दुनियाभर में दबदबा है. इन चार कंपनियों को मिला लें तो इनका बिजनेस 5 ट्रिलियन डॉलर की कंपनियां हैं मतलब भारत की मौजूदा जीडीपी का करीब-करीब दोगुना. इससे आपको अनुमान लग सकता है कि ये कंपनियां कितनी ताकतवर हो गई हैं.

(ग्राफिक्स: श्रुति माथुर)
अब इस मुकदमे से या प्रतिबंध से इनोवेशन पर ही लगाम लग जाए ये तो कोई नहीं चाहेगा, तो ये मुकदमा सिर्फ गूगल की ही नहीं सरकारों की भी अग्निपरीक्षा है. गूगल की अग्निपरीक्षा ये है कि वो कैसे खुद को निर्दोष साबित करे और ये बताए कि कंपनी ने कोई कानून नहीं तोड़ा है. ये भी देखना होगा कि आखिर कैसे दूसरी बिग टेक कंपनियों को गिरफ्त में लिया जाएगा.

एक आखिरी दिलचस्प बात ये है कि जहां एक तरफ अमेजन के मालिक जेफ बेजोस और फेसबुक के मार्क जकरबर्ग सरकार से बात करने के वक्त सामने आते हैं. लेकिन गूगल के मामले में ऐसा नहीं है. इस कंपनी के मालिक पीछे हो गए हैं और भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक गूगल के CEO सुंदर पिचाई आगे हैं. देखना होगा कि पिचाई इस मुकदमें को कैसे लड़ेंगे और क्या इस मुकदमे का हश्र माइक्रोसॉफ्ट की तरह होगा. मतलब कि सालोंसाल ये मुकदमा चलेगा और बाद में सेटलमेंट कर लिया जाएगा. या फिर गूगल के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती आ गई है, सारी टेक कंपनियां इसकी जद में आएंगी. नए रेगुलेशन आएंगे. अगर अमेरिका में ऐसा हो सकता है तो ये एक ऐसी मिसाल होगी जिसे दूसरे देश भी फॉलो कर सकते हैं.

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Published: 21 Oct 2020,08:48 PM IST

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